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प्रथम खण्ड
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लिया। लाठी चार्ज में चोटे, 1932 में विदेशी वस्त्रों की दुकान पर धरना खायीं और 15 दिन तक थाने देने के कारण 2-5-1932 को आप गिरफ्तार हुए में बंद रहे। सामंतवादी तत्त्वों और 300/- रुपये का जुर्माना तथा 3 माह का कठोर का उत्पीड़न बढ़ने से आपको कारावास आपको अमरपाटन कैम्प जेल में काटना पैतृक ग्राम छोड़कर टीकमगढ़ पड़ा।
में शरण लेनी पड़ी। आपने पं0 शम्भुनाथ शुक्ल के साथ आप गांव गांव में
- राजनैतिक स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस और गांधीजी का संदेश लेकर लोगों में समाज सेवा का कार्य चुना। 1965 से 1972 तक अलख जागते रहे। 1942 के आन्दोलन में पुलिस टीकमगढ़ नगरपालिका के पार्षद चुने गये और उपाध्यक्ष आपके पीछे लगी रही। एक दिन मकान को चारों पद पर रहे। 1964 से 1982 तक श्री दिगम्बर जैन ओर से घेर लेने पर आप वेश बदलकर भाग निकले अतिशय क्षेत्र पपौरा जी के महामंत्री रहे। नन्दीश्वर जैन और कटनी पहुंचे। कटनी में आपको दरोगा रमाशंकर मंदिर के निर्माण में आपने महती भूमिका निभाई थी। दिखा जो क्रान्तिकारियों के साथ अमानवीय और 10 जुलाई 1998 को आपका निधन हो गया। पशुवत् व्यवहार करता था। रतनचंद जी ने भरे बाजार
आ)- (1) वि) स्व) स) इ0, पृष्ठ-212, (2) स्व0 में उसको 5-7 चप्पल मारी और भाग निकले. अन्त प) (3) जैनमत दर्पण, सितम्बर 1998
तक पुलिस आपको गिरफ्तार नहीं कर सकी। आप सवाई सिंघई श्री रतनचंद जैन अदम्य साहसी, ईमानदार, दूरदर्शी और परोपकार
वृत्ति के व्यक्ति थे। अपने पैसे से आपने बुढ़ार में जैन समाज में सिंघई की उपाधि उसे प्रदान एक विद्यालय की स्थापना की थी व जैन मन्दिर के की जाती है जो अकेले ही पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ऊपरी भाग का निर्माण कराकर उसमें भगवान पार्श्वनाथ करवाकर गजरथ चलवाता है। जो एक से अधिक की मर्ति स्थापित कराई थी। समाज ने आपको वार गजरथ चलवाता है उसे सवाई सिंघई की अनेक अलंकरणों से अंलकृत किया था। उपाधि से नवाजा जाता है। अपने पूर्वजों द्वारा प्राप्त
म0 प्र0 शासन द्वारा प्रदत्त 'सम्मान निधि' को सवाई सिंघई उपाधि धारक श्री रतनचंद जैन ने
आपने स्वीकार नहीं किया था। 15-3-1986 को धार्मिक क्षेत्र में ही नहीं राजनैतिक क्षेत्र में भी ऐसी
आपका देहावसान हो गया। ख्याति अर्जित की थी, जो आज भी उनकी यश:
आ)- (1) म0 प्र0 स्व) 30, भाग-5, पृष्ठ-314 कौमदी को दिग- दिगन्त व्यापिनी बनाये हए है।
(2) जैसा राआ) (3) स्वा) आ() श), पृष्ठ 127-128 रतनचंद जी का जन्म बुढ़ार, जिला-शहडोल (म) प्र0) में 1911 में हुआ। आपके पूर्वज राजस्थान से
वैद्य रतनचंद जैन नागौद, वहाँ से खैरा (सीधी) और खैरा से व्यापार देशी औषधियों के व्यवसायी वैद्य रतनचंद के सिलसिले में 1890 के आसपास बुढ़ार आये थे। जैन, पुत्र-श्री मुन्नालाल जैन का जन्म 24 अक्टूबर पितामह श्री माधव प्रसाद को बुढ़ार में धन और यश 1919 को खनियांधाना, जिला-शिवपुरी (म)प्र)) में दोनों मिले। माधव प्रसाद के तीन पुत्रों में छोटे पुत्र हुआ। आपने माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की और रामचन्द्र के यहाँ रतनचंद और धर्मचंद दो पुत्र हुए आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े। 1940 में आपने और दोनों ही स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रहे। महाराष्ट्र चर्खा संघ द्वारा संचालित वस्त्र विद्यालय में
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