Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 389
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 312 सादगी, 'सादा जीवन उच्च विचार' उनके जीवन का मूल मंत्र था। अपरिग्रह के सिद्वान्त को उन्होंने जीवन में उतार लिया था। वे बहुत ही सीमित वस्त्र रखते थे। 5-6 कुर्ते और इतने ही धोती व पाजामे ।' बाबूजी के दत्तक पुत्र श्री प्रदीप कुमार जैन ने अपने संस्मरणों में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य उजागर किया है। वे लिखते - बाबूजी अकसर कहा करते थे कि मैं समाधिमरण लूंगा और उन्होंने यह चरितार्थ भी कर दिखाया। 4 मई 1976 को उन्होंने अन्तिम बार अन्न ग्रहण किया, उसके बाद केवल दूध और मौसमी का रस लेते रहे। 18 मई को दूध लेना भी बन्द कर दिया और 24 मई के प्रातः से पानी की बूंद तक नहीं ली। अपना मुंह कसकर बन्द कर लेते थे। शाम 6 बजकर 20 मिनट पर अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया। ' 4 बाबूजी के संस्मरण उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर प्रकाशित 'पुण्य स्मरण' में प्रकाशित हुए हैं। गोंडा जेल का एक रोचक संस्मरण हम यहाँ दे रहे हैं* 1930 में गोंडा जेल में कितने ही साथी थे। उनमें एक बिजनौर जिले के ही 'मदीना' अखबार के सम्पादक नसरुल्ला खां और मेरठ जिले के लक्ष्मीनारायण जी थे। इन दोनों में आपस में बहस हो गई कि अगर लक्ष्मीनारायण अपनी चोटी कटवा लें तो नसरुल्ला खां अपनी दाढ़ी मुंडवा लेंगे। लक्ष्मीनारायण ने अपनी चोटी कटा दी और नसरुल्ला खां से कहा कि अब मुंडवाओ दाढ़ी। वे हिचकिचाने लगे। तब मामला मौलाना आजाद के पास पहुँचा, उन्होंने कहा “जब तुमने वचन दिया है तो पूरा करना होगा।'' और नसरुल्ला खां को दाढ़ी मुंडानी पड़ी। उसके बाद उन्हें पहचानना भी कठिन होने लगा ।' आ)- (1) पुण्य स्मरण (स्मारिका) (2) जै० स० रा० अ) (3) जैन सन्देश, 1 जुलाई 1976 (4) जैन मित्र, वैशाख सुदी 15 वीर नि0 संवत् 2596 (1970 ई0 ) (5) वि० अ०, पृ0-462 (6) दिवंगत हिन्दी सेवी, प्रथम खण्ड, पृष्ठ 410 (7) रु) कु० डा), पृष्ठ-52 पृष्ठ--91 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री रतनलाल बंसल अपनी लेखनी से राष्ट्रीय साहित्य की अभिवृद्धि करने वाले तथा 'दिल्ली चलो' जैसी महनीय कृति के लेखक, फिरोजाबाद (उ0प्र0) के श्री रतनलाल बंसल बचपन से ही राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेते रहे और 1942 में डी() आई (1) आर() में तीन माह तक सेन्ट्रल जेल, आगरा में नजरबंद रहे। स्व०) दादाजी बनारसी दास जी चतुर्वेदी के बाद फिरोजाबाद नगर के साहित्यकारों में आपका महत्त्वपूर्ण स्थान था। आपके द्वारा लिखित खोजपूर्ण ग्रन्थ 'चन्द्रवार का इतिहास' भी प्रकाशित हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम में जैन आण (1) जै) स) रा) अ0 (2) उ0 प्र0 जै० ध0 (3) अमृत, पृष्ठ 25 (4) जै० से० ना० अ०, पृष्ठ 3-4 For Private And Personal Use Only श्री रतनलाल मालवीय भारतीय संविधान निर्मातृ सभा के सदस्य तथा केन्द्रीय उपश्रममंत्री रहे श्री रतनलाल मालवीय का जन्म 6 नवम्बर 1907 को मध्यप्रदेश के हृदय स्थल सागर में एक मध्यमवर्गीय जैन परिवार में श्री किशोरीलाल मलैया के घर हुआ। आपका वंश 'मलैया' के नाम से विख्यात है । परन्तु रतनलाल जी मलैया से 'मालवीय' कैसे बन गये इस सन्दर्भ में स्वयं रतनलाल जी ने लिखा है " सन् 1927 में जब मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बी) ए) का विद्यार्थी था तब मेरे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर ताराचन्द अग्रवाल ने यह प्रश्न पूछा 'मैं मलैया क्यों कहलाता हूँ. मैंने माँ से पूछकर बताया कि 'कुरवाई को मालव कहने पर और हमारे कुरवाई निवासी होने से हम मलैया कहलाये ।' हमारे प्रोफेसर ने कहा- 'तब तो हमें मालवीय कहलाना चाहिए था । ' उन्होंने हाजिरी का रजिस्टर उठाकर मलैया की जगह मालवीय लिख दिया। तभी से मैं मालवीय हो गया। "

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