Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 468
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 391 जैसा कि हम ऊपर लिख चुके हैं कि जो प्रवासी भारतीय फौज में शामिल नहीं हो सके उन्होंने धनादि देकर आजाद हिन्द फौज की सहायता की थी। ऐसे व्यक्तियों में बर्मा में व्यापार के लिए गये एक प्रख्यात जैन उद्योगपति श्री चतुर्भुज सुन्दर जी दोशी के युवा छोटे भाई श्री मणिलाल दोशी का नाम अग्रगण्य है। मणिलाल जी नेताजी के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण कर आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गये। वे फौज में एक दायित्वपूर्ण विभाग के मन्त्री रहे। जब बर्मा जापान के अधिकार से निकलकर पुन: अंग्रेजों के अधिकार में आया तो बर्मा सरकार ने आपको गिरफ्तार करके रंगून जेल में डाल दिया। आजाद हिन्द फौज के तमाम कैदी रिहा हो जाने के बाद भी बर्मा की अडियल सरकार ने दोशी जी को रिहा नहीं किया, फलत: श्री शरच्चन्द्र बोस के नेतृत्व में एक जोरदार आन्दोलन हुआ और भारत से उनकी पैरवी करने के लिए प्रसिद्ध वकील श्री के) एम) मुन्शी और मि0 के0 एफ नरीमन गये । अन्त में बर्मा सरकार ने दोशी जी को रिहा किया। नौ जुलाई 1943 को नेता जी ने एक विशाल जनसभा में महिलाओं को भी आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया, फलतः " रानी झॉसी रेजीमेन्ट" की स्थापना हुई। अक्टूबर, 1943 में सिंगापुर में महिला कैम्प लगा, फिर मलाया व बर्मा के अन्य भागों में भी कैम्प लगे। इनमें महिलाओं को चिकित्सा, नर्सिंग, ड्रिल, नक्शे देखना, युद्ध-तकनीक, शस्त्र-संचालन आदि सेना के सभी क्षेत्रों का प्रशिक्षण दिया जाता था। आजाद हिन्द फौज की अस्थाई सरकार के नौ विभागों में नारी कल्याण भी एक विभाग रखा गया था। वह विभाग लेफ्टिनेन्ट कर्नल व रानी झॉसी रेजीमेन्ट की कमान्डेन्ट लक्ष्मी स्वामीनाथन् (सम्प्रति श्रीमती लक्ष्मी सहगल) को दिया गया था। तत्कालीन लोकप्रिय और प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ0 प्राणजीवन मेहता की पुत्री रमा बहन और पुत्रवधु श्रीमती लीलावती बहन आजाद हिन्द फौज की "रानी झाँसी रेजीमेन्ट" में सम्मिलित हो गयी थीं। 'जैन सन्देश', राष्ट्रीय अंक (23 जनवरी 1947) ने श्रीमती लीलावती बहन और रमा बहन की कहानी उन्हीं के शब्दों प्रकाशित की थी, जिसे हम यथावत साभार यहां दे रहे हैं श्रीमती लीलावती बहन :- जब ब्रिटिशों ने रंगून छोड़ दिया और जापानियों ने रंगून पर अधिकार जमा लिया तब कुछ समय के लिए अन्धाधुन्धी मच गयी थी। कई मास तक भारतीय स्त्रियाँ घर से बाहर नहीं निकल सकीं थीं। हमने अपने मकान पर एक बोर्ड लगा दिया था जिस पर लिखा था कि- " इस घर में महात्मा गांधी, पं0 जवाहर लाल नेहरू तथा अन्य भारतीय नेता आकर उतरे थे। इस घर में नेशनलिस्ट भारतीय रहते हैं।" इसे पढकर जापानी सोल्जर हमें कभी किसी भी तरह से हैरान नहीं करते थे । श्री सुभाष बाबू ने मलाया और बर्मा में " आजाद हिन्द फौज " और "झॉसी की रानी रेजीमैन्ट " स्थापित करने के लिए भाषण दिये तब हमारा सारा परिवार उनके भारतीय स्वातन्त्र्य संघ में सम्मिलित हो गया । 21 अक्टूबर 1943 को बर्मा और मलाया में " झॉसी की रानी रेजीमेन्ट" स्थापित करने का कार्य पूरा हुआ। रंगून में 10 बालकों को लेकर मेरे हाथ से कैम्प का उद्घाटन हुआ था। जब रात-दिन बम वर्षा होती थी तब भी आवश्यकता होने पर हम खुले मैदान में हथियारों के साथ सुसज्जित होकर खड़ी रहती थीं। हम घायलों की सेवा सुश्रुषा करने और अस्पताल ले जाने का काम करती थीं। मेरा मुख्य काम सबेरे 11 बजे से शाम 5 बजे तक घर-घर जाकर स्त्रियों, लड़कियों और पुरुषों को आजाद हिन्द फौज में सम्मिलित होने के लिए समझाना था। For Private And Personal Use Only

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