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स्वतंत्रता संग्राम में जैन हुआ। आपके पिता का नाम मैट्रिक पास करने के बाद मैंने बनारस हिन्दू श्री कुन्दन लाल जैन था। विश्वविद्यालय में कला विषय में प्रवेश लिया। वहीं आपने पी एच0डी0 की से स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़ा। वहां के मेरे समकालीन उपाधि प्राप्त की है तथा साथियों में श्री राजनारायण भी थे। छात्र-आन्दोलन के अनेक पुस्तकों का लेखन और माध्यम से ही मैं बनारस में पं0 कमलापति त्रिपाठी, संपादन किया है। अपने डॉ0 सम्पूर्णानन्द, आचार्य नरेन्द्रदेव जी, श्री श्रीप्रकाश
राजनैतिक जीवन का जी आदि के सम्पर्क में आया। इन्हीं दिनों मेरे पड़ोस परिचय देते हुये आप स्मृतियों में खो जाते हैं। आपने में पं0 जयचंद जी विद्यालंकार रहते थे, जो लाहौर के लिखा है
नेशनल कॉलिज में अमर शहीद भगतसिंह के गुरु रहे 'पूरा देश देश-प्रेम की भावना से उमड़ रहा था। थे। इन्हीं की प्रेरणा से मैं तभी से क्रान्तिकारी गतिविधि "मेरा रंग दे बसन्ती चोला मां............" के उद्घोष यों में संलग्न हो गया। सन् 1942 की अगस्त क्रान्ति से पूरा देश गुंजायमान हो रहा था। इस देश की सदियों के समय पं0 जयचन्द जी के आदेशानुसार संदेशों का की दासता से सुप्त पड़ी रागिनी के तार पुनः झंकृत आदान-प्रदान और उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त तथा बर्मा हो रहे थे। स्वदेशी आन्दोलन ने पूरे देश को झकझोर फ्रन्ट से शस्त्रास्त्र लाना तथा उनको संग्रहीत कर उनके दिया था। विलायती चीजों, विशेषत: वस्त्रों, की होली उपयोग के समय आदान-प्रदान करने का कार्य गांव-गांव तक फैल गई थी। तब मैं गांव के एकमात्र मेरी जिम्मेदारी थी। संग्रहीत करने का कार्य भदैनी प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था। उसी समय से देश-प्रेम स्थित एक जैन मन्दिर (छेदी लाल का मंदिर) का के बीज अंकुरित हुए। प्राइमरी की परीक्षा उत्तीर्ण होने तलघर था। के बाद आगे की पढ़ाई के लिये बनारस भेज दिया हमारे एक कार्यकर्ता की कमजोरी के कारण गया। उस समय गांव से बाहर जाना एक अदभत तथा पुलिस को पता चल गया। इस प्रकार एक वर्ष तक निराली घटना मानी जाती थी। बनारस ने मेरे सामने अगस्त 1942 से अगस्त 1943 तक मैं अन्डर ग्राऊण्ड अध्ययन, (पूर्वीय और पाश्चात्य दोनों) के कपाट खोल की गतिविधियों में संलग्न रहा था। 1943 में मैं गिरफ्तार दिये। यह एक नक्षत्र ही नहीं, एक समूचा आकाश हो गया। गिरफ्तारी के समय मेरे पास से मात्र एक
था। पश्चिमीकरण और पुनर्जागरण की दोनों बड़ा चाकू बरामद हुआ था। गिरफ्तार कर मुझे बनारस विचाराधाराओं ने मुझे प्रभावित किया। यह इन परस्पर की चौक में स्थित कोतवाली पुलिस थाना के लॉक-अप विरोधी विचारधाराओं के संगम का युग था।
में अगस्त-सितम्बर 1943 के दो महीनों के बाद, प्रारंभ में मझे बनारस के भदैनी महल्ला में स्थित 4-10-1943 को शस्त्र अधिनियम के तहत बनारस स्याद्वाद जैन विद्यालय में स्थान मिला। जैन धर्म-दर्शन की जिला जेल भेज दिया गया। के अध्ययन के लिये ही मझे बनारस भेजा गया था। प्रारंभ में विचाराधीन कैदी के रूप में मुझे अन्य लेकिन वहां रहते हए ज्ञान-विज्ञान की अन्य विद्याओं कैदियों से अलग एक कोठरी में रखा गया, जहां के द्वार खल गये। फलत: मैंने जैनधर्म-दर्शन के हथकड़ी और बेडिया ही मेरी साथिन थीं। अध्ययन के अतिरिक्त संस्कृत के व्याकरण और साहित्य विचाराधीन कैदी के रूप में दो माह तक अलग कोठरी के साथ अंग्रेजी के पढने का परा लाभ उठाया। में रखने के बाद पयाप्त साक्ष्य न मिलने के कारण मझे
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