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प्रथम खण्ड
389 'जैन सन्देश' राष्ट्रीय अंक (23 जनवरी, 1947) आपके विषय में लिखता है-"गांधी जी आपके विचारों में दृढ़ निष्ठा, एस0 के0 पाटिल आप में विश्वस्त साथी के योग्य गुण और सरदार बल्लभ भाई पटेल आपमें अपने विचारों को कार्यान्वित करने के योग्य परखी हुई प्रतिभा पाते हैं। अनेक सार्वजनिक दायित्वों का भार वहन करते हुए भी आप जैन समाज की अनेक धार्मिक, दातव्य और शिक्षा संस्थाओं के पदाधिकारी ट्रस्टी हैं।" (पृष्ठ 92)
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हा रहा था।
चादर तीन हजार की आजाद हिन्द फौज के जांबाज सैनिकों को मुकदमें की पैरवी के लिए देता हूँ और मन से बंदी बनाया जा चुका था। उन पर लाल किले में परमात्मा का स्मरण करते हुए विश्वास करता हूँ राजद्रोह का मुकदमा चल रहा था। देश भर में कि सैनिक अवश्य ही कारागार से मुक्त होंगे।" असाधारण उत्तेजना, गुस्से और जोश की एक अन्त में उस चादर की नीलामी की गई जो लहर दौड़ गई थी, परिणामस्वरूप अनेक स्थानों उस सस्ते जमाने में भी तीन हजार में बिकी। साध पर विद्रोह हुए। मुकदमें के लिए काफी धन की क की भावना का फल यह हुआ कि शीघ्र ही आवश्यकता थी, अतः जगह-जगह धन एकत्रित आजाद हिन्द फौज के सैनिक मुक्त कर दिये गये। करने के लिए सभायें हो रही थीं।
ये साधक थे क्षु0 गणेश प्रसाद वर्णी, जो बाद. में
"जैन जगत के गांधी" नाम से विख्यात हुए और मध्य प्रदेश (तत्कालीन विन्ध्य प्रदेश) की
जिन्होंने लगभग ढाई सौ स्कूलों की स्थापना की संस्कारधानी जबलपुर में प्रसिद्ध साहित्यकार एवं
तथा अनेक ग्रंथ लिखे। राजनीतिज्ञ पं0 द्वारका प्रसाद मिश्र की अध्यक्षता में "आजाद हिन्द फौज" की सहायतार्थ एक सभा
"वर्णी जी" का जन्म 1874 ई0 में का आयोजन किया गया। इसी सभा में दो चादर
हसेरा (वर्तमान-ललितपुर जिला) उ0प्र0 में एक
वैष्णव परिवार में हुआ। घर के पास स्थित जैन धारी एक साधक भी बैठा था। सभी अपना क्रम
मन्दिर के चबूतरे पर पढ़ी जाने वाली जैन रामायण आने पर बोलते जा रहे थे और कुछ राशि देते जा
__ (पद्म पुराण) को सुनकर वे वैष्णव से जैन रहे थे। अंत में इस साधक की भी बारी आई।
बने और गहन अध्ययन की लालसा में बनारस, मात्र दो चादर परिग्रह रखने वाला देता भी तो ।
॥ जयपुर, कलकत्ता, सागर आदि दशाधिक स्थानों क्या? पर देश की आजादी की उत्कट लालसा पर अध्ययन किया। बनारस में मात्र एक रुपये उसे लगी थी, साधक ने अपना भाषण पूर्ण किया के दान से उन्होंने 1905 में स्याद्वाद महाविद्यालय
और कहा-"मेरे पास देने को कुछ द्रव्य तो है की स्थापना की जिसके वे संस्थापक और प्रथम नहीं, केवल दो चादरें हैं, इनमें से एक चादर विद्यार्थी थे।
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