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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री रूपचंद बजाज
कांग्रेस में आपने स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया दमोह (म0प्र0) के बहुआयामी व्यक्तित्व श्री था तथा तीन सप्ताह तक अपनी सेवायें अर्पित की रूपचंद बजाज का जन्म प्रसिद्ध बजाज परिवार में 4 थीं।
अप्रैल 1912 को हुआ। 1942 में 13 अगस्त को दमोह के गांधी चौक आपके पिता श्री दुलीचंद में एक सार्वजनिक सभा को सम्बोधित करते हुये तथा बजाज दमोह के प्रतिष्ठित दिल्ली का आंखों देखा हाल सुनाते हुये आपको गिरफ्तार नागरिक थे, वे जैन धर्म और कर लिया गया तथा उसी रात्रि सागर जेल भेज दिया दर्शन में गहरी आस्था रखने गया। 17-8-42 को नागपुर जेल में आपको वाले समाजसेवी भी थे। स्थानान्तरित कर दिया गया तथा 6-1-43 को मुकदमा
रूपचंद जी बचपन में बहुत चलाने हेतु फिर सागर जेल लाया गया और 16-3-43 कमजोर थे और प्राय: बीमार रहते थे, अत: श्री को तीन माह के कठोर कारावास की सजा सुनाकर दुलीचंद के मित्र अखाड़ेबाज श्री रम्मू उस्ताद की सलाह 25-3-43 को अमरावती जेल भेज दिया गया। पर रूपचंद जी को व्यायाम का शौक उत्पन्न करने के अमरावती जेल का जेलर मासूम अली अपनी लिए उनके चाचा प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री राजाराम क्रूरता के लिए भारतभर में प्रसिद्ध था। उसने कैदियों बजाज ने जैनधर्मशाला के पास बाहुबली व्यायामशाला को 1941 में अनशन करने पर पानी देना बंद कर स्वयं के खर्च से बनवाई, जिसमें लाठी, लेजिम, तलवार, दिया था और उन्हें पेशाब पीने पर मजबूर किया था। भाला आदि चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। इस बजाज जी ने मासम अली के स्वभाव पर निम्न कविता व्यायामशाला में जैन-अजैन का भेद नहीं था और इसके लिखी थी। पहलवान आजादी की लड़ाई में सदैव आगे रहे। इस आज हम मासम सैंया से मिलेगें। व्यायामशाला से सम्बद्ध अनेक सेनानियों का परिचय
___ इस मिलन पर देखाना क्या गुल खिलेंगे।। इस ग्रन्थ में दिया गया है।
तनी भौ है' चुस्त कद सर लाल टोपी। व्यायाम के बल पर रूपचंद जी इतने स्वस्थ हो
डिसीप्लिन के नाम पर क्या शान रोपी।। गये कि जब 1942 में सागर जेल पहुंचे तो जेलर की
झूमते बल खाये से वे क्या गजब की चाल चलते। प्रतिक्रिया थी- 'आज हमारी जेल में सबसे वजनदार
कोट के खोले बटन घबराये से आते टहलते।। कैदी आया है।'
जो सलामी दागने से बनाये कोई बहाना। आपने प्राथमिक शिक्षा राष्ट्रीय पाठशाला में पाई, जहाँ महापुरुषों की कहानियाँ सुनना और सूत कातना
रूठकर सैंया उसे झट भेज देते गुनाहखाना।। अनिवार्य था। बाद में इस शाला के बन्द होने पर आपने हैं बड़े चुह ली मजाकी सै या हमारे । नगर परिषद् की पाठशाला में पढ़ाई पूरी की। युवावस्था अब न जाने कब मिले सैया हमारे ।। में ही आप स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। खादी रात्रि अपनी बैरक में साथियों को सुनाते समय का प्रचार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं शराबबन्दी बाहर खड़े जेलर ने भी यह कविता सुन ली। दूसरे आन्दोलनों में भागीदारी आपके प्रमुख कार्य थे। 1930 दिन दोपहर में बजाज जी को दफ्तर में बुलवाया गया से आपने सिर्फ खादी पहनने का व्रत लिया। त्रिपुरी तथा रात्रि वाली गजल इस शर्त पर सुनाने का आग्रह
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