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स्वतंत्रता संग्राम में जैन अधिकारियों ने की थी। 1940 के आंदोलन में आपको थे। इस संस्थान में लगभग 5 हजार जैन ग्रंथों की जेल में बंद कर दिया गया और आंदोलन समाप्त होने पाण्डुलिपियाँ संग्रहीत हैं। इस संस्थान को हमें देखने पर छोड़ा गया। 1941 में आप अप्रैल से नवम्बर तक का अवसर मिला है। नजरबन्द रहे।
आगरा कॉलेज एवं नागरी प्रचारणी सभा में 1942 के आंदोलन के समय आप पुनः प्रकाशन अनेक पदों पर रहकर आपने महत्त्वपूर्ण योगदान के कार्य में लग गये और 'लाल पर्चा' ऐसा छापा जिसने दिया। नगर महापालिका के शिक्षा अध्यक्ष पद पर भारतवर्ष के कोने-कोने में तहलका मचा दिया। 'आजाद भी रहे। महन्द्र जी के बड़े पुत्र श्री भारतेन्दु जैन भी हिन्दुस्तान' नाम से एक समाचार पत्र भी आपने आगरा नगर महापालिका के सदस्य रहे, उन्होंने चीन प्रकाशित किया। इस प्रकाशन से अंग्रेजी सरकार परेशान आक्रमण के समय स्टेशनों पर जाकर जवानों का हो गयी। महेन्द्र जी व उनके साथियों ने इन्कम टैक्स स्वागत किया था। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती अंगूरीदेवी के कागज जलाये व तोड़फोड़ आंदोलन में भाग लिया। ने भी स्वाधीनता संग्राम में आगे बढ़ कर हिस्सा
1942 के आंदोलन में 9 सितम्बर को गिरफ्तार लिया। (इनका परिचय पीछे दिया जा चुका है) कर आपको जेल भेज दिया गया तथा एक जेल में महेन्द्र जी के निधन पर प्रसिद्ध साहित्यकार नहीं रखा गया, बार-बार स्थान बदले गये। महेन्द्र जी श्री बनारसीदास चतुर्वेदी ने उन्हें जो श्रद्धांजलि अर्पित आगरा, उन्नाव, एटा, फर्रुखाबाद, प्रतापगढ़ आदि की की थी वह महेन्द्र जी के व्यक्तित्व को पूर्णत: जेलों में बंद रहे। जेल में उन्हें अनेक प्रकार की यातनाएं रेखांकित करती है। विशेषतः उनके हिन्दी दी गयीं और दो दिन के लिये काल कोठरी में रखा सेवी रूप को। श्रद्धांजलि के कछ अंश हम साभार गया, तब उनके साथियों ने अनशन और आंदोलन किया, यहाँ दे रहे हैंजिससे सरकार ने आपको 11 दिसम्बर 1942 को 'बन्धवर' महेन्द्र जी के चले जाने से हृदय पेरोल पर छोड़ दिया था। इस समय आपका 'साहित्य' को धक्का लगा। उनसे मेरा पचास वर्ष से संबंध प्रेस तथा मासिक 'साहित्य संदेश' बंद करा दिया गया था और वह कौटुम्बिक धरातल तक पहुँच गया था। था।
उनके पूज्य पिताजी को शमसाबाद में हमारे उन्नाव जेल से जब महेन्द्र जी को छोड़ा गया कक्का ने पढ़ाया था और हम मजाक में कभी-कभी तब ब्रिटिश सरकार से गांधी जी का समझौता हो चुका महेन्द्र जी से कहते थे- 'तुम तो हमारे परम्परागत था। महेन्द्र जी का स्वास्थ्य जेल में बहुत बिगड़ गया शिष्य हो' और महेन्द्र जी इसे सहर्ष स्वीकार कर था। जेल से छूटने के बाद उनका इलाज कराया गया। लेते थे। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य ठीक हुआ उसके बाद आप जब हमारे अनुज स्व) रामनारायण को आगरा पन: राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यों में लग गये। कॉलेज में अध्यापन कार्य मिला और वह गोकुल
साहित्य और प्रकाशन के क्षेत्र में महेन्द्रजी का पुरा में मकान किराये पर लेकर रहने लगा तो हमारे विशेष योगदान है। आपने जैन समाज के सुधार के कक्का भी वहीं पहुँच गये और तब महेन्द्र जी का
लये अनेक कार्य किये। आप अनेक वर्षों तक महावीर हम लोगों से और भी घनिष्ठ संबंध हो गया। महेन्द्र दिगम्बर कॉलेज के मैंनेजर रहे। आगरा में एक जैन जी ने अपने पिताजी के गुरु की सेवा करने का कोई शोध संस्थान है। महेन्द्र जी इसके संस्थापकों में एक मौका हाथ से नहीं जाने दिया।
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