Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 441
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 364 स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री साबूलाल जैन प्रवास में आप हरिजन उत्थान समिति के मंत्री तथा स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण शिक्षक बंगाल हरिजन बोर्ड के सदस्य थे। उन्हीं दिनों आपने पद से निलम्बित किये गये, दमोह (म0प्र0) के श्री 'समाज-सेवक', 'ओसवाल' और 'तरुण जैन' जैसे साबलाल जैन, पुत्र-श्री सुखलाल जैन का जन्म 1906 पत्रों का सम्पादन किया। उन दिनों आप हिन्दुस्तान में हआ। अल्पवय में ही आप 1921 से स्वतंत्रता संग्राम टाइम्स, अमृतबाजार पत्रिका, विशाल भारत आदि में जबलपुर में सक्रिय हो गये। विदेशी वस्त्र बहिष्कार राष्ट्रीय समाचार पत्रों में लेख लिखा करते थे। तथा 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में आपने भाग 1942 के आन्दोलन के समय आपने इण्डियन लिया। आपने अध्यापन और प्रशिक्षण प्राप्त किया और चेम्बर कलकत्ता से त्यागपत्र दे दिया और आन्दोलन शिक्षक बन गये, शिक्षण कार्य करते हुए भी जेल में में कूद पड़े। वाराणसी जेल में दो वर्ष का कारावास क्रांतिकारियों को सामग्री पहँचाते रहे और प्रचार साहित्य आपको भुगतना पड़ा तभी आपने अपना शेष जीवन का वितरण किया। राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने सार्वजनिक सेवा में लगाने का निश्चय किया। अपने के कारण शिक्षक पद से आपको निलम्बित कर दिया जमे जमाये मंत्री पद को लात मारकर आन्दोलन में गया था। कूदने वाले कितने हैं? आपके इस कार्य की प्रशंसा आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ 91 करते हुए जैन सन्देश (राष्ट्रीय अंक), 23 जनवरी 1947 लिखता हैश्री सिद्धराज ढढ्ढा (राजस्थान के सिद्धराज ढढ्ढा) कलकत्ता के भारत सरकार द्वारा 2002 में घोषित पद्मभूषण । पद्मभूषण चेम्बर आफ कॉमर्स में सेक्रेटरी का भार संभाले हुए सम्मान को सरकार की नीतियों से असहमत होने के । __ थे, किन्तु स्वतंत्रता का दीवाना सेठों के चांदी और कारण अस्वीकार करने वाले सोने के सट्टे का हिसाब रखने में ही अपनी प्रतिभा प्रसिद्ध गांधीवादी तथा सर्वोदय नेता श्री सिद्धराज ढढ्ढा का। का व्यय कैसे करता रह सकता था, फलतः आप जन्म 12 फरवरी 1900 को वहा स जयपुर चल आये ओर यहाँ आकर जन-सेवा और जन-जागति का कठिन व्रत स्वेच्छा से अंगीकार जयपुर (राजस्थान) में हआ। महाराजा हाईस्कल तथा किया और दैनिक 'लोकवाणी' का संस्थापन, संचालन महाराजा कालेज, जयपर में और सम्पादन करना आरम्भ कर दिया है। यहाँ प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा आकर थोड़े ही दिनों में आपका विशिष्ट स्थान बन ग्रहण कर 1928 में आपने लखनऊ विश्वविद्यालय गया है। ऐसे राष्ट्रवादी युवकों को जेल तो प्रसाद में से बी0 ए0 व 1930 व 1931 में इलाहाबाद मिला ही करती है। इसलिए आपको भी सन् 42 में विश्वविद्यालय से क्रमश: एम0 ए0 व एल0 एल0 जेल मिली तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बी) परीक्षायें उत्तीर्ण की। ढढ्ढा जी अपने छात्र जीवन सामाजिक विचारों में आप बहुत क्रान्तिकारी सुधारक में इलाहाबाद यूथलीग व इलाहाबाद वि0 वि) छात्रसंघ हैं। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप 'तरुण जैन' के उपाध्यक्ष रहे। 1931-33 में आपने मैसूर, बंगलोर मासिक भी निकाल रहे हैं।' और जयपुर में वकालत की। 1943-45 में आप जेल में रहे तथा 1945 से 1934-1942 में आप इण्डियन चेम्बर आफ 1951 के मध्य राजपूताना देशी राज्य लोक परिषद् कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री कलकत्ता के मंत्री रहे। कलकत्ता के मंत्री, अ0 भा0 देशी राज्य लोक परिषद् के For Private And Personal Use Only

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