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प्रथम खण्ड
397 आमोद...।" पत्र के वीर सं0 2444 (19171) के अंक 1-2,6,8-9 तथा 2445 (1918 ई0) अक 1, 3, 13 तथा 2446 (1919 ई0) अंक ! में अर्जुन ला' सेठी का निरपराध गिरफ्तारी और उन्हें छोड़े जाने की मांग के समाचार विस्तार से छपे हैं। 1918 ई0 के अंक । महात्मा भगवानदीन की गिरफ्तारी का समाचार छपा है। वीर सं0 2450 (1923 ई0) के अंक 1-2 में श्री हजारों सारा सागर की प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित लम्बी कविता का अन्तिम छन्द पठनीय है।
"त्यागो स्वदेश सुख हेतु सभी विदेशी। धारो निजात्म बल हेतु अभी स्वदेशी।। देगी स्वराज्य हमको नियमेन खादी।
सम्पूर्ण मात्र जग के..........आदी।।9।।" इसी अंक के पृष्ठ 56 पर प्रकाशित छैकोडी लाल जैन, गोटीटोरिया की “विदेशी वस्त्रों की विदा" कविता भी देशप्रेम से ओत-प्रोत है। कविता की प्रथम दो पंक्तियाँ हैं
"टलो यहाँ से विदेशी वस्त्रो, न अब तुम्हारी है चाह हमको।
तुम्हीं से भारत हुआ है गारत, किया है तुमने तबाह हमको।।" जैन समाज की विशिष्ट महिला पत्रिका "जैन महिलादर्श'' (सम्प्रति लखनऊ से प्रकाशित) 1924 से निरन्तर प्रकाशित होती आ रही है। अगस्त 1946 के अंक का विषय था "स्त्रियाँ राजनैतिक क्रान्ति में भाग लें या नहीं?'' इस विषय पर अनेक महिलाओं के लेख इस पत्रिका में छपे थे (विशेष विवरण के लिए डॉ0 ज्योति जैन की "स्वराज्य और जैन महिलायें'' पुस्तक देखें, प्राप्ति स्थान 'जैन बुक डिपो, सी-9 कनाट प्लेस, नई दिल्ली-1)
जैन महिलादर्श के 15 मई 1946 के अंक में "नहीं बनेगा पाकिस्तान' विषयक समस्यापूर्ति रखी गई थी, आगे के अंकों में इस विषय पर अनेक कवितायें प्रकाशित हुई हैं। इसी प्रकार "खड़ी द्वार पर आजादी" विषय पर महिलाओं ने अनेक कवितायें लिखी थीं। जनवरी 1942 के अंक में प्रकाशित "आज फिर संसार में सर्वत्र ही सुख शान्ति छाये' की एक समस्यापूर्ति द्रष्टव्य है
"प्रलय युद्ध प्रचण्ड विचलित कर रहा भूलोक को है। चण्डिका फैला रही, चहुँ ओर शोक-विशोक को है।। गगनबेधी बम कहीं विध्वंश करते लोक को हैं। जीव अगणित जा रहे इस लोक से परलोक को हैं।। विश्व गांधी के अहिंसावाद को यदि पथ बनाये। आज फिर संसार में सर्वत्र ही सुख शान्ति छाये।। युद्ध यह पाश्चात्य का अब विश्वव्यापी बन गया है। और जब जापान अमरीका इसी में सन गया है।।
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