Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 461
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 384 शासक से बातचीत की। इस दुस्साहस का फल उन्हें भोगना पड़ा। मैहर रियासत के भीतर उनका प्रवेश वर्जित कर दिया गया। 1930 के सत्याग्रह - संग्राम के ऐतिहासिक दिनों में नारद जी जब सतना से जबलपुर आये, तब उनके पास केवल आठ आने की पूँजी थी और कपड़े की फेरी लगाकर उन्होंने काफी समय तक गुजारा किया। पर बाद में महात्मा गांधी के स्वदेशी आन्दोलन से प्रभावित होकर और उनके द्वारा विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाने के आह्वान किये जाने से नारद जी ने वस्त्र व्यवसाय को सदैव के लिए तिलांजलि दे दी। यह घटना नारद जी के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और यहीं से उनके अन्दर के 'पत्रकार' का उदय हुआ। 'लोकमत' का प्रकाशन तब जबलपुर से प्रारम्भ हुआ ही था। उसके सम्पादक पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र थे। वह परिवेश जहाँ एक ओर ब्रितानी साम्राज्यवाद के आतंक से बोझिल था, वहीं दूसरी ओर उसमें राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत होकर जूझ मरने का संकल्प भी भरा था। नारद जी को 'लोकमत' के माध्यम से अपनी चेतना को अभिव्यक्त करने का अवसर मिला। वे 'लोकमत' के सहायक सम्पादक नियुक्त हुए, लेकिन साथ ही तत्कालीन प्रखर दैनिकों ‘वर्तमान’, ‘स्श्विामित्र', 'जन्मभूमि', 'लीडर' और 'अमृत बाजार पत्रिका' के जबलपुर स्थित संवाददाता भी बन गये। नारद जी के भेजे गये समाचार स्वाधीनता के लिए बेचैन भारतीयता की अभिव्यञ्जना होते थे, जिसका सम्यक् पुरस्कार गौराङ्गशाही ने उन्हें दिया। 1942 में बम्बई में कांग्रेस की बैठक की कार्यवाही के समाचार संकलन करते हुए नारद जी गिरफ्तार कर लिये गये और 15 दिन हिरासत में रखने के बाद रिहा किये गये। जबलपुर वापिस आने पर आन्दोलन से Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतंत्रता संग्राम में जैन सम्बन्धित समाचारों के प्रकाशन के कारण पुनः गिरफ्तार हुए और लगभग 7 माह नजर बन्द रहे। पत्रकारिता के लिए निरन्तर जेल यात्रायें करने वाले नारद जी मध्यप्रदेश के अकेले पत्रकार थे। आपकी निर्भीक पत्रकारिता बेडगांव की एक घटना से सिद्ध होती है, जिसमें नारद जी ने कतिपय अंग्रेज सैनिकों द्वारा ग्रामीण महिलाओं को बेइज्जत करने का समाचार अपने अखबारों में भेजा था। बौखलाये अंग्रेजों ने उक्त घटना का प्रमाण देने अथवा परिणाम भुगतने की चेतावनी जब नारद जी को दी, तो नारद जी ने विस्तारपूर्वक पूरी घटना को हुकूमत के सामने पेश कर दिया । अन्ततः ब्रिटिश सत्ता को मिलिटरी ट्रिब्यूनल नियुक्त करना पड़ा और दोषी सैनिकों को दण्ड मिला। नारद जी का व्यक्तिगत सम्पर्क राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ० राजेन्द्र प्रसाद से था। आज से साठ वर्ष पूर्व केवल कलम के आधार पर जीविका अर्जित करने वाले वे मध्यप्रदेश के अकेले पत्रकार थे। कर्मठता, सजगता, दूरदर्शिता राष्ट्रीयता, लगन-शीलता, कर्त्तव्यपरायणता, मौलिकता और कलम की ईमानदारी उनके व्यक्तित्व के पर्याय बन गये थे। नारद जी को अपने कार्यों के लिए प्रशंसा और पुरस्कार की अपेक्षा नहीं थी, वे उन सबसे बहुत दूर थे। उन्होंने कुर्बानियाँ दीं, क्योंकि यही देश में चल रही आजादी की लड़ाई का आह्वान था। 1939 में जबलपुर की त्रिपुरी कांग्रेस में प्रचार समिति के वे संयोजक थे और कांग्रेसाध्यक्ष के 52 हाथियों के जुलूस की व्यवस्था उन्होंने की थी । त्रिपुरी कांग्रेस के अध्यक्ष नेताजी सुभाषचन्द्र बोस नारद जी के अनन्य प्रशंसको में थे, जिन्होंने कहा था कि 'नारद जी की पत्रकारिता आजादी का शंखनाद है । ' नारद जी ने आजादी की लड़ाई में सबकुछ गवां दिया। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम की खातिर For Private And Personal Use Only

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