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प्रथम खण्ड
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विधान परिषद् के सदस्य तथा 1952 से 1957 तक महत्त्वपूर्ण कार्य किये थे। दस्साओं के पूजा अधिकार विधान सभा के सदस्य रहे। बाबूजी जैन समाज की प्रसंग में भी उन्होंने महती भूमिका निभाई थी। सुप्रसिद्ध सुधारक संस्था भारतवर्षीय दि0 जैन परिषद् नमक आन्दोलन में आपकी भूमिका के सन्दर्भ के प्रमुख संस्थापकों में एक थे। इस संस्था के पौध में जैन सन्देश, राष्ट्रीय अंक (23 जनवरी 1947)
को उन्होंने बड़े परिश्रम और लगन से सींचा, जिसके लिखता है-'बाबू रतन लाल जी के घर पर नमक फलस्वरूप यह संस्था पल्लवित और पुष्पित हुई तथा बनाया गया था। बिजनौर जिले के सभी कार्यकर्ता इसके माध्यम से जैन समाज में व्याप्त अन्धविश्वास उपस्थित थे। नमक बनाने को बाबू राजेन्द्र कुमार जी
और रूढ़ियाँ दूर हुई। बाबूजी बड़े अध्ययन प्रिय थे। लकड़ी ला रहे थे कि एक पुलिस के कांस्टेबल ने कारागृह के एकान्त जीवन का सदुपयोग उन्होंने जैन कहा कि "यदि तुमने इस काम में भाग लिया तो तुम्हें दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शनों के अध्ययन के कार्य भी हथकड़ी डाल दी जायगी।" किन्तु उसी समय में किया। उनके द्वारा लिखे गये 'आत्मरहस्य' तथा नमक तैयार किया गया और बाबू राजेन्द्रकुमार की 'जैन धर्म' ग्रन्थ उनके प्रगाढ़ अध्ययन के परिचायक माता जी ने 1200/- रुपये की बोली लगाकर उसे हैं तथा उनकी वैज्ञानिक एवं तुलनात्मक शैली का खरीद लिया और उसी समय बा) रतनलाल जी अपने परिचय देते हैं। बाबूजी का ग्रन्थ 'आत्म रहस्य' तो साथियों के साथ गिरफ्तार हो गये। लगभग तीन वर्ष इतना लोकप्रिय हुआ कि उसके तीन संस्करण पाठकों की सजा पाकर वह शेर का सा बच्चा प्रफुल्लित घर तक पहुंच चुके हैं। उक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त विभिन्न पर आ गया।' पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने निबन्धों आदि के इसी प्रकार जैनमित्र (वैशाख सुदी 15, 1970 द्वारा आपने समाज का मार्गदर्शन किया। ई0) लिखता है-'उस जमाने में वकालत करना पैसा
___ 'सादा जीवन उच्च विचार' उनका मूल मन्त्र था। कमाने का एक बड़ा माध्यम माना जाता था। बाबूजी संयम और सात्विकता उनके जीवन के आदर्श थे। ने वकालत करना शुरू भी किया लेकिन यह देखकर उनका अधिकांश जीवन राष्ट्र सेवा, समाज सेवा और कि वकालत का व्यवसाय झूठ का प्रयोग किये बगैर धर्म सेवा में व्यतीत हुआ। राष्ट्र सेवा के उपलक्ष में नहीं चलता है, कुछ ही समय बाद वकालत छोड़ दी। भारत सरकार ने उन्हें 15 अगस्त 1972 में ताम्रपत्र नैतिक जीवन का यह बहुत बड़ा उदाहरण है। भेंट किया। 2500 वाँ भगवान् महावीर निर्वाणोत्सव कोई व्यक्ति विद्वान् हो, धनिक हो और उदार पर किए जाने वाले कार्यों के उपलक्ष्य में समाज ने भी हो यह बहुत ही कम देखने में आता है। बाबूजी उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया, इसके अतिरिक्त में इन सभी चीजों का समावेश पाया जाने के अनेक सार्वजनिक और धार्मिक संस्थाओं ने कारण निश्चय ही सोने में सुगन्ध की बात चरितार्थ समय-समय पर उनका सम्मान कर अपने को हो जाती है।' गौरवान्वित अनुभव किया।
___ बाबू रतनलाल जी की पुत्री डॉ) ( श्रीमती) ___बाबूजी सामाजिक कुरीतियों के घोर विरोधी थे। सुधा जैन ने अपने एक संस्मरण में लिखा है- 'बाबू अ०भा०दि0 जैन परिषद् के माध्यम से उन्होंने जैन जी कहा करते थे कि जेल मेरा घर है और घर मेरी जातियों में अन्तर्जातीय विवाह करने, मरणभोज बन्द ससुराल है।' इसी प्रकार उनकी दूसरी पुत्री डॉ0 करने, मध्यप्रदेश में गजरथों की बाहुल्यता को अनुपयोगी (श्रीमती) ऊषा जैन ने लिखा है-'उनका जीवन अत्यधि ठहराने, विधवा विवाह का समर्थन करने आदि के क सरल था। खान-पान में सादगी, रहन-सहन में
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