Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 410
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 333 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया तथा 18 सित) श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन 1942 से 6 मार्च 1943 तक का कारावास भोगा। सहारनपुर (उ0प्र0) की श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-63 (2) ने 1941-42 में जेल यात्रा की थी। आपके पति बाबू आ0 दी0, पृष्ठ-79 अजितप्रसाद जैन भारतीय संविधान निर्मातृ सभा के श्री लक्ष्मीचंद नारद सदस्य रहे थे। वे केन्द्र में पुनर्वास, खाद्य एवं कृषिमंत्री, सतना (म0प्र0) के श्री लक्ष्मीचंद नारद, पुत्र-श्री उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य, मुन्नालाल जैन ने 1931 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय केरल के राज्यपाल आदि अनेक पदों पर रहे थे। श्री रूप से भाग लिया व 15 दिन की सजा भोगी। जैन 1926 से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-275 हो गये थे उन्होंने अनेक बार जेल यात्रायें की। आप श्री लयीत सोया उनकी सहधर्मिणी होते हुए भी स्वतंत्र विचारक थीं। जबलपुर (म0प्र0) नगर निगम के पार्षद रहे 1935 में जब स्वतंत्रता संग्राम के लिए सहारनपुर में श्री लक्ष्मीचंद समैया, पत्र-श्री बाबूलाल का जन्म 'स्त्री समाज' की स्थापना हुई तो आप इसकी प्रमुख 1906 में जबलपुर में हुआ। 1942 के आन्दोलन में कार्यकर्ची थीं। 1 वर्ष 1 माह 8 दिन का कारावास आपने काटा। 1941-42 में जब आपने जेल यात्रा की तो साम्प्रदायिक मेल-जोल बढ़ाने में आपका सक्रिय आपकी कुछ महीने की पुत्री आपके साथ थी। भगवान् योगदान रहा था। आपने 'हरिजन सेवक संघ' में अपनी महावीर की साधना और पूज्य बापू की सहनवृत्ति से सक्रिय भूमिका निभाकर अस्पृश्यता निवारण का प्रेरणा लेने वाली श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन के सन्दर्भ प्रयोगात्मक रूप प्रस्तुत किया था। में प्रसिद्ध साहित्यकार एवं स्वतंत्रता सेनानी श्री आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-105 (2) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने जैन संदेश में लिखा स्व० स० ज0, पृष्ठ-168 है-'आपका बाहरी परिचय यह कहकर दिया जा सकता श्री लक्ष्मीचंद सोधिया है कि आप श्रीमती अजित प्रसाद जैन हैं पर सच पिताश्री का देहावसान होने पर सहानुभूति में जेलर यह है कि यह आपका कोई परिचय ही नहीं है। निश्चय द्वारा दिये गये अवकाश को भी स्वीकार न करने वाले ही यदि श्रीमती लक्ष्मीदेवी का विवाह किसी गरीब, सुरखी, जिला-सागर (म0प्र0)निवासी श्री लक्ष्मीचंद अशिक्षित से हुआ होता, तब भी वे उतनी ही सोधिया 1941 में जेल गये तथा 1942 में 20 अगस्त आदरणीय होती, जितनी आज हैं। पर यदि भाई को पुनः गिरफ्तार कर लिये गये। आपके जेल जाने अजितप्रसाद जी के साथ किसी इंग्लैण्ड रिटर्न बीबी के दो माह बाद आपके पिताश्री का देहान्त हो गया का विवाह हुआ होता तो आज उनका जीवन कछ और था। आपके घर में आपके सिवा कोई भी आदमी कमाने तरह का होता। यही नहीं कि वे उनकी सब प्रकार वाला नहीं था, ऐसी दशा होते हुए भी आपने जेल की नगल का की चिन्ताओं का बीमा हैं, उनका बल भी हैं। प्रतिदिन 15 दिन की छुट्टी डी0 सी0 के कहने पर मंजूर नहीं जितने और जितने प्रकार के अतिथियों का स्वागत उन्हें की। आपके ऊपर पुलिस ने 6 केस चलाये थे, जिनमें करना पड़ता है, और उसमें जो सफलता उन्हें मिलती 2 साल 6 माह की सजा हुई थी। है उस पर ताजमहल होटल का मैंनेजर भी ईर्ष्या कर आ)- (1) जै0 स0 रा0 अ0 For Private And Personal Use Only

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