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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 309 श्री वैद्य को छोड़ने की प्रार्थना की तो उन्होंने कानून __श्री रतनचंद जैन की मजबूरी बताकर छोड़ने से इन्कार किया। मैंने इटारसी (म0 प्र0) के श्री रतनचंद जैन, पुत्र-श्री मुलाकात के लिये निवेदन किया तो उन्होंने इससे भी मूलचंद जै। का जन्म 1924 में हुआ। 1942 के इन्कार कर दिया। लाचार होकर हमें उनको यह कहना आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपको नौ माह का पड़ा कि दीवान साहब हमें आप लड़ने की चुनौती कारावास भोगना पड़ा। 1944 में अल्पायु में ही आपका दे रहे हैं हम इसके लिए अब मजबूर हैं कि तुम्हारे देहावसान हो गया। यहां से श्री वैद्य जी को छडाने के लिये बन्देलखण्ड आ()- (1) म) प्र0 स्वर) से), भाग-5, पृष्ठ-348 (2) स्वा। स) हो), पृष्ठ-123 स्टेट के कार्यकर्ता इकट्ठ करें। बस मैं इतना कह कर पंडित जी के साथ चला आया। दीवान साहब श्री रतनचंद जैन खनियांधाना पर जो भी असर हआ हो वह दसरे ही जबलपुर (म0प्र0) के श्री रतनचंद जैन, पुत्र-श्री दिन श्री वैद्य को मोटर में बिठाकर झांसी बाजार में मूलचन्द का जन्म 1913 में हुआ। जबलपुर के नार्मल छोड़ गये और कहा कि आपके लिये खनियांधाना स्टेट स्कूल से शिक्षा समाप्त कर कर्मक्षेत्र में पैर रखते ही 1932 के सत्याग्रह में आप सम्मिलित हए तथा 6 माह पहले ही की तरह बन्द है। मैं इधर टीकमगढ़ के उस की सजा पाई। आप पर 20/- रु) जुर्माना भी किया लाठी चार्ज के किस्से में फंसा था, वैद्य जी भी उसी गया। न देने पर डेढ़ माह की सजा और भुगतनी पड़ी। में आकर लग गये। उससे फुरसत पाकर मैंने पुन: आपने लिखा है 'जेल में 20 किलो पिसाई का काम वैद्य जी को खनियांधाना भेज दिया है। वह अब अपने प्रतिदिन करना पड़ता था। जेल का सिपाही हरहर घर रहने लगे हैं। रियासत प्रगट में कुछ नहीं कर पा नारायण मेरा प्रेम व स्नेह के साथ पालन करता था रही है, क्योंकि जनता पर इतना अच्छा प्रभाव पड़ा क्योंकि उसके कोई सन्तान न थी। वह रात को 2-4 कि वह अब इनका (श्री वैद्य जी का) साथ देने और पूड़ियाँ भी ले आता था। उस समय जेल में सेठ राजनैतिक हलचल में दिलचस्पी लेने लगी है।" गोविन्ददास भी थे।' आपने जबलपुर नगरपालिका में वैद्य जी राज्य के राजा से हमेशा लोहा लेते शिक्षण कार्य किया। नगर निगम द्वारा आप सम्मानित रहे। आजादी के बाद आप शिवपुरी जाकर बस गये। हुए। 1978 में श्रीमती इंदिरागाँधी की गिरफ्तारी पर प्रस्तुत ग्रन्थ लेखकों का परम सौभाग्य है कि उनके विरोध प्रदर्शन करने पर अल्पावधि जेल-प्रवास भी पिता जी के चाचा स्व) श्री मूलचंद जैन बरधवाँ आपने किया। (तत्कालीन खनियांधाना स्टेट) जिला-दतिया आ)- (1) म0 प्र0 स्व0 स0, भाग-1, पृष्ठ-95 (2) स्व0 स0 ज0, पृष्ठ-159 (3) स्व0 प0 (म0 प्र0) वैद्य जी के परम सहयोगी रहे। श्री मूलचंद जो भी अनेक बार खनियांधाना स्टेट से निष्काषित किये श्री रतनचंद जैन गये थे। जुलाई 1995 में वैद्य जी का निधन पनागर, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री हो गया। रतनचंद जैन, पुत्र-श्री हजारीलाल का जन्म 1912 में हुआ। 1930 के जंगल सत्याग्रह में लगभग 3 माह आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै०, भाग-4, पृष्ठ-300 (2) वि) स्व0 स0 इ), पृष्ठ-270-71 (3) जैन सन्देश, 26 जुलाई 1995 का कारावास आपने भोगा। (4) स्व) प० आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-95 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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