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प्रथम खण्ड
327 उन्होंने तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को दी जाने अपने जेल जीवन के अनुभव सुनाते हुये आपने वाली पेंशन लेने से भी इंकार कर दिया था। कहा कहा था-'जब मुझे पहली बार छह महीने की जेल था-'हमने कुछ पाने के लिए आजादी की लड़ाई नहीं हुई तब खिस्ती सुपरिन्टेण्डेट थे। 7-8 दिन खण्डवा लड़ी। देश आजाद हो गया, यही उसका सबसे बड़ा जेल में रखा, फिर एक दिन फोर्ड गाड़ी में बैठाकर मूल्य है।'
बड़े पुल के पास ले गये। वहाँ पर मेल को खड़ा किया
और गाड़ी चल दी। रास्ते में मैंने पुलिस वाले से पूछा 1940 में जब वे जेल गये तो वहाँ पर जाने कि-"कहाँ ले जा रहे हो" तो वह बोला "मुझे खुद कहाँ से मोची का सामान जुटा लिया। फिर तो आपकी भी नहीं मालूम है'' जब भुसावल पहुँकर नागपुर गाड़ी
। के पावों पर लगी रहतीं। (आज की तरह में बैठे तो पूछा "कहाँ ले जा रहे हो" तो वह बोला कुर्सी पर नहीं) वे जिसके पांव में भी फटा जता देखते "मालमू नहीं" जब गोंदिया निकल गया तो उसकी अत्यन्त ही विनम्रता से उससे उतरवा लेते और फिर झपकी लग गई। मैंने पता लगा लिया था कि रायपुर उसे सुधारकर उसके पांव में पहना देते।
ले जा रहे हैं। जब रायपुर स्टेशन आया और गाड़ी चलने लगी तो मैंने उसे जगाकर कहा "यह रायपुर है, यहाँ
भी उतरना है या तुम्हें मालूम नहीं" वह हडबडा कर मुझे राजनीति में लाने और राजनीति से दूर -
पूर उठा और बोला "कूदो'' मैंने कहा ''मैं चलती गाड़ी साहित्यिक क्षेत्र में पूरी ताकत से काम करने की प्रेरणा
करने का प्ररणा से नहीं कूद सकता।'' उसने चैन खींची और हम उतर
की सदा रायचंद भाई से मिलती रही। उनसे मैंने पिता की गये। वह रास्ते भर माफी मांगता रहा और बोला-"आज तरह आशीर्वाद पाया और भाई की तरह उन्होंने मुझे मेरी लाज रख ली। अगर हम आगे निकल जाते तो अन्त तक अपनाये रखा था। आज के युग में ऐसे सब जगह तार हो जाते और मेरी नौकरी चली जाती।" तपोनिष्ठ गांधीवादी दुर्लभ होते जा रहे हैं।
मैंने कहा-"भले आदमी, हम सत्याग्रही हैं, झूठ नहीं
बोलते। हमने मुकदमा भी नहीं लड़ा, मैं तो तुमसे कब स्वतंत्रता की 25वीं रजत जयन्ती के अवसर पर से पूछ रहा था पर तुम बतलाते ही नहीं थे।" प्रधानमंत्री के द्वारा देश के जिन चुने हुए सेनानियों को 'सादा जीवन उच्च विचार' के सत्र को अपने दिल्ली में सम्मानित करने का आयोजन किया गया, जीवन में उतारने वाले नागडा जी स्नान के बाद प्रतिदिन उनमें से एक रायचंद भाई भी थे। लेकिन आपने दिल्ली मंदिर जाते थे चाहे खण्डवा शहर हो या अन्य कोई जाने से इन्कार करते हुए कहा कि-'मैंने किसी सम्मान शहर। नागडा जी के पत्र श्री प्रफल्ल नागडा ने लिखा या पुरस्कार की आशा में स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं है कि वे सदैव चरखा कातते रहते थे. उनका भोजन लिया था। देश की आजादी ही मेरा सबसे बड़ा पुरस्कार बडा सादा था. वे समय के बहत पाबंद थे। फोटोग्राफी, और सम्मान है।'
अभिनय, घुड़सवारी के वे शौकीन थे। कभी साइकिल,
मोटरसाइकिल, कार चलाते तो कभी सिलाई मशीन भैयाजी अक्सर अपनी डायरी लिखा करते थे, भी चलाने लगते थे। उनके कमरे में पूज्य बापू और जिसमें उन्होंने अपने सामाजिक और राजनैतिक जीवन श्रीमद् राजचंद का ही चित्र था। जैन धार्मिक पुस्तकों के संस्मरण लिखे हैं।
के अतिरिक्त अन्य धर्मों की पुस्तकें वे प्रायः पढ़ा करते
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