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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
___ मालवीय जी की संविधान के प्रति अटूट आस्था राजनीति और क्षेत्र के कामों में अक्सर इतना थी। वे स्वयं सदैव संविधान के दायरे में देश सेवा में डूब जाता हूँ कि पढ़ नहीं पाता और मन इस कारण संलग्न रहे। उनकी सुपुत्री श्रीमती सुधा पटोरिया ने उद्विग्न हो उठता है, बेचैनी होने लगती है। तब रात उनकी स्मृतियाँ संजोते हुए लिखा है - 'वह के समय पढ़ना अनिवार्य हो जाता है इस समय मैं संविधान की सुनहरी जिल्दवाली वृहदाकार प्रति को कुछ सैद्धांतिक या महान् लेखकों की पुस्तकें पढ़ना शास्त्रों की तरह कपड़े में लपेटकर अपनी गोदरेज की पसंद करता हूँ जो राजनीति से बिल्कुल दुर हो। अलमारी में इतने प्यार और श्रद्धा से रखते थे जैसे कोई अपने जन्म भर की जमा पूंजी सहेज रहा हो। दीपावली की लक्ष्मी पूजा के समय भी वह
सफर करते हुए भी मैं काफी पढ़ने और लिखने संविधान की पुस्तक को वहाँ आदरपूर्वक रखते उसकी का कार्य कर लेता हूँ। काँग्रेस व क्षेत्र के कार्य से पजा करते. वही उनकी लक्ष्मी थी वही सरस्वती। संबंधित पत्र, घर पर राजी खुशी का पत्र अक्सर रेल दीपावली की डायरी में उनका यह महत्त्वपूर्ण अभिलेख के डिब्बे में ही लिखता हूँ। अतः स्थान की जगह मिला, जिसे पढकर मैं अभिभत हो गई- "लक्ष्मी पूजन लिखना पड़ता है 'दौड़ती हुई रेलगाड़ी अमुक से के नाम पर मैं सदैव ही भारत के विधान की पजा अमुक स्टेशन के बीच', कभी-कभी अधिक हिलने करता रहा हूँ। मेरे लिए यह गौरव की बात है कि मैं के कारण हस्ताक्षर बिगड़ जाते हैं। कुछ दिनों से मुझे संविधान सभा का सदस्य रहा हूँ तथा उस पर मेरे रेल में लिखने में तकलीफ होने लगी है आंखों से दस्तखत हैं। विधान निर्माता के रूप में उस पर श्रद्धा भी कम दिखने लगा है। शायद यह बढ़ती हुई उम्र रखना तथा उसके अनुसार काम करना मेरा प्रथम का कारण है। कर्तव्य है......संविधान में पूरे देश का हित निहित है।" * * * *
निरन्तर चिन्तनशील और अध्ययनशील मालवीय यदि मनुष्य सदा प्रयत्नशील रहा तो हिमालय जी सदैव अध्ययन और लेखन में संलग्न रहा करते को उसके सामने झुकना ही पडेगा। क्यों कि उसके थे। उनकी डायरी के कुछ अंश प्रेरणास्पद होने से हम दुबले-पतले शरीर में मस्तिष्क जैसी चीज है, जो यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
किसी बंधन को नहीं मानती। उसमें ऐसी भावना है मेरा जीवन एक क्षणिक मोमबत्ती की तरह नहीं जो पराजय को कभी स्वीकार नहीं करती। पर आज होगा। वह उस मशाल की तरह होगा, जिसे मैं भावी के युग में साहसिकता धीरे-धीरे विदा होती जा रही पीढियों के हाथ में थमा कर जा सकूँ और वह मशाल है। अभी भी यह विशाल संसार उन्हीं का साथ देता उनके पथ को आलोकित कर सके।
है, जिनमें भावुकता और साहसिकता होती है। तारे
समुद्र के पार उन्हीं का आवाहन करते हैं। वैसे साहस पढ़ना-लिखना तथा चिन्तन करना मुझे सदैव से दिखाने के लिए ध्रुवों पर या रेगिस्तान में जाने की पसंद है। कितना ही शरीर थका हो कुछ देर अवकाश जरूरत नहीं होती। जीवन के छोटे-छोटे मोड़ों पर ही निकाल कर यदि मैं पढ़ने बैठ जाता हूँ तो सारी थकान साहस की असली परीक्षा होती है। किसी लेखक ने उतर जाती है। शरीर में पुनः ऊर्जा प्रवाहित होने लगती कहा है 'बिना निराश हुए पराजय को सह लेना पृथ्वी है, ऐसा महसूस करता हूँ।
पर साहस की सबसे बड़ी विजय है'। अतः जीवन ★ ★ ★ ★ . में स्थितियों का सामना धैर्य, हिम्मत व साहस से
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