Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 470
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट-तीन स्वतन्त्रता संग्राम और जैन पत्रकारिता आधुनिक युग में पत्रकारिता का महत्त्व स्पष्ट है। पत्र-पत्रिकायें व्यक्ति और व्यक्ति तथा शासक और शास्य के बीच में जन-सम्पर्क का सबसे बड़ा माध्यम हैं। महात्मा गांधी ने पत्र-पत्रिकाओं के तीन उद्देश्य बताये थे। प्रथम जनता की इच्छाओं-विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना, द्वितीय वांछनीय भावनाओं को जागृत करना और तृतीय सार्वजनिक दोषों को निर्भयता पूर्वक प्रकट करना। सामाजिक/सांस्कृतिक/धार्मिक/ आर्थिक दृष्टि से पत्र-पत्रिकाओं का जितना महत्त्व है उससे भी अधिक राजनैतिक दृष्टि से है। आजादी से पूर्व की पत्रकारिता राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति पूरी तरह समर्पित थी। तत्कालीन पत्रकारिता एक प्रकार से राष्ट्रीय आन्दोलन के ही विकास की कहानी है। पत्र-पत्रिकाओं के इसी महत्त्व को स्पष्ट करते हुए गांधी जी ने कहा था-"मेरा ख्याल है कि ऐसी कोई भी लड़ाई, जिसका आध पर आत्मबल हो अखबार की सहायता के बिना नहीं चलाई जा सकती। अगर मैंने अखबार निकालकर दक्षिण अफ्रीका में बसी हुई भारतीय जमात को उसकी स्थिति न समझाई होती और सारी दुनियां में फैले हुए भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका में क्या कुछ हो रहा है, इससे 'इण्डियन ओपिनियन' के सहारे अवगत न रखा होता तो मैं अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता था। इस तरह मुझे भरोसा हो गया है कि अहिंसक उपायों से सत्य की विजय के लिए अखबार एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य साधन है।" (सांस्कृतिक चेतना और जैन पत्रकारिता, पृष्ठ-222) जैन पत्र-पत्रिकायें राष्ट्रीय आन्दोलन में स्वातन्त्र्य की भावना जागृत करने में भी पीछे नहीं रही थीं। यह कहना कठिन है कि पहला जैन पत्र कौन है? अब तक प्राप्त अंकों और उल्लेखों के आधार पर सर्व प्रथम जैन पत्र गुजराती मासिक "जैन दिवाकर" था, जो अहमदाबाद से छगन लाल उमेश चन्द द्वारा 1875 ई0 में प्रकाशित हुआ था और लगभग 10 वर्ष बाद बन्द हो गया था। हिन्दी भाषा में निकलने वाला प्रथम जैन पत्र चौधरी पं0 जीयालाल जैन ज्योतिषी द्वारा फर्रूखनगर से 1884 ई0 के आरम्भ में "जैन" (साप्ताहिक) नाम से प्रकाशित हुआ था। कुछ समय बाद उन्होंने उर्दू में "जीयालाल प्रकाश' निकालना शुरू किया था। 1884 में ही सितम्बर मास में शोलापुर से सेठ रावजी हीराचन्द नेमचन्द दोशी ने मराठी-गुजराती-हिन्दी मासिक "जैन बोधक' प्रकाशित किया। डॉ0 ज्योति प्रसाद जैन ने लिखा है-"जैन बोधक" मराठी का तो सर्वप्रथम जैन पत्र-पुरखा है ही वर्तमान जैन पत्र-पत्रिकाओं में सर्वाधिक प्राचीन है और इने गिने सर्वाधिकजीवी भारतीय पत्रों में से भी एक है। (द्र0 तीर्थंकर, अगस्त-सित0 1977, पृष्ठ 10) विश्व में आत्म स्वातन्त्र्य/व्यक्ति स्वातन्त्र्य की घोषणा करने वाला धर्म 'जैन धर्म' है। यहाँ प्रत्येक जीव अपने कर्म का कर्ता और भोक्ता स्वयं है और कर्म करने और कर्मफल भोगने में स्वतन्त्र। व्यापक अर्थ में देखें तो यहाँ मुक्ति का अर्थ ही स्वतन्त्रता है। कोई भी संस्कृति/धर्म/दर्शन राजनैतिक पराधीनता की अवस्था में फल-फूल नहीं सकता, इसीलिए जैन समाज ने कंधे से कंधा मिलाकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया For Private And Personal Use Only

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