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प्रथम खण्ड
राज्य विद्यार्थी कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया। इसी बीच राज्य के सभी हाईस्कूलों व मिडिलस्कूलों में विद्यार्थी कांग्रेस की शाखायें खोली गयीं साथ ही 'राजस्थान विद्यार्थी कांग्रेस' की स्थापना के लिये जयपुर, उदयपुर, भरतपुर, जोधपुर, भीलवाड़ा, शहपुरा, कोटा, बीकानेर आदि स्थानों पर मैंने सम्पर्क बढ़ाया।
1945 में 'ऑल इण्डिया स्टेट्स पीपुल' की कान्फ्रेंस पं0 जवाहरलाल नेहरू जी की अध्यक्षता में हो रही थी अतः यह तय किया गया कि उसी समय विद्यार्थी कांग्रेस का उद्घाटन कराया जाये । फलस्वरूप वहां राजस्थान के विद्यार्थी प्रतिनिधि इकट्ठे हुए और नेहरू जी के आदेश पर शेख अब्दुल्ला ने विद्यार्थी कांग्रेस का उद्घाटन किया। चुनाव में कु० सुशीला जी (श्री हीरालाल शास्त्री की साली) को अध्यक्ष बनाया गया, मैं उपाध्यक्ष हुआ व श्री शिवचरण माथुर मंत्री हुए। इस प्रकार राजस्थान विद्यार्थी कांग्रेस का संगठन
बन गया।
जैसे-जैसे अलवर रियायत में जागीरदारों के अत्याचार बढ़ते गये विद्यार्थियों का संगठन भी मजबूत होता गया। इसको शक्ति प्रदान करने के लिए मैं पहली बार डॉ() श्रीप्रकाश जी को देहली से कॉलेज पार्लियामेंट का उद्घाटन कराने अलवर लाया किन्तु तत्कालीन प्रिंसिपल श्री जयपाल सिंह राजपूत ने उनको कॉलेज में उद्घाटन करने की स्वीकृति नहीं दी तो कम्पनी बाग में ही उद्घाटन कराया गया। कुछ दिन बाद आगरा से श्री कृष्ण दत्त पालीवाल को विद्यार्थी कांग्रेस के तत्त्वावधान में बुलाया गया। बड़ी शानदार सभा हुई। इसके बाद प्रजामंडल के तत्त्वावधान में मेजर शाहनवाब आई (एनए) को बुलाया गया।
2-2-46 को खेड़ा मंगन सिंह में किसान सम्मेलन प्रजामंडल ने आयोजित किया। इस समय सरकार पूर्णरूप से झल्ला चुकी थी। उसने प्रजामंडल को गैरकानूनी घोषित कर दिया व सारे कार्यकर्ताओं
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को राज्य भर में गिरफ्तार कर लिया। हम 1-2-46 की रात को खेड़ा पहुंच गये थे, हमें वहां पता चला तो मैं मंडावर रेलवे स्टेशन पर गया क्योंकि मास्टर भोलानाथ जी जयपुर से आ रहे थे, उन्हें वहीं रोका और हम उनके साथ दौसा ( जयपुर ) चले गये जहाँ अलवर राज्य प्रजामंडल का कार्यालय स्थापित किया गया और आन्दोलन का संचालन वहीं से किया गया। एक माह बाद नेहरू जी के हस्तक्षेप पर जयनारायण जी व्यास आये और समझौता हो गया व प्रजामंडल के गैरकानूनी होने का आदेश वापिस ले लिया गया ।
प्रजामंडल ने आखिरी लड़ाई लड़ने का फैसला किया व 'गैरजिम्मेदार मिनिस्टरो कुर्सी छोड़ो' आन्दोलन शुरू करने का निर्णय ले लिया। राज्य सरकार ने झल्लाकर 24-8-46 को धारा 144 लगा दी। विद्यार्थी कांग्रेस ने चैलेंज स्वीकार कर 144 धारा तोड़ने का निश्चय किया।
हम लोगों ने नंगली के चौराहे से जुलूस शुरू किया। राज्यभर के स्कूल बन्द थे। करीब 20 हजार विद्यार्थी जुलूस में अनुशासन में तीन-तीन की कतार में चल रहे थे। जुलूस करीब एक मील लम्बा था । चारों ओर बाजारों में मुख्य-मुख्य स्थानों पर फौज खड़ी हुई थी। अपनी विजय की जयघोष करता हुआ जुलूस सुभाष चौक पहुँचा, जहाँ सभा में बदल गया। मेरी अध्यक्षता में ही सभा हुई, जो 12 बजे तक चली। वहां किसी को भी किसी के गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं हुई ।
करीब 2 बजे मैं अपने साथियों के साथ होप सर्कस आ रहा था । होप सर्कस में घुसने से पहले 10-15 सिपाही, कोतवाल, मजिस्ट्रेट ने आकर मुझे घेर लिया और गिरफ्तार कर लिया । आन्दोलन 26-8-46 से होना था मुझे पकड़कर उसी रोज जेल में बन्द कर दिया । आन्दोलन ता0 2-9-46 तक चला और राज्य सरकार ने अपनी पूर्ण रूप से हार
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