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परिशिष्ट-दो
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आजाद हिन्द फौज और जैन
भारतीय स्वातन्त्र्य समर की गाथा तब तक अपूर्ण ही कही जायेगी जब तक उसमें नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज का जिक्र न हो। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से ब्रिटिश हुकूमत डर गई थी और उसे लगने लगा था कि हमें भारत छोड़ना पड़ेगा, किन्तु फिर भी किसी तरह वह लड़खड़ाते पैर जमाने की कोशिश कर रही थी। इधर आजाद हिन्द फौज की क्रान्तिकारी गतिविधियों से भी वह पूरी तरह घबरा गई। इन सबकी परिणति 1947 में देश की आजादी के रूप में हुई ।
1942 के आन्दोलन के समय भारत में क्रान्तिकारियों को जिस तरह की क्रूर सजायें दी जा रही थीं उन्हें देखते हुए कई क्रान्तिकारी जापान, चीन, मलाया, बर्मा आदि देशों की ओर चले गये थे और वहीं से अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन कर रहे थे। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस ने जापान में शरण ली थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब जापान ने मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तब टोकियो में एक सम्मेलन में रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई और निर्णय लिया गया कि बर्मा, मलाया, थाईलैण्ड आदि देशों में भी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन चलाया जाये।
जापानी फौजें जब मलाया की ओर बढ़ीं और सिंगापुर में अंग्रेज हार गये तब विजेता जापानी मेजर फूजीवारा ने भारतीय फौजों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि - 'जापान भारत के विरुद्ध नहीं है अतः भारतीय सैनिक हमारे युद्ध बन्दी नहीं।' तब कैप्टन मोहन सिंह और ज्ञानी प्रीतम सिंह भारतीय फौजों के कमाण्डर बना दिये गये और उन्होंने जापान की सहायता से भारत को आजाद कराने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया। तभी मलाया में रहने वाले भारतीयों ने भी " इण्डिया इंडिपेंडेंस लीग" नामक संस्था की स्थापना की। इसी लीग के नियन्त्रण में " आजाद हिन्द सेना" संगठित करने का निर्णय लिया गया। कैप्टन मोहन सिंह इसके कमाण्डर बनाये गये और बीस हजार सैनिक इसमें शामिल हो गये। इसी समय सुभाषचन्द्र बोस गुप्त रीति से भारत से टोकियो पहुँचे। रास बिहारी बोस ने सिंगापुर में घोषणा कर दी कि - ' अब आगे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व सुभाषचन्द्र बोस करेंगे। '
26 जून 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने टोकियो रेडियो से प्रवासी भारतीयों के नाम अपना पहला भाषण प्रसारित किया। बीस हजार भारतीय सैनिकों की शानदार परेड में उन्हें सलामी दी गई। इस समारोह में जापानी प्रधानमंत्री भी उपस्थित हुए थे। सुभाषचन्द्र बोस ने " आजाद हिन्द फौज " के नाम की प्रसिद्ध अपील प्रकाशित की, जिसके अन्त में उन्होंने कहा था - " तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा।" इसी के बाद सभी ने सुभाषचन्द्र बोस को "नेताजी " उपनाम से पुकारना प्रारम्भ कर दिया था। जो लोग सेना में नहीं थे उन्होंने धन से व अन्य प्रकार से फौज की सहायता करना प्रारम्भ कर दिया। आजाद हिन्द फौज में जैनियों ने भी बढ़-चढ़कर सहयोग दिया था। धन-धान्य की अपरिमित सहायता इस समाज ने की थी। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के निजी चिकित्सक रहे कर्नल डॉ) राजमल कासलीवाल अपनी अंग्रेज सेना की कर्नली छोड़कर आजाद हिन्द फौज में सम्मिलित हो गये थे। (इनका परिचय पीछे दिया जा चुका है)
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