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प्रथम खण्ड
वर्ष से आप माँगरोल में खादी का कढ़ाई-बुनाई का कारखाना खोलकर खादी के प्रचार में लग गये। 1940 में कोटा रियासत के उत्तरी भाग में अकाल पड़ने पर आपने अकाल पीड़ित सहायता कमेटी खोली। इसी वर्ष आपको डी()आई()आर) में पकड़ा गया और चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
जून 1941 में सेठ साहब ने कोटा में प्रजामण्डल का फिर सम्मेलन आयोजित किया। दिसम्बर में आप एक शिष्टमण्डल लेकर महात्मा गांधी के पास सेवाग्राम (वर्धा) गये।
जनसत्ता, दिल्ली (14 जुलाई 1997) को दिये गये एक साक्षात्कार में अपनी गिरफ्तारी और कार्यकलाप के सन्दर्भ में आपने कहा था कि- 'मैंने 1938 में राज्य प्रजामण्डल का सदस्य बनकर जन-चेतना फैलाने का कार्य शुरू कर दिया था। इस दौरान माँगरोल में दो अधिवेशन भी किये थे। पदयात्रा भी की लेकिन यह सब शुरूआत थी । .... ..हमें इस क्षेत्र से हटने के लिए कई प्रलोभन मिलते थे । धमकियाँ और यातनाएँ भी मिलती थीं, लेकिन हमारे सिर पर एक ही जुनून था देश को आजाद कराने का । '
1942 के आन्दोलन में अपनी गिरफ्तारी के सन्दर्भ में आपने कहा था-- ‘1942 की अगस्त क्रांति के दौरान महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद इस आन्दोलन में प्रजामण्डल द्वारा जमकर हिस्सा लेने के कारण मुझे पहली बार 22 सितम्बर 1942 को माँगरोल में गिरफ्तार किया गया तथा कोटा लाकर 15 दिसम्बर तक जरायमपेशा घर में बंदी बनाकर नजरबंद रखा गया। इस दौरान हमने चार दिन भूख हड़ताल भी की थी।'
दूसरी बार श्री जैन को बम्बई से कोटा आते समय कोटा स्टेशन पर उतरते ही गिरफ्तार कर लिया गया और हथकड़ी डालकर अजमेर ले जाया गया। अजमेर में आपको आठ दिन जेल में रखा गया। बाद में न्यायालय के आदेश से रिहा किया गया।
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पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सेठ साहब अग्रणी थे। अप्रैल 1947 में कोटा से आपने 'जयहिन्द' साप्ताहिक पत्र निकाला था, जिसके सम्पादक भी आप स्वयं ही थे । इस पत्र के 26 अंक ही निकल पाये थे कि 30 सितम्बर 1947 के अंक में 'भरतपुर व अलवर रियासत की नेहरू सरकार के खिलाफ हथियारबन्द साजिश' शीर्षक से प्रकाशित समाचार पढ़कर सरकार ने उस अंक की प्रतियां व प्रेस की जमानत 450/- रु (0) जब्त कर ली।
1944 में श्री जैन को 'कस्तूरबा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट' कोटा मंडल का संयोजक बनाया गया था। 1940 से 1950 तक कोटा केन्द्रीय सहकारी बैंक के संचालक सदस्य व 1943 से 1950 तक अध्यक्ष रहे। स्वतंत्रता के पश्चात् 1949 में बनी वृहद् राजस्थान सरकार के प्रधानमंत्री श्री हीरालाल शास्त्री ने उन्हें मन्त्रिपरिषद् में शामिल करना चाहा था पर श्री जैन ने मनोनीत सदस्य के रूप में मंत्री बनने से मना कर दिया था।
समाजसेवा के कार्यों में सक्रिय रूप से जुड़े सेठ साहब ने अनेक छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दीं, रोजगार दिलाये व निःशुल्क आयुर्वेदिक औषधालय
चलाया। आज भी वे सरकार से प्राप्त स्वतंत्रता सेनानी पेंशन जनहित के कार्यों में लगाते हैं पेंशन के रूप में एकमुश्त प्राप्त लगभग साठ हजार रुपये की धनराशि उन्होंने सार्वजनिक संस्थानों को अनुदान के रूप में दे दी थी। श्री जैन के विचार हैं- 'स्वतंत्रता से पहले किसानों, श्रमिकों को डराया जाता था, धमकाया जाता था। शासक वर्ग द्वारा उन पर अत्याचार किये जाते थे। सोचा था आजादी के बाद यह सब खत्म हो जाएगा, बेरोजगारी मिट जाएगी, किसानों की हालत सुधर जाएगी, पर हालात और बदतर होते जा रहे हैं।.....आज स्वतंत्रता सेनानियों को पूछता कौन
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