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प्रथम खण्ड
361 आ)- (1) इ) अ0 ओ0, भाग-2, पृष्ठ 373 (2) जै) मैंनेजर के पदों पर रहे, पर इस सबका उपयोग आपने स0रा0 अ0
देशसेवा के लिए ही किया। श्री सरदार सिंह महनोत
1930 के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय आप स्वाधीनता संग्राम में जहाँ देश में 'एक घर एक मजदूर आन्दोलन को लेकर गिरफ्तार हुए और पुलिस व्यक्ति' भी देश को अर्पण न कर सका, वहीं कुछ की मार खायी। इसके बाद आप अन्य आन्दोलनों के ऐसे भी जैन कुटुम्ब रहे हैं जो पूरे के पूरे देश के चरणों समय अन्य प्रकार से सहायता देते रहे। 1942 के पर चढ़ गये। उज्जैन का जैन महनोत परिवार भी उनमें भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपको से एक था। इस परिवार के श्री सरदार सिंह महनोत, 4 वर्षों तक नजरबंद रखा गया। ओसवाल महासम्मेलन उनकी पत्नी श्रीमती सज्जन देवी महनोत, पुत्र श्री के मुखपत्र 'ओसवाल' का आपने अनेक वर्षों तक राजेन्द्र कुमार महनीत एवं भतीजे श्री ताजबहादुर महनोत सफलता पूर्वक सम्पादन किया। ने अनेक वर्षों तक जेल की दारुण यातनाएं सहीं। आ)-(1) जी) स0 रा0 अ0, पृष्ठ-90 (2) इ0 अ0 ओ,
उज्जैन के सेठ सौभाग्यचन्द्र महनोत अपने समय के उन लोगों में से थे जो ग्वालियर नरेश माधवराव
समाधिस्थ आर्यिका सर्वती बाई या शिन्दे के प्रियजनों में से थे। आपने अपनी धार्मिकता
सरस्वती देवी से जैन समाज, उदारता और सम्पत्ति से राज्य तथा
आर्यिका सर्वतीबाई का जन्म 1906 के आसपास संगीत-कला प्रेम से संगीतज्ञों में ऊँचा स्थान पाया था।
हुआ। आपके पिता का नाम श्री सांवलदास था। शादी 1900 के आस-पास आपको पुत्र-रत्न प्राप्त हुआ जिसका नाम उस समय ज्योतिषी ने 'सरदार' रख दिया
के कुछ दिनों बाद ही वैधव्य का दारुण दु:ख आप था। उसे स्वप्न में भी यह ख्याल न आया होगा कि पर आ पड़ा, अत: आप अपने पिता के घर रहने राजप्रतिष्ठित घराने का युवक शिन्दे के दरबार की लगी। राष्ट्रीयता की भावना आप में जन्मजात थी ही, सरदारी छोडकर शोषण और दास्तां के प्रतीक स्वतंत्रता पति के निधन के बाद आपने देशसेवा का निश्चय प्रेमियों का भी सरदार बनेगा।
किया और विभिन्न आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया, आपकी शिक्षा उस समय की प्रथानसार केवल जिसके कारण आपको दो बार जेल यात्रा करनी पडी। मैट्रिक तक ही हुई। इसके बाद गुरुजनों ने घर का आपने अन्य महिलाओं को भी इन आन्दोलनों में धंधा देखने की सलाह दी। पर आश्चर्य कि महनोत भाग लेने के लिए प्रेरित किया था। देशप्रेम के साथजी ने कॉटन- इण्डस्ट्रीज के किले उज्जैन में भी खद्दर साथ हृदय में विद्यमान धार्मिक संस्कार आपको सभी भण्डार खोला।
धार्मिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते रहते आपके जीवन का प्रारम्भ शिवपुरी (ग्वालियर) थे। एक बार एक मुनि-संघ आगरा आया, आपने विद्यालय की सुपरिटेण्डेण्टी से हुआ इसके बाद मुनिश्री के प्रवचनों को ध्यानपूर्वक सुना और वैराग्य
आप केशवराम कॉटन मिल, कलकत्ता के सेल्स धारण कर लिया। कहते हैं कि आप दीक्षा लेने से विभाग में रहे, बसन्त कॉटन मिल की जनरल मैंनेजरी पर्व अपने पिता के घर तक तो गईं, परन्त बाहर से की, सुगर सिण्डीकेट के ब्राञ्चों की व्यवस्था की ही आवाज देकर कह दिया कि- 'मैं दीक्षा ग्रहण और बनारस कॉटन तथा सिल्क मिल के जनरल कर रही हूँ' दीक्षोपरान्त आपने अनेक स्थानों पर
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