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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
और देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया। जैन पत्र-पत्रिकायें भी इस दिशा में पीछे नहीं रहीं । परतन्त्रता के जमाने में भी जैन पत्र-पत्रिकायें स्वतन्त्रता के साथ निर्भय होकर स्वतन्त्रता का समर्थन करती रहीं । विश्वशान्ति, स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय भावना के जागरण में जैन पत्रिकायें सदैव अपना दायित्व निभाती रहीं । स्वदेशी की भावना को प्रचारित करने के लिए तो उसने विज्ञापन तक प्रकाशित किये।
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जैन पत्र-पत्रिकायें पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण, सर्वत्र प्रकाशित होती रहीं और लगभग 8-10 भाषाओं में इनका प्रकाशन होता आ रहा है। मणिपुर में हिन्दी पत्रकारिता का श्रीगणेश द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्ध की खबरों के लिए एक जैन पुजारी ने किया था ( द्र० कादम्बिनी, फरवरी 1996, पृष्ठ 42 पर डॉ) देवराज का लेख "मणिपुर की हिन्दी पत्रकारिता " ) | हिन्दी के प्रथम वैयाकरण और जीवट पत्रकार आचार्य किशोरी दास वाजपेयी का स्वातन्त्र्य समर में भाग लेने के कारण जो गोपनीय सम्मान हुआ था वह एक जैन, श्री उग्रसेन जैन, के घर पर हुआ था, (द्र) कादम्बिनी, सितम्बर 1995, पृष्ठ - 5 )
1900 ई0 से अनवरत प्रकाशित होने वाला "जैनमित्र" यद्यपि धार्मिक पत्र है किन्तु उसमें राष्ट्रीय महत्त्व के समाचार न सिर्फ सुर्खियों में प्रकाशित हुए हैं, अपितु उन पर निर्भीक टिप्पणियाँ भी लिखी गयी हैं। इसके सम्पादक रहे पं० परमेष्ठीदास राष्ट्रीय आन्दोलन में अनेक बार जेल यात्रा कर चुके थे। पत्र के 10 जनवरी 1927 के अंक में प्रकाशित राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं
सर न रहे, सामान रहे या साज रहे। आजाद रहे, माता के सर पर ताज रहे ।।
"मेरी जान रहे फकत हिन्द मेरा ये किसान मेरे खुशहाल रहें, पूरी होबे फसल सुख काज रहे। मेरे भाई वतन पे निसार रहे, मेरी माँ बहनों की लाज रहे ।।
मेरी गाय रहे मेरे बैल रहें, घर-घर में भरा सब नाज रहे।
गारे (खद्दर) का कफन हो मुझपे पड़ा, बन्दे मातरम् आबाद रहे।। "
इसी पत्र के 6 जनवरी 1907 के अंक में विविध समाचार के अन्तर्गत सूरत में कांग्रेस के अधिवेशन का वर्णन विस्तार से छपा था । स्वदेशी की भावना के प्रचार में तो पत्र ने अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई थी। अधिकांश अंकों में एतद्विषयक सामग्री प्रकाशित होती थी। 15 नवम्बर 1923 के अंक में प्रकाशित स्वदेशी का विज्ञापन द्रष्टव्य है
"
'अगर आप सच्चे अहिंसा व्रत के पालक हैं
अगर आप सच्चे स्वदेश भक्त हैं तो
विनोद मिल्स उज्जैन का
शुद्ध - जिसमें जानवरों की चरबी नहीं लगाई जाती स्वदेशी - जो देशी कारीगर, रुई व देश के धन से बना है, कपड़ा पहनिये और धन व धर्म बचाईये।
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