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प्रथम खण्ड
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श्री रतनचंद जैन
श्री रतनचंद जैन, पुत्र- श्री दुलीचंद जैन निवासी- सिहोरा (म0प्र0) ने 1931 के आन्दोलन में भाग लिया, गिरफ्तार हुये और एक वर्ष का कारावास तथा 10 रुपये का अर्थदण्ड भोगा ।
आ() - ( 1 ) म) प्र०) स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-95 श्री रतनचंद जैन
जबलपुर, 19 जून 1994; मैं रिक्शे से 42 कोतवाली वार्ड पहुंचा, दरवाजा खटखटाया, सहसा एक कृशकाय, शरीर से वृद्ध किन्तु चेहरे पर देदीप्यमान वीररसोचित आभा वाले व्यक्ति ने दरवाजा खोला, मुझे समझते देर न लगी कि यही श्री रतनचंद जी हैं, जिनसे मिलने मैं लगभग
1000 किमी0 दूर से आया हूँ। परिचयोपरान्त मैंने अपने आने का मकसद बताया कि मुझे मध्यप्रदेश के जैन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिचय चाहिए। जो सामग्री उनके पास थी सहर्ष मुझे दिखा दी।
श्री जैन मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ के संस्थापक - महामंत्री, अ० भा० स्वतंत्रता संग्राम सेनानी समिति, नई दिल्ली के सचिव, जिला कांग्रेस कमेटी, जबलपुर के महामंत्री आदि अनेक पदों पर रहे। उनके सरल हृदय, साधारण वेशभूषा से लग ही नहीं रहा था कि यह व्यक्ति इतने बड़े पदों पर रहा होगा। पर 80 वर्ष की उम्र में भी उनकी बातचीत के जोश से यह जरूर लग रहा था कि इन्होंने भारत मां को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने में अपना तो सर्वस्व न्यौछावर किया ही होगा, साथ ही अपने ओजपूर्ण भाषणों से अन्य सपूतों को आजादी की लड़ाई लड़ने के लिये प्रेरित किया होगा । साधारणतया लोग नहीं जानते कि श्री जैन ने 'स्वतंत्रता संग्राम
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सैनिक संघ' को जन्म दिया और देश सेवकों को 'स्वतंत्रता सेनानी' शब्द दिया। इससे पूर्व उन्हें 'राजनैतिक पीड़ित (POLITICAL SUFFERER)
कहा जाता था।
अपना परिचय देने का निवेदन करने पर उन्होंने कहा - " मेरे पिता का नाम श्री बट्टीलाल जैन था, जो दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के परवार जैन थे। वे 1932 में कलेक्टर कार्यालय में क्लर्क थे, पर मेरे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी थी।" आगे उन्होंने बताया कि "पैतृक सम्पत्ति कुछ नहीं होने से मुझे बिना पूंजी के व्यवसाय करना पड़ा। मैं साइकिल पर कपड़ा बांध कर गांवों के बाजार में ले जाता था, उन्हें बेचता व अपने कुटुम्ब का भरण पोषण करता था । परिवार में 5 भाई, 4 बहनें, माता, पिता, मेरे पिता के बड़े भाई की बाल विधवा पत्नी अर्थात् बड़ी माँ थीं। पिताजी का विछोह पहिले हुआ, मां का 20 वर्ष बाद।
17 नवम्बर 1928 को लाला लाजपत राय अंग्रेजों की मार से शहीद हो गये। सारे देश की जनता शोक में डूब गयी। मैंने सुबह झंडे की सलामी के समय प्रस्ताव रखा कि 'देश के नेता लाला लाजपत राय शहीद हो गये हैं, अतः झंडा आधा झुकाया जाये।' मेरी बातें सुनकर सब दंग रह गये, चाहते तो सभी थे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी, क्योंकि अंग्रेजी शासन का यूनियन जेक झंडा था। इतने में रैली आयोजन के अध्यक्ष श्री दुर्गाशंकर मेहता 'वकील' आए और मेरे प्रस्ताव पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए स्वयं जाकर झंडा आधा झुका दिया। बाद में सलामी हुई। डिप्टी कमिश्नर अंग्रेज था श्री पी0सी0 बोर्न। वह रैली का संयोजक और फील्ड मार्शल था। यह देखकर गुस्से में तमतमा गया। बोला कुछ नहीं पर सलामी न लेकर अपनी मोटर लेकर चला गया।
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