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स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री महावीरप्रसाद जैन
आगे आपने बताया कि '1942 के भारत छोड़ो श्री महावीरप्रसाद जैन, पत्र- श्री कान्तिचन्द्र का आन्दोलन में अलवर प्रजामंडल ने मूक रहकर ही जन्म 10 जुलाई 1922 को ग्राम गोविन्दगढ़ (राजस्थान) आन्दोलन को देखने का तय किया, अत: हमने 17-18
में हुआ। आपने 1933 तक अक्टू0 42 की रात्रि को गुप्त बैठक में रेल के तार गांव में ही शिक्षा ग्रहण की। काटने व पोस्ट आफिस में आग लगाने का निर्णय किया, बाद में आप अलवर आ गये। फलत: 20-10-42 की रात्रि को विजय मंदिर रोड आपने अपने क्रान्तिकारी की रेलवे लाइन के तार काटे गये। 6-7 नवम्बर 1942 जीवन के सन्दर्भ में बताया कि की रात को तमाम पोस्ट ऑफिस व लैटर बॉक्सेज -1938 में मुझे क्रान्तिकारी में आग लगा दी गई।
साहित्य पढ़ने की रुचि उत्पन्न हमारा एक साथी अपनी गलती से 10-11-42 हुई, फलत: साहित्य पढ़ने वालों का एक सर्किल को गिरफ्तार कर लिया गया। उसने अपने दूसरे साथी बनाया। राज्य व जागीरदारों के विरुद्ध एक संगठन की का भी नाम बता दिया, वह भी गिरफ्तार हो गया। नींव डाली, जिसका उद्देश्य था कि राज्य व जागीरदारों तब तक हमें सूचना मिल गयी थी, अत: हीरालाल द्वारा जो अत्याचार। लगान। बेगार व सामाजिक व मैंने अपने सभी साथियों को कछ दिन के लिए अत्याचार किये जाते हैं, उनका विरोध करना। भूमिगत कर दिया व तय किया कि दोनों को कन्ट्रोल
संगठन का नाम पहले 'अजरदल' रखा फिर एक करने के लिए अपना गिरफ्तार होना जरूरी है, अत: साल बाद 'नवहिन्द पार्टी' व 1941 में 'रेवल्यूशनरी 11-11-42 को हम दोनों अपने-अपने घर से गिरफ्तार पार्टी ऑफ इण्डिया' रखा। संगठन में इस समय तक होकर कोतवाली पहुँच गये। तीन रोज तक हमें खडा 40-50 व्यक्ति हो गये थे। चूंकि हमारा सम्पर्क आगरा रखकर सोने न देकर यातनायें दी गई। हमसे जब कोई हो गया था जहाँ हम प्रोफेसर जंगबहादुर के सम्पर्क भेद मालूम नहीं हुआ तो हथकड़ी लगाकर पीटते हुए में आ गये थे, अतः उन्होंने अलवर में आकर हमें ट्रक तक ले गये और ट्रक में फेंक दिया। बम, बारूद, आदि बनाना सिखा दिया। हमारा कार्यालय दिनांक 14-12-42 को हमें 2 साल 9 माह पहाड़ों की गुफा में था, जहां रात को ही कार्य होता की कैद सुना दी गयी। जेल में 3 रोज की भूख हड़ताल था। हमारा संगठन चैन टाईप में था। केवल हम तीन जेल मैन्यूएल न दिखाने पर की। फिर 10-10 बेतों व्यक्ति थे जो सबको जानते थे। सदस्य एक दूसरे को की सजा दी गई व कालकोठरी में 15 दिन तक रखा जानते भी नहीं थे. पहचानते भी नहीं थे। हमारे सामने गया। मास्टर भोलानाथ जी का हमसे पूर्ण सम्पर्क जेल पैसों की बड़ी समस्या थी, कार्य बढ़ गया था, अतः में भी बना रहा। मैं तब दसवीं कक्षा में पढ़ता था। जब कार्य ठप्प होता नजर आने लगा तो मैं अपने घर अन्य साथी भी विद्यार्थी थे। अत: मास्टर भोलानाथ जी से 5 तोला सोने की जंजीर ले आया और हथियारों ने प्राईमिनिस्टर से मिलकर हमारे विद्यार्थी जीवन के के लिए साथी हीरालाल व किशन के द्वारा आधार पर हमें 5 माह बाद छुड़वा दिया। लक्ष्मणस्वरूप त्रिपाठी, जो क्रान्तिकारी विचारधारा के जेल से आते ही मैंने प्रजामंडल में विद्यार्थी मंच अलवर में अग्रणी नेता थे, को रिवॉल्वर खरीदने के पर कार्य करना आरम्भ किया। प्रारम्भ में मैं विद्यार्थी लिए दे दी।'
कांग्रेस का संयोजक हुआ, उसके बाद 1944 में अलवर
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