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स्वतंत्रता संग्राम में जैन हो गया। सड़कें सुनसान हो गईं। शहर की ऐसी दशा रहे हैं। जबकि डी0आई0आर) अंग्रेजों के खिलाफ में मैं 18 अगस्त तक इलाहाबाद में रहा। 18 अगस्त लगाया जाना चाहिये क्योंकि वे भारत के लिए खतरा को हम तीनों इलाहाबाद छोड़कर अमरपाटन पहुंच हैं। पुलिस ने उपस्थित जनसमूह पर लाठीचार्ज किया। गए। अमरपाटन में भी आंदोलन शुरू हो गया था। मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और दो महीने होशंगाबाद राष्ट्रीय आंदोलन के साथ एक मांग और जोड़ ली जेल में विचाराधीन बंदी के रूप में रखा गया। मेरे गई थी। महाराज गुलाबसिंह को वापस करो। साथ जेल में माखनलाल चतुर्वेदी के भाई रामकुमार
हम दोनों भाई वहाँ आन्दोलन में शरीक हो चतुर्वेदी, हरीप्रसाद चतुर्वेदी, एन0कुमार, हजारीलाल गए। कुछ दिन बाद ही हम दोनों भाइयों के खिलाफ मस्ते, हरदा के दादा भाई नायक, बन्धे गुरू, रामेश्वर रीवां स्टेट का वारंट निकल गया। जब मामा ने यह अग्निभोज आदि अनेक नेता थे। सुना तब वे बहुत घबड़ा गए। 26 अगस्त को रक्षा मजिस्ट्रेट सुंदरलाल वर्मा ने मुझे छ: महीने की बंधन था। 25 अगस्त को हम दोनों माँ को रोती कठोर कारावास की सजा दी और मैं 7 दिसम्बर 1942 बिलखती छोडकर अज्ञात की ओर बढ़ गए। मैंने को सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया। वहाँ मेरा कैदी नं0 अपनी माँ से वादा किया कि मैं ऐसी जगह काम 7305 था। मेरे बैरक में प्रोफेसर बी0एस) अधोलिया, करूंगा कि यदि मैं वहां गिरफ्तार हो गया तो आपको ठाकुरदास बंग, जनरल आवारी,हातेकर, मोहगांवकर, सूचना मिल जाएगी। हम दोनों मैहर पहुंचे। मैहर से ऋषभदास काले, हेमराज पांडे आदि अनेक नेता थे। मैं होशंगाबाद चला गया, जहां मेरे मौसा मस्ते जी चूंकि मैं जेल के कपड़े नहीं पहन रहा था इसलिए रहते थे और सुरेन्द्र बांदा चला गया, जहाँ मां के मुझे एक हफ्ते गुनाहखाने तन्हाई में रखा गया। तन्हाई मामा रहते थे।
में समय काटना एक समस्या थी। पहली रात मैंने, जो होशंगाबाद पहुंचकर मैंने आंदोलन में हिस्सा लेना कुछ मुझे याद था, उसका पाठ करके बिताई। दिन शुरू किया। हम लोग ट्रेनों में पर्चा चिपकाते और प्रचार में कमरे के एक कोने से दूसरे कोने तक सात कदम कार्य करते। उन्हीं दिनों मैं नागपुर गया और शहर रखकर जाता और लौटता था जैसे शेर अपने पिंजरे को जलते देखा। पोस्टआफिस जलाए जा रहे थे। में चक्कर लगाता है। सरकारी कार्यालयों पर धरना दिया जा रहा था। दूसरी कोठरी के एक बंदी ने मेरे पास एक सरकार का काम-काज ठप्प किया जा अंग्रेजी उपन्यास भिजवाया जिसका नाम 'टेन मिनिट रहा था और अंग्रेजों से भारत छोड़ने के लिए कहा एलीबी' था। एक दो दिन उसे पढ़ने से काटे फिर जा रहा था।
बैरक में भेज दिया गया। बैरक में हम लोग गेहूं बीनते, उन्हीं दिनों मैं बम्बई गया, 8 दिन रहा और निवाड़ बनते , और इसी तरह के दूसरे आंदोलन की गर्मी और तेजी का प्रत्यक्षदर्शी रहा। फिर साधारण काम करते। क्योंकि मैं बी0ए) पास हो गया मैं होशंगाबाद लौट आया। 9 अक्टूबर 1942 को नर्मदा था इसलिए मुझे बी0क्लास में रखा गया था। नाश्ता तट पर विशाल जनसभा को संबोधित कर रहा था। और दोनों टाइम खाना मिलता था। नाश्ते में छह छटाक मैंने अपने भाषण में कहा था कि अंग्रेज भारतीयों पर दूध, दो तोला शक्कर और डबल रोटी के दो टुकड़े 39 डी0आई0आर0 डिफेंस आफ इंडिया रूल्स लगा मिलते थे। जनरल आवारी और मैंने 'सिविल प्रोसीजर रहे हैं और भारतीयों को भारत के लिए खतरा बता कोड' और 'इंडियन पीनल कोड' की प्रत्येक दफा
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