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प्रथम खण्ड
381 में जबलपुर में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन जबलपुर नगर से बाहर जाने पर रोक लगा दी गई। में आप कटनी एवं आसपास के क्षेत्रों में सक्रिय रहे, नगर कांग्रेस कमेटी के अनेक वर्षों तक कोषाध्यक्ष रहे फलतः आपको गिरफ्तार कर लिया गया और जबलपुर श्री जैन विपरीत आर्थिक परिस्थितियाँ हो जाने पर भी में 6 माह के कारावास की सजा दी गई। अपने उद्देश्य तथा कार्यों के प्रति ईमानदार रहे। आ0-(1) म0 प्र) स्व) 30, भाग-1, पृष्ठ-126
आO--(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-125 (2)
स्व0 स0 जा0, पृष्ठ-189-90 श्री हुकुमचंद जैन श्री हुकुमचंद जैन, पुत्र- श्री देवीचंद का जन्म
श्री हुकुमचंद बड़घरिया 1917 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1932 के
ललितपुर (उ0 प्र0) के आन्दोलन में आपने खुल कर भाग लिया, फलत:
श्री हुकुमचंद बड़ घरिया, गिरफ्तार हुए और 6 माह के कारावास की सजा पाई।
पुत्र- श्री परमानन्द का आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-126 (2)
जन्म 1921 में हुआ। 1942 स्वा) स) ज), पृष्ठ-188
के आन्दोलन में आपको एक __ श्री हुकुमचंद जैन
वर्ष की सजा और 100 कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री
रुपये जुर्माना भुगतना पड़ा। हुकुमचंद जैन, पुत्र-श्री नत्थूलाल का जन्म 1903 में जुर्माना न देने पर दो माह और कारावास में रहना पड़ा। हुआ। आप में राष्ट्रीय भावना बचपन से ही थी। जंगल
आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) र0 नी0, पृष्ठ-27 सत्याग्रह में जुलाई 1930 तक का कारावास तथा 50 रुपये का अर्थदण्ड आपने भोगा।
श्री हुकुमचंद बुखारिया 'तन्मय' आ(-(1) म0 प्र0 स्वा) सै0, भाग-1, पृष्ठ-126 'तन्मय' उपनाम से प्रसिद्ध और 'जैन राष्ट्रकवि' श्री हुकुमचंद जैन
पद के अधिकारी श्री हुकुमचंद बुखारिया का जन्म श्री हुकुमचंद जैन, पुत्र-श्री बट्टी लाल का जन्म
24 जनवरी 1921 को 1914 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। राष्ट्रीय कार्यों
ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ।
आपके पिता का नाम श्री को गतिमान बनाये रखने के लिए 'नेशनल ब्याय
फूलचंद जैन था। कविवर स्काउट्स एसोसिऐशन' नाम से गठित नवयुवकों की
'तन्मय' बुखारिया जी ने संस्था के सदस्य बनकर आप 1932 के आन्दोलन
लगभग 19-20 वर्ष की में सक्रियता के कारण गिरफ्तार किये गये और छ:
अवस्था से ही राष्ट्रीय संग्राम माह का कारावास भोगा। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने
में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था। द्वितीय महायुद्ध के कारण आपने जरूरतमंद साथियों की यथासम्भव
के आस-पास राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में अपनी सम्पूर्ण सहायता की तथा राष्ट्रीय कार्यों में भी आर्थिक सहयोग
आन्तरिकता के साथ आप प्रयत्नशील हुये, फलतः राष्ट्रीय दिया।
भावनाओं के उन्मेष ने आपको कवि बना दिया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भूमिगत कार्यकर्ताओं को सहायता पहुँचाकर गिरफ्तार होने पर
1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के अर्न्तगत छ: डेढ वर्ष तक नजरबंद रहे। रिहा होने पर छ: माह तक माह की सख्त सजा 'तन्मय' जी ने भोगी थी। 1942
तन्मय
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