Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 413
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 336 www.kobatirth.org ( म०प्र०) जिले के भानपुरा कस्बे में 30-12-1920 को हुआ | आपके पिता श्री मन्नालाल चोरड़िया राष्ट्रीय विचारधारा सम्पन्न सम्भ्रान्त नागरिक थे। 1938 में श्री वैजनाथ जी ने भानपुरा में प्रजामंडल की शाखा स्थापित की और श्री मन्नालाल चोरड़िया को अध्यक्ष बनाया। उस समय लालचंद जी 18 वर्ष के नवयुवक थे, अपने अनुज श्री विमल कुमार चोरड़िया (जो बाद में राज्यसभा के सदस्य रहे, जिनका परिचय इसी ग्रन्थ में दिया गया है ) के साथ आप आन्दोलन में सक्रिय हो गये। 1941 में आप होल्कर महाविद्यालय, इन्दौर के छात्र बने और वहाँ क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे। अपने समग्र राजनैतिक जीवन को रेखांकित करता हुआ जो संस्मरण आपने श्री रविशर्मा को दिया था उसे हम साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। आपने बताया था "सन् 1938-39 में जब मैं पिलानी पढ़ता था, तब श्री बैजनाथ महोदय और उनके साथ तोतलाजी भानपुरा आये और हमारे घर ठहरे। उनसे हमारी बड़ी आत्मीयता हो गयी और हम इसी कारण प्रजामण्डल की राजनीति में आये। हमारे पिताश्री मन्नालाल जी चोरड़िया प्रजामण्डल के अध्यक्ष थे। हमारा सारा परिवार धीरे-धीरे इस आजादी की लड़ाई में शामिल हो गया। मेरे छोटे भाई श्री विमल कुमार चोरड़िया सभाओं में वन्दे मातरम् गाते थे तथा सभा का संचालन करते थे । मेरे मन में बचपन से ही विद्रोह के संस्कार रहे। घर में भी मैं विद्रोही था, प्रजामण्डल के नेताओं ने उस समय इस विद्रोह को रचनात्मक दिशा दी। आज भी अन्याय सहन नहीं हो सकता, असत्य सहन नहीं हो सकता। गरीब और अमीर का भेद सहन नहीं हो मैं पहले मानवतावादी हूं और फिर राष्ट्रवादी सकता। । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतंत्रता संग्राम में जैन 1942 के आन्दोलन के समय हम होल्कर कालेज में थे। कालेज के अधिकारी वन्दे मातरम् गाने को पसन्द नहीं करते थे। सर तेजबहादुर सप्रू और एक नामी वकील जयकर, होल्कर कालेज में पधारे। मैं उस समय शायद होल्कर कालेज यूनियन का वाइस प्रेसिडेंट था। हमने बैठक के शुरू में ही यह मांग रखी कि 'वन्दे मातरम्' होगा तो ही मीटिंग होगी। हमारी यह मांग नहीं मानी गयी। हम लोगों ने बैठक नहीं होने दी। सर सप्रू और श्री जयकर नहीं बोल सके। जब हम बाहर मिले तो हमने उनसे कहा कि इसको आपका अपमान न मानिये, भारत माता के सम्मान में हम लड़ रहे हैं और आपको तो हम सुनना चाहते हैं। आप यही कहिये वन्दे मातरम् होगा फिर आप मीटिंग करिये । सर सप्रू ने इस बात को बहुत सराहा । होल्कर कालेज में हम लोगों का एक ग्रुप था। पढ़ना लिखना एक तरफ, हमेशा यही सोचते रहते थे, कि किसी तरह राष्ट्र का सम्मान बढ़े। हमारे ग्रुप में उस समय न्यायमूर्ति श्री गोवर्धन लाल ओझा, श्री होमीदाजी, नन्दकिशोर भट्ट, कन्हैयालाल डूंगरवाला आदि लोग शामिल थे। तो उस वक्त यह सवाल उठा कि होल्कर कालेज पर तिरंगा झण्डा कौन फहराये। इस बात में कोई सन्देह नहीं था कि यदि ऐसा किया, मार डाले जायेंगे। पर हम करीब दस छात्र एक दिन अचानक झण्डा फहराने के लिए चढ़ गये। कालेज प्रशासन के लोग बाद में हू-हां ही करते रहे। 9 अगस्त 1942 को इन्दौर राज्यप्रजामण्डल ने आन्दोलन छेड़ा। करो या मरो। इसके पहले एक घटना और हो चुकी थी। उस समय अश्रुगैस के गोले नहीं थे। तो सरकार क्या करती थी कि सभाओं और जुलूसों को विसर्जित करने लिए गर्म पानी फायर ब्रिगेड से डलवाती थी, घोड़े दौड़ाती थी। राजवाड़ा चौक पर हमारी एक मीटिंग होने वाली थी। सरकार ने उस बैठक को समाप्त करने के लिए गर्म पानी बरसाया, घोड़े For Private And Personal Use Only

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