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. स्वतंत्रता संग्राम में जैन सरकार पकड़ती थी तो कंजरों (एक आपराधिक बूंदी में भी जुलूस निकालकर राजकीय सम्मान के जाति विशेष) के साथ रखती थी व बहुत भारी साथ अन्तिम संस्कार किया गया। बेडियाँ पहनाकर रखा जाता था। बेडियों के निशान आO- (1) रा) स्व) से), पृ) 115-117, (2) श्री व घाव उनको मृत्यु तक भोगना पड़े। उनके घाव महेशकुमार जैन (बरमुण्डा) द्वारा प्रेषित परिचय। पूरी जिन्दगी नहीं भरे थे, घावों पर हमेशा पट्टी बांधे
श्री गोपीचंद जैन रहते थे। आर्थिक परेशानी व सरकारी उपेक्षा के
आपका जन्म 1912 के लगभग हुआ। राष्ट्रीय कारण इलाज नहीं हो पाया। हाथों की अंगुलियाँ आन्दोलन में आप साढमल, जिला-ललितपुर (उ0प्र0) हथेली की तरफ मड गईं थीं।'
के प्रतिनिधि के रूप में सक्रिय रहे। 1941 व 42 1973 में प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलनों में आपने एक-एक वर्ष का कारावास के सेनानी' ग्रन्थ में पृष्ठ 117 पर श्री सुमनेश जोशी भोगा। ने 'दधीचि ऋषि की अंतिम आकांक्षा' शीर्षक में उनके आ()- (1) प) जै) इ), पृ0 473, (2) जी0सा0रा0अ00 संबंध में लिखा है-'इस समय भी कोटिया जी देशभक्ति में सर्वस्व अर्पण करने को उद्यत हैं। धन तो उनके
श्री गोपीलाल जैन पास है नहीं परन्तु देश की रक्षार्थ दधीचि ऋषि की
सागर (म0प्र0) के श्री गोपीलाल जैन, पुत्र-श्री तरह भक्ति पूर्वक अपनी अस्थियाँ देने का उपयोग वे .
किशोरीलाल का जन्म 1914 में हुआ। आपने 1942 देश की सभ्यता और अखण्डता की रक्षा के लिए करना
के भारत छोड़ो आन्दोलन में 6 माह का कारावास
भोगा। चाहते हैं। यही उनकी हार्दिक कामना है।' इससे पूर्व
आ0- (1) म0प्र0 स्व0 सै), भाग-2, पृष्ठ-20, जोशी जी पृष्ठ-115 पर लिखते हैं-'कोटिया जी
(2) आ) दी0, पृष्ठ-40 आध्यात्मिक साम्यवादी हैं, वे फिलासफर हैं, और उनका रहन सहन भी दार्शनिकों जैसा ही है। लेकिन __श्री गोर्धनदास जैन इस जमाने में, जबकि बुलबुलों को उल्लू न होने का पर्युषण पर्व, वी नि) सम्वत् 2522 गम है, श्री कोटिया जी जैसे व्यक्ति आप से आप (1996 ई0) में अपने आगरा प्रवास के दौरान दिO विस्मृति के गर्भ में छिपते चले जा रहे हैं।'
25-9-96 को एक भव्यात्मा ___हाड़ोती नागरिक मोर्चे की ओर से 15 अगस्त
के दर्शन का सौभाग्य मिला। 1972 को कोटिया जी का सार्वजनिक अभिनन्दन
वृद्धावस्था के कारण जीर्ण किया गया था। इस दिन आपने नयापुरा (कोटा)
होती देह, चेहरे पर झुर्रियां स्थित शहीद स्मारक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।
पर वाणी में ओज, और आज कोटिया जी के निधन की सही तिथि ज्ञात नहीं पर श्री
भी कुछ कर गुजरने की महेश कुमार जैन के आलेख के अनुसार 1975 के
अदम्य लालसा। ये थे श्री लगभग कोटिया जी इन्दिरा गांधी के शासन काल में गोर्धनदास जैन, जो अपनों के बीच 'मास्साब' या जयपुर रैली में उनसे मिलने गये थे, जहाँ उनकी मृत्यु
'मास्टर साहब' उपनाम से विख्यात हैं।
मास्टर र हो गई। इन्दिरा जी के आदेश पर जयपुर में राजकीय श्री गोर्धनदास जैन का जन्म कार्तिक शुक्ल एकम् सम्मान के साथ जुलूस निकाला गया और बाद में वि0 सं0 1970 तदनुसार 30 अक्टूबर 1913 ई0 को
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