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परिशिष्ट-छहः विशिष्ट लेख
स्त्रियाँ राजनैतिक क्रान्ति में भाग लें या नहीं ?
जैन समाज की प्रसिद्ध महिला पत्रिका 'जैन महिलादर्श' ने 'आज की एक विकट समस्या' । स्तम्भ प्रारम्भ किया था। अगस्त, 1946 के अंक का विषय था-'स्त्रियाँ राजनैतिक क्रान्ति में भाग लें या नहीं ?' इस पर आये हुए अनेक निबन्धों में विजया देवी जैन, जगाधरी का निबन्ध सर्वोत्कृष्ट पाया गया था और उन्हें 25 रुपये का पुरस्कार दिया गया था। उक्त निबन्ध हम अविकल यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं
भारत न सहेगा हरगिज गुलाम-खाना, आजाद होगा, होगा, आता है वह जमाना। यह जेल औ' दमन की परवाह है अब किसको,
हँसते-हँसते होगा फाँसी पर झूल जाना।। आह ! कवि ने क्या ही मार्मिक शैली से भारत की वर्तमान राजनैतिक जागृति का वर्णन किया है। आज भारत पराधीन है, निरक्षर है, भूखा है, नंगा है। परन्तु इस हालत में भी उसकी आजादी की भूख नहीं दबी। जमाने बदल गये। उनके साथ वातावरण में भी परिवर्तन हुए। मनुष्यों की विचारधाराएँ भी बदलीं। बहुत सी पुरानी वस्तुओं की जगह नवीन बातों ने अपना आधिपत्य जमाया। लेकिन यह सब होने पर भी जमाना हमारी आजादी की भावना को न बदल सका। आज अनेक कष्टों एवं दमनों को सहकर भारत आजादी के मार्ग पर बढ़ता ही जा रहा है। उसके कानों में बालगंगाधर तिलक का यह वाक्य 'स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' गूंज रहा है। हमारी अन्तिम मंजिल आजादी है। उस पर पहुँचकर ही हम दम लेंगे। यह समय हमारे देशका एक बहुत की नाजुक समय है। यह बात देश के प्रत्येक नेता कह रहे हैं। आजादी की मंजिल तय होनेवाली है। सिर्फ एक ही गम्भीर खाई बनी है। धैर्य एवं साहस से इसे पार करना है। आज भारत में जो राजनैतिक जागृति है वह सराहनीय है। बाल-वृद्ध सब ही आजादी के मतवाले हैं। यह युग राजनैतिक क्रान्ति का है। भारत के इतिहास के यह पृष्ठ भावी सन्तान बड़े गौरव एवं चाव से पढ़ेगी। पर बहिनों, क्या हम नारियाँ इस इतिहास में, क्रान्ति में कुछ भी भाग न लेंगी ? क्या संसार एवं भारतीय पुरुषों से हम यही कहलावेंगी कि भारतीय नारी बिल्कुल अबला एवं कूपमण्डूक है। उन्हें अपने देश के उत्थान या पतन से कोई मतलब नहीं है ? नहीं! कभी नहीं ! हम संसार को दिखा देंगी कि हम वही वीर दुर्गा एवं लक्ष्मी की सन्तान हैं। हमारी धमनियों में वही माँ सुभद्रा का रक्त है जिसने अपने सोलह वर्षीय पुत्र को अपने हाथों से सजाकर रणक्षेत्र में भेज दिया था। हम आज भी भारत की इस राजनैतिक क्रान्ति में भाग लेंगी।
जिस तरह गृहस्थी रूपी रथ के दो पहिये नर एवं नारी हैं। दोनों के सहयोग एवं ज्ञान से ही पारिवारिक जीवन सफल है, उसी तरह राजनैतिक क्षेत्र में भी जब तक नारी कदम न बढ़ावेंगी तब तक यह राजनैतिक युद्ध अधूरा है। यह कमी हमारे प्रत्येक नेता महसूस करते हैं। इसी कारण राजनैतिक क्षेत्र में वे नारी को अधिक
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