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स्वतंत्रता संग्राम में जैन वर्धा की एक बैठक में आप महात्मा गांधी से मिले पाकिस्तान में फंसे हजारों हिन्दुओं को पश्चिमी बंगाल थे। 1942 में गांधी जी ने 'करो या मरो' एवं 'अंग्रेजो में लाने की चुनौती सामने थी। पं0 बंगाल के मुख्यमंत्री भारत छोडो' का नारा दिया। सिंघी जी तनमन से डॉ0 विधानचंद्र राय ने बडे सोच-विचार के बाद सिंघी आन्दोलन में कूद पड़े। आन्दोलन के दरम्यान आप जी को इस अभियान की कमान सौंपी। बड़ी ही अनेक क्रांतिकारियों से मिले एवं भूमिगत राष्ट्रीय नेताओं खतरनाक परिस्थिति में 17 विशाल जहाजों का बेडा से आपका घनिष्ठ सम्पर्क रहा। जब नागपुर और बम्बई लेकर सिंघी जी रवाना हुए। जैसे-जैसे पूर्वी पाकिस्तान के बीच रेलवे ट्रेनों को डायनामाइट से उड़ाने की योजना का किनारा नजदीक आ रहा था, पानी में डूबती उतराती बनी तो सिंघी जी उसके सूत्रधार नियुक्त हुए। आप लाशें दिख रही थीं। साम्प्रदायिकता ने खुलकर खून डायनामाइट प्राप्त करने में सफल भी हुए परन्तु तभी की होली खेली थी। खुलना के पास पाकिस्तानी सेना पुलिस को इसकी भनक मिल गई, तलाशी हुई और ने आकर जहाजों को घेर लिया। नेहरू, लियाकत अली सिंघी जी गिरफ्तार कर लिये गये। प्रेसिडेंसी जेल में और डॉ0 विधानचंद्र राय से सम्पर्क किया गया, समझौतों उन्हें वर्षों रखा गया। पेट में दर्द के कारण जब तबीयत की याद दिलाई गई तब कहीं पाकिस्तानी सेना राजी बहुत शोचनीय हो गई तब अस्पताल में स्थानान्तरित हुई। कर दिया गया। अंतत: 1945 में रिहा किया गया। ढाका, नारायणगंज, चाँदपुर, बारीसाल के शरणार्थी
सामाजिक क्रान्ति के सूत्रधार सिंघी जी ने 1946 शिविरों में घोर दुर्दशा भोगते बीस हजार हिन्दुओं को में एक बालविधवा 'सुशीला जैन' से पुनर्विवाह किया जहाजों पर लादा गया। पर रसद और ईधन भला जिसे मारवाड़ी समाज के गणमान्य नेताओं का पाकिस्तानी क्यों देते। रसद खत्म होते देर न लगी और आशीर्वाद प्राप्त हुआ। 1946-47 में बंगाल में तब शुरू हुआ भूख से तड़पना और दम तोड़ती मौतों साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे तो सिंघी जी एवं सुशीला का सिलसिला। कलकत्ता पहुँचने तक 150 लाशों को जी ने 'बड़ा बाजार अमनसभा' के तहत मुसलमानों पानी में फेंकने के सिवाय अन्य कोई चारा नहीं था। की सुरक्षा व्यवस्था में अहम् भूमिका निभाई। देश ज्यों ही कलकत्ता पहुँचे डॉ.) राय ने सिंघी जी को आजाद होने के बाद जब नेतागण अपने राजनैतिक गले लगा लिया। बीस हजार निराश्रितों की आँखों से प्रभाव भुनाने में लग गये तब सिंघी जी राजनीति को प्रकट होता आभार पाकर सिंघी जी का सीना गर्व से ठोकर मारकर सामाजिक सुधारों के अभियान पर निकल पड़े। फूल गया।
'नया समाज' के माध्यम से सिंघी जी का लेखन सिंघी जी की जिस कार्य के लिए देशभर में एक बार फिर सक्रिय हुआ। 1949 में आपने कलकत्ता राष्ट्रीय स्तर पर सम्माननीय छवि बनी वह था परिवार में एक विराट सामाजिक क्रांति सम्मेलन का आयोजन नियोजन का प्रचार-प्रसार। इस अपूर्व विचार व कार्य किया जिसका सभापतित्व राजस्थान के तत्कालीन नव को पूर्णत: समर्पित दो चार लोग ही हुए हैं। 1948 नियुक्त उद्योगमंत्री श्री सिद्धराज में पहली परियोजना क्लीनिक खुली-मातृ सेवा सदन ढढा ने एवं उद्घाटन श्रीमती अरुणा आसफअली ने अस्पताल के भवन में। कहते हैं पहले सात महीनों किया था।
में मात्र दो स्त्रियाँ सलाह लेने आईं। पर सिंघी जी ने सिंघी जी के अदम्य साहस, क्षमता और निडरता हार न मानी, दर्जनों लेख लिखे, पेम्फलेट छपवाकर का एक उदाहरण 1950 में सामने आया। पूर्वी वितरित किए, घरों और फैक्ट्रियों में जाकर प्रशिक्षण
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