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साहित्य सम्मेलन, इन्दौर के स्वयंसेवक बने। 1931 में अ० भा० खादी प्रदर्शनी के प्रमुख कार्यकर्ता रूप में तथा 1938 में पूज्य बापू के सभापतित्व में आयोजित अ ( भा() हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इन्दौर के अर्थमंत्री के रूप में आपकी सेवायें सराहनीय रहीं ।
गंगवाल जी ने 1939 में इन्दौर राज्य प्रजामण्डल द्वारा नवीन टैक्स विरोधी ( इन्दौर नगर में आयोजित 9 दिनों की हड़ताल के अवसर पर ) हड़ताल संचालन समिति के तृतीय डिक्टेटर के रूप में सत्याग्रह जत्थे का नेतृत्व किया। 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के सन्दर्भ में खण्डवा, हरदा, इटारसी, होशंगाबाद, ललितपुर व झांसी की यात्रा की तथा झांसी जेल में तीन माह का कारावास भोगा। 19 अगस्त 1942 को उत्तरदायित्वपूर्ण शासन प्राप्त करने के लिए इन्दौर राज्यमण्डल के आहवान पर संगठित सत्याग्रह आन्दोलन में गिरफ्तार हुए और 15 माह के कठोर कारावास की सजा पाई। 23 मई 1947 को पुनः सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर लिये गये और । माह के कारावास की सजा भोगी ।
1945 में रामपुरा में सम्पन्न हुए इन्दौर राज्य प्रजामण्डल अधिवेशन में आप अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। 1956 में भी अ0भा0 कांग्रेस कमेटी की ओर से आसाम राज्य के निर्वाचन प्रतिनिधि नियुक्त किये गये थे।
गंगवाल साO ने 1944 में सर्वप्रथम सत्ता में प्रवेश किया, जब आप इन्दौर राज्य विधानसभा में जनता की ओर से निर्विरोध प्रतिनिधि निर्वाचित हुए। नवम्बर 1947 में होल्कर नरेश द्वारा उत्तरदायित्वपूर्ण शासन प्रदान किये जाने पर मंत्री बनाये गये। 1948 में मध्य भारत के निर्माण पर प्रान्त के प्रथम मंत्रि मण्डल में खाद्यमंत्री के रूप में सम्मिलित हुए । 1951-52 में भारत के प्रथम आम चुनाव में धारा सभा हेतु बागली क्षेत्र से निर्वाचित होकर मध्यभारत के मुख्यमंत्री का पद सम्भाला। अप्रैल 55 तक वे मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद श्री तख्तमल जैन के मुख्यमंत्री चुने जाने पर आप कांग्रेस विधानदल के उपनेता तथा वित्तमंत्री बनाये गये ।
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
1956 में नवीन मध्यप्रदेश बनने पर पं) रविशंकर शुक्ल के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री, 1956 में ही डॉ0 कैलाश नाथ काटजू के मंत्रिमण्डल में भी वित्तमंत्री और 1962 में श्री भगवंत राव मण्डलोई के मंत्रिमण्डल में भी वित्तमंत्री रहे। पं० द्वारका प्रसाद मिश्र के मुख्यमंत्री बनने पर भी उसमें आप वित्तमंत्री बनाये गये। इसका मूल कारण यह था कि जैसे आप अपने जीवन में मितव्ययी थे वैसे ही शासन में भी थे।
गंगवाल सा) के मितव्ययी स्वभाव के सन्दर्भ में उनके पुत्र श्री निर्मल गंगवाल ने लिखा है- 'हम जिस भी सरकारी बंगले में रहते, क्या मजाल है कि कहीं भी बिजली के बल्ब फालतू जलें । इसलिए बिजली और टेलीफोन का बिल पूरे मंत्रिकाल में मंत्रिपरिषद् की अपेक्षा सबसे कम आता था। कई बार पिता जी स्वयं उठकर फालतू जलती लाइट बंद करते । पिक्चर आदि जाने के लिए भोपाली तांगे में जाते थे, गाड़ी में नहीं। इसी कारण आर्वोटत पेट्रोल भी हर महीने वापस होता था । कभी-कभी स्वयं पत्र लिखते तो आने वाले लिफाफे को खोलकर, पीछे की तरफ में पत्र लिखते.... एक होलडाल और एक सूटकेस ही हमने उनके पास जीवन भर देखा।.....कभी हमने उन्हें साबुन का इस्तेमाल करते नहीं देखा, स्नान भी तीन या चार लोटे पानी में कर लेते। पानी के उपयोग पर बड़ी पाबन्दी थी।..... इस सबके बावजूद उनकी काया कंचन थी। '
होल्कर नरेश द्वारा राज्य में उत्तरदायित्वपूर्ण शासन घोषित करने के समय से लगातार मध्यभारत के निर्माण तथा विलय और नवीन मध्यप्रदेश को साकार रूप प्रदान करने की सुखद वेला में 'यत्र-तत्र सर्वत्र प्रशासक गंगवाल जी की सुस्पष्ट छाप विशेष रूप से दृष्टिगोचर होती है।
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गंगवाल जी के करीबी प्रसिद्ध पत्रकार श्री 'मायाराम सुरजन' ने गंगवाल जी की निस्पृहता के सन्दर्भ में जो संस्मरण ( देशबन्धु, 15/10/87 ) लिखा है वह सचमुच अनुकरणीय है। संस्मरण का सारांश