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प्रथम खण्ड
285 यह है कि 1952 में जब बाबू तख्तमल जैन चुनाव आत्मीयता, निश्छल स्नेह आपके गुण थे। सेवापरायणता हार गये, श्री जैन मध्यभारत के मुख्यमंत्री थे और और विनम्रता तो जैसे आपके रक्त में मिली थी। जो कुशल मुख्यमंत्रियों में उनकी गणना होती थी, तब भी भी आपके सम्पर्क में एक बार आया वह आपका होकर नेहरू जी के करीबी होने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री ही रह गया। बनाने की कोशिशें हुईं। परन्तु कांग्रेस हाई कमान तैयार शैक्षणिक और साहित्यिक गतिविधियों से गंगवाल नहीं हुआ, फलत: गंगवाल जी ही मुख्यमंत्री बने। पुनः
बना पुनः सा) सदैव जुड़े रहे। गरीब विद्यार्थियों को विद्या अध्ययन तख्तमल जी जब तीसरी बार चुनाव जीतकर आये तो
हेतु सहायता करना उन्हें अत्यन्त प्रिय था। इन्दौर के गंगवाल जी ने बिना 'ननु न च' किये अपना त्यागपत्र
कित ने ही विद्यालयो/पुस्तकाल यो के वे दे दिया और कहा कि वे भरत की तरह विरक्त होकर
संस्थापक/अध्यक्ष/मंत्री आदि थे। राजकाज चला रहे थे, अब राम की अयोध्या वापसी पर तख्तमल जी के लिए सिंहासन खाली करने में
नामानुरूप ही मिश्री की मिठास जिह्वा तथा सुख का अनुभव कर रहे हैं।
जीवन में उन्हें प्रिय थी। स्वादिष्ट भोजन और मिष्ठान्न 1967 में उन्होंने बागली से विधानसभा का उनक प्रिय थ। चुनाव लड़ा, जिसमें वे पराजित हो गये। इस पराजय
गंगवाल सा) जीवनपर्यन्त कट्टर शाकाहारी रहे। के बाद भैय्या जी ने संसदीय राजनीति छोड़ दी। उन्होंने उनकी दृढ़ता का एक उदाहरण दृष्टव्य है। वे जब फिर विधानसभा का कोई चुनाव नहीं लड़ा, किन्तु मध्य भारत के मुख्यमंत्री थे तब भारत के प्रथम राजनीति में जीवनपर्यन्त बने रहे और कांग्रेस के अनेक प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू का भैय्या के पास युवा नेताओं का मार्गदर्शन किया। 1968-71 में वे एक पत्र आया था, जिसमें भारत आये युगोस्लाविया मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। के राष्ट्रपति मार्शल टीटो का मध्यभारत के कुछ स्थल
___ आर्थिक मसलों पर उनकी सूझबूझ और वित्त देखने का कार्यक्रम था। विशिष्ट व्यक्तियों के दौरे के एवं योजना विकास मंत्री के रूप में उनके दीर्घकालीन कार्यक्रम के साथ उनके दिनभर की समय सारणी भी अनुभवों को मद्देनजर रखकर श्री प्रकाशचंद सेठी ने संलग्न थी। इसमें उनके भोजन में मांसाहार भी 1975 में गंगवाल जी को राज्य योजना मंडल का सदस्य सम्मिलित था। गंगवाल जी ने निडर होकर पंडित जी मनोनीत किया था।
को विनम्र निवेदन करते हुए पत्र लिखा कि-'मैं व्यायाम और संगीत भैय्या जी को विशेष प्रिय राजकीय अतिथि को शुद्ध जल व शाकाहारी भोजन थे। इतने ऊँचे पद पर आसीन होने के बाद भी वे ही उपलब्ध करा सकूँगा। मांसाहार उपलब्ध कराने में सभाओं में भजन गाने में संकोच नहीं करते थे। उनके असमर्थ हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें।' आज के युग में प्रिय भजनों में 'उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन तो प्रधानमंत्री को नाखश करने की कल्पना भी नहीं कहाँ तू सोबत है', 'तुम प्रभु दीन दयाल मैं दुखिया की जा सकती। संसारी', 'अब समकित सावन आयो रे' आदि थे।
जिनमें धर्म के प्रति आस्था होती है वे राजनीति फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, टेनिस में भी उनकी विशेष
वशेष के लिए अनुपयुक्त होते हैं और राजनीति में जिनकी दिलचस्पी थी।
गति/ स्थिति/ रुचि होती है उनकी धर्म में अभिरुचि राजनीति के साथ सामाजिक व धार्मिक जगत नहीं होती। ऐसा सामान्य सिद्धान्त है पर गंगवाल के आप केन्द्र बिन्दु रहे। प्रत्येक व्यक्ति के साथ अंतरंग ,
सा0 इसके अपवाद थे। प्रतिदिन दर्शन का नियम
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