Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 415
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 338 पूछो। तीसरी बैरक वालों ने कहा कि यहां तो सब ठीक है, चौथी बैरक वालों से पूछो। चौथी बैरक वालों से पूछा, उन्होंने कहा कि कण्डील गिर गया था इसी से हो हल्ला हुआ था। सबेरे पूरे शहर में पेम्पलेट्स बंटे कि सरकार कैसे बेवकूफ बनी। जेल में हमारे पत्रों का आना-जाना निरन्तर चलता रहता। घर से जो भोजन आता था, उसमें रोटियों के भीतर संदेश आते थे। रोटी इस ढंग से बनाई जाती थी कि उसके पुड़ में संदेश होता था। उस जमाने में भी ऐसी कलाकारियां चलती थीं। हम तीन-चार महीने तो इन्दौर सेन्ट्रल जेल में रहे, दो-तीन महीने गरोठ जेल में रहे और फिर भानपुरा जेल में, इस तरह कुल मिलाकर आठ महीने 6 दिन जेल में रहे । गरोठ में उस समय डी0 आई0 जी0 दांतरे थे। उसी समय के आसपास की बात है कि एक जुलूस हम लोगों ने निकाला। हमने अपने मकान पर तिरंगा झण्डा फहरा दिया। इसकी खबर डी0आई0जी0 दांतरे को मिल गयी। वे सदल-बल गरोठ से भानपुरा आये। उन्होंने अपने साथ आये जवानों से तिरंगा झण्डा उतारने के लिये कहा। उस समय सैकड़ों लोग बाहर खड़े झण्डा उतारने दृश्य को देख रहे थे। जैसे ही वे लोग झण्डे तक पहुंचे, झण्डे को अचानक तब एक चील लेकर उड़ गयी। सारे लोग तालियां बजाने लगे। सिटपिटाये डी0आई0जी0 ने तब हुक्म दिया कि -' झण्डा ही नहीं है तो जिस डण्डे पर झण्डा था, उसी को सबूत के तौर पर जब्त करो।' हमें किसी तरह कॉलेज में प्रवेश मिला । सन् 43 की बात है यह। हमने कॉलेज की सोशल गैदरिंग शुरू की, यह गैदरिंग 41 के बाद बन्द हो गयी थी। इसके लिये हमने महान् वैज्ञानिक सर सी0वी0रमन को आमंत्रित किया। सर सी0वी0 रमन के आने की खबर पाकर महाराजा होल्कर भी इसमें Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतंत्रता संग्राम में जैन आने को सहमत हो गये। उन्होंने कॉलेज में एक स्वीमिंग पूल के लिये 41 हजार रुपये का दान भी दिया था। उसी का उद्घाटन करना था। तो सोशल गैदरिंग के पहले दिन स्वीमिंग पूल का उद्घाटन हुआ। इसमें हमने भारतमाता की वन्दना के नाम से बड़ी तरकीब से 'वन्दे मातरम्' शुरू करवा दिया। हम कॉलेज के यूनियन अध्यक्ष और प्रिंसिपल साहब यह कार्यक्रम शुरू कराकर एक कमरे में आकर बैठ गये। इससे महाराजा होल्कर चिढ़ गये। कार्यक्रम छोड़कर बाहर आये। हमें ढुंढवाया। मिलने पर बड़े गुस्से से बोले कि आपने बगावत की है। हमने कहा कि हम लोग तो इन्तजाम में लगे थे, हमें मालूम ही नहीं कि क्या हुआ। उन्होंने कहा कि 'वन्दे मारतम्' का गायन हुआ और आपको पता नहीं। हमने कहा कि हमने कहीं लिखा नहीं कि 'वन्दे मातरम्' होगा फिर भी हम इसकी पूरी जांच करवा लेते हैं, पता लगा लेते हैं। किसी प्रकार महाराज साहब को शान्त किया। वे चल दिये हम लोग वापस आ गये। सन् 46 में आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस थी, प्रजामण्डल की, उदयपुर में। इसमें पं० जवाहरलाल नेहरू, शेख अब्दुल्ला आये थे। इस कांफ्रेंस से लौटकर आ रहे थे, हम लोग रतलाम में रेलवे के एक डिब्बे में जाकर बैठ गये । गाड़ी चलने के पांच सात मिनिट पहले ही एक व्यक्ति ने इस डिब्बे पर 'रिझर्व फार पोस्ट ऑफिस' चॉक से लिख दिया और कहा कि उतरो। हमने कहा कि हम नहीं उतरेंगे, आखिरकार डेढ़ घण्टा गाड़ी लेट होने के बाद हम सबको गिरफ्तार करके थाने में ले जाकर बन्द कर दिया। जैसे ही रतलाम में लोगों को खबर लगी वैसे ही डॉ० देवी सिंह आदि आये। उन्होंने हमारी जमानत ली तथा शाम को सात बजे हम लोग इन्दौर पहुंचे। मुकदमा चला। यह मुकदमा रेसीडेंसी में 9-10 महीने चला पर रेलवे को बाद में माफी मांगनी पड़ी। For Private And Personal Use Only

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