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स्वतंत्रता संग्राम में जैन 10 माह चर्खा चलाने की दिया। परन्तु वास्तविक जन जागृति का कार्य इस ट्रेनिंग ली। आप सेवाग्राम में राज्य में सन् 1938 में श्री रतनचंद जैन द्वारा प्रारम्भ गौ संवर्धन की ट्रेनिंग हेतु गये हुआ। कानून भंग आंदोलन 13 अक्टूबर 1946 को जहाँ आपको पूज्य बापू के प्रारम्भ हुआ जिसका वर्णन श्री लालाराम वाजपेयी ने सान्निध्य में प्रार्थना सभा तथा 'मध्य भारत देशी राज्य लोक परिषद् लश्कर' को
उनके साथ घूमने का सौभाग्य भेजी अपनी रिपोर्ट में निम्न प्रकार किया था:-"रतनचन्द्र
- मिला। इसे आप अपने जीवन जी जैन जो खनियांधाना के एक मात्र कार्यकर्ता हैं, की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं। जुलाई 1941 में रियासत ने हिन्दू जैन का संघर्ष रचवाया और उन्हें आप अपने गृहनगर खनियांधाना लौट आये, जहाँ 1942 इसका कारण बताकर निर्वासित कर दिया था। मैं दो के आन्दोलन में भाग लिया, फलस्वरूप राज्य से एक तीन बार रियासत के दीवान से जाकर मिला। उसने वर्ष के लिए निष्काषित कर दिये गये।
एक भी न सुनी और उनके घरवालों को तरह-तरह 5 फरवरी 1943 को जब लौटे तो उसी दिन के कष्ट पहुंचाने शुरू कर दिये। इस पर मैंने उन्हें एक वर्ष की जेल की सजा दे दी गई। 20 मार्च 1945 इस पाबन्दी के तोड़ने की सलाह दी और इनकी को पुनः अनिश्चितकाल के लिए राज्य से निर्वासित इमदाद के लिये श्री प्रेमनारायण जी तिवारी समथर, कर दिया गया। आप हार मानने वाले नहीं थे, उत्कट लक्ष्मीनारायण जी नायक, गुजारीलाल जैन पृथ्वीपुर, जिजीविषा आप में थी अत: 13-10-1946 को कानून कामताप्रसाद जी समेले (गङ्गापुर) को भेजा। श्री जैन भंग कर आपने राज्य में प्रवेश किया, फलतः अपने घर (खनियांधाना) गये तो उन्हें गिरफ्तार कर 13-10-46 से 9-12-46 तक आपको नजरबन्द लिया। श्री प्रेमनारायन जी तिवारी समथर ने आकर किया गया।
मुझे सारी हालत सुनाई। मैंने उन लोगों को स्टेट श्री जैन के राजनैतिक कार्यों का विस्तार से खनियांधाना में प्रजामण्डल के प्रचारार्थ कुछ दिन उल्लेख करते हुए श्री श्यामलाल साह ने 'विन्ध्य प्रदेश रहने को कह दिया। मैं इस ओर कछ विशेष कारणवश के राज्यों का स्व0 स0 का इतिहास' ग्रन्थ में लिखा 15 दिन तक वहां न पहुंच सका तो यह लोग भी है-'यहाँ (खनियांधाना) पर स्वतंत्रता संग्राम का कार्य वहाँ से रियासत द्वारा तंग कराने से रियासत से निकलने श्री रतनचन्द जैन ने शुरू किया, यद्यपि खनियांधाना को मजबूर कर दिये गये। उन सौभाग्यशाली रियासतों में है जहाँ देशभक्त राजा इसके बाद मैंने श्री वीरसिंह जी धमना, हुये। यहाँ के नरेश श्री खलकसिंह ने 1922 में श्री लक्ष्मणप्रसाद जी दुबे मुड़ारा (ओरछा) को भेजा। इन्होंने रामेश्वर
द्वारा झांसी से जन जागृति करने रिपोर्ट दी कि श्री वैद्य बीमार हैं और उन्हें बहुत बुरी वाले राष्ट्रीय पत्र 'साहस' के प्रकाश में अपूर्व सहयोग तरह तंग किया जा रहा है। भोजन और दवा व बिस्तर तो दिया ही काकोरी काण्ड के पश्चात् छद्म वेश में (कपड़े) ठीक नहीं दिये जा रहे हैं। मैंने श्री पं0 रहने वाले चन्दशेखर आजाद को अपने शस्त्रागार से परमानन्द जी को साथ ले चलने की प्रार्थना की। वह ही प्रशिक्षण हेतु अस्त्रशस्त्र प्रदान किये। इस प्रकार बुन्देलखण्ड की रियासतों में अच्छा प्रभाव रखते हैं। की कार्यवाहियों का पता जब ब्रिटिश हुकूमत को बबीना से एक गाड़ी (कार) ली और खनियांधाना चला तो उन्होंने 1935 ई0 में राजगद्दी से उतार गया। दीवान साहब स्टेट से भेंट की और उनसे निर्दोष
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