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प्रथम खण्ड
335 मुलाकात उसी मकान पर हुई थी। वे सुबह बड़ी जल्दी आजादी के बाद छजलानी जी ने 1947 की साइकिल पर घर से निकल पड़ते और कार्यकर्ताओं अंतिम तिमाही में श्री कृष्णकान्त व्यास से 'नई दुनिया' के घर जाकर उनकी खैर-खबर लेते उनकी जरूरतों समाचार पत्र ले लिया। व्यास जी इसे चला नहीं पा की पूर्ति करवाते, हर तरह की मदद करते। यह उनका रहे थे। आज 'नई दुनिया' मध्य प्रदेश का सर्वाधिक रोज का एक नियम जैसा था। इसी कारण वे भाई प्रसार संख्या वाला दैनिक है। यह देश के भाषायी नारायणसिंह के घर भी अक्सर सुबह-सुबह आ जाते। समाचार पत्रों में भी बहुत आगे है। अखबार को कार्यकर्ताओं की क्या समस्याएं हैं, कैसी तबियत है, प्रभावशाली बनाने के लिए 'बाबूजी' ने कितने कष्ट उनके घर की क्या परिस्थिति है, आदि सब बातों की झेले, कितनी रातों तक जागरण किया यह बताना जानकारी वे पूछते और मदद करते, हौसला बढ़ाते। असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। इस समाचार पत्र उनकी बातचीत सिर्फ भाई नारायणसिंह से होती। अन्य ने एक लम्बी यात्रा अपने वर्तमान स्वरूप को पाने में साथियों के नाम पते गुप्त रखे जाते। लाभचंद जी को की है। अपने साथियों से बाबूजी का जो मृदुल व्यवहार भी उनके नाम पते नहीं मालूम थे। फिर भी, वे आते रहा है वह भी इस समाचार पत्र की प्रगति में एक और सब की खैर-खबर पूछ जाते। पूछते कि सब कारण है। ठीक-ठाक तो है। भाई नारायणसिंह व हमको ऐसा छजलानी जी के व्यक्तित्व का एक महत्त्वपूर्ण लगता मानो अपने परिवार का ही कोई बडा व्यक्ति पहलू है 'पर्दे के पीछे रहना'। उन्होंने जो किया, जो हमारी खैर-खबर रखता है। कार्यकर्ताओं में वे कोई दिया उसके बदले में कभी कुछ नहीं चाहा। 'जो व्यक्ति भेद नहीं करते। क्रांतिकारी हो या गांधीवादी या एक बार राजनीति में प्रवेश कर जाता है, वह प्राय: व्यवसायी, वे सबके पास साइकिल पर सुबह-सुबह जिन्दगी भर उससे लौट नहीं पाता।' छजलानी जी ने जाते, मिलते, पूछताछ करते, जरूरत के मुताबिक इसे झूठा साबित कर दिया। रियासतों के विलय के समानत : सबकी मदद करते। एक तरफ हम बाद जन्मा 'मध्यभारत' आठ वर्षों तक कायम रहा। पिस्तौल-बंदूक- हथगोले-बम वालों का क्रांति दल था, इस पूरे समय में लाभचंद जी 'किंगमेकर' कहलाते तो दूसरी ओर प्रजामंडल में कम्यनिस्ट कार्यकर्ता रहे। मंत्रिमंडल उनकी राय से बनते और बदलते रहे. दिवाकर, सरमंडल और खंडकर आदि भी थे. जिनकी लेकिन उन दिनों भी मंच पर या मंत्रिमंडल में या कैमरे विचारधारा और काम करने का तरीका गांधीवादियों
के सामने आने की वासना छजलानी जी में कभी पैदा से मेल नहीं खाता था। तीसरी तरफ सेठ ब्रदी भोला नहीं हुई। 1957 के आरम्भ में कांग्रेस के वार्षिक अधि जैसे व्यवसायी भी कार्यकर्ता, हमदर्द व मददगार थे।
और वेशन का सारा इन्तजाम उन्होंने किया, लेकिन दस्तावेजों लाभचंद जी सब से समानत: मिलते थे। यह उनका
में कहीं इसका उल्लेख नहीं मिलता। 19 जनवरी एक शौक कहिए या स्वयं का कर्तव्य बोध कहिए 1981 का छजलानी जी का देहावसान हो गया, पर जो भी था, था।'
यश:शरीर से वे आज भी हमारे बीच हैं।
आ3-(1) जै) स0 रा0 अ0 (2) नई दुनिया, 20-1-81 1942 के आन्दोलन में छजलानी जी ने खुलकर ।
एवं 15-887 तथा 10-10-97 भाग लिया। वे गिरफ्तार कर लिये गये, जेल में उनके साथ श्री नरेन्द्र तिवारी, श्री बाबूलाल पाटोदी, श्री
श्री लालचंद चोरड़िया बसन्तीलाल सेठिया, श्री राहुल बारपुते आदि थे। वे 'मन्दसौर जिला स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ' के लगभग एक साल जेल में रहे।
अध्यक्ष श्री लालचंद चोरडिया का जन्म मन्दसौर
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