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प्रथम खण्ड
403 दिये गये। तबसे उसकी दृष्टि विद्यालय पर कड़ी हो गई। इस घटना से शहर में प्रत्येक की जबान पर विद्यालय का नाम हो गया।
विद्यालय के अधिकारियों में सभी ने इसमें आन्तरिक सहानुभूति दिखाई। पर सबसे अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा अधिष्टाता बाबू हर्षचन्द जी को। एक ओर वे राष्ट्रीय कामों को नहीं रोक सकते थे और दूसरी ओर सरकार का दबाव था, विद्यालय बन्द होने की भी आशंका हो चली थी। पिस्तौलवाली घटना से तो समाज तक में तहलका मच गया। समाज के नेताओं के कड़े तार और पत्र उनके पास आये कि क्रांति में भाग लेने वाले छात्रों को फौरन निकाल दिया जाय। यह ध्यान रहे कि ये वे ही लोग थे, जो अब "राष्ट्रीय सरकार" में "जैन प्रतिनिधित्व" की मांग कर रहे हैं। लेकिन सब काम ठीक चलता रहा।
सच तो यह है कि- अगस्त क्रांति के वे दिन वे ही दिन रहेंगे। उन दिनों में एक आग थी, एक उमंग थी।
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श्री स्याद्वाद महाविद्यालय के सन्दर्भ में डॉ० सम्पूर्णानन्द के विचार श्री स्याद्वाद विद्यालय संस्कृत भाषा और जैन धर्म की जो सेवा कई वर्षों से लगातार करता आ रहा है उससे न केवल काशी वरन् काशी के बाहर भी विद्याप्रेमी लोग परिचित हैं। इसके अधिकारी इस बात का भी सतत प्रयत्न करते हैं कि छात्रों में विद्याभ्यास कराने के साथ-साथ उनमें स्वदेशानुराग भी उत्पन्न किया जाय और वह उस प्रवाह के साथ चल सकें जो इस समय राष्ट्र को आन्दोलित कर रहा है। मुझे यहाँ का काम देखकर संतोष हुआ और आशा करता हूँ कि यह उत्तरोत्तर उन्नति करता जायेगा। 19.12.39
-सम्पूर्णानन्द
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