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प्रथम खण्ड
163 परिणामस्वरूप आपको अपना ग्राम भी छोड़ना पड़ा। हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने स्वाधीनता सेनानी श्री दलीचंद जैन, रतलाम की पर 15 दिन का कारावास आपको भोगना पड़ा। सुचनानुसार सम्प्रति आप मद्रास में रह रहे हैं।
आक- (1) म0 प्र0) स्व0 सै), भाग-1, पृ0-53 (2) जै) आ) (1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-4, पृ0-192
स) रा) आ)
सिंघई जवाहरलाल जैन श्री जड़ावचंद जैन
सिंघई जवाहरलाल जैन, पुत्र-श्री मुन्नालाल जैन 'वृहत्तर निमाड़ आंदोलन' के जनक कहे जाने
1 का जन्म अगस्त 1928 में पनागर, जिला- जबलपुर वाले, विधायक और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष
(म0 प्र0) में हुआ। 1958 रहे श्री जड़ावचंद जैन का जन्म मध्यप्रदेश के
में आप जबलपुर अ गये। मण्डलेश्वर में 1901 में हुआ। शिक्षा-प्राप्ति के उपरान्त
वर्तमान में आप सूरत आप महात्मा गाँधी के आह्वान पर स्वाधीनता संग्राम
(गुजरात) में रह रहे है। आप में कूद पड़े। आपने कई बार जेल-यात्राएँ की थीं।
अनेक वर्षों तक पना र जैन आप 1948 तथा 1952 में दो बार मध्यप्रदेश विधान
समाज के मंत्री रहे। 1986 सभा के सदस्य चुने गये तथा 1948 से 1951 तक
में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे।
गजरथ महोत्सव के आप अध्यक्ष रहे। आपने अपनी प्रसिद्ध स्वतत्रता सनाना श्री हजारीलाल जाड़या जेल याचा के संदर्भ में लिखा है जब मंडलेश्वर किले की जेल में बन्द थे और उन्हें
___स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन 1942 की अगस्त अमानुषिक यातनायें दी जा रही थीं, तब उन्होंने जेल क्रान्ति के समय मेरी उम्र 14 वर्ष की थी. पनागर के के अन्दर से ही इस अत्याचार के समाचार भेजे।
ही भाई रतन चंद जैन, नागपुर कृषि विश्वविद्यालय उनके इस कार्य में श्री जैन ने सक्रिय सहयोग दिया
से एवं पनागर के ही भाई गणेश प्रसाद पांडे बनारस
हिंदू यूनिवर्सिटी से पनागर आये और हम सभी को ____ आप जिस तन्मयता से राजनीति के क्षेत्र में
एकत्रित कर यहां आंदोलन का संचालन किया। मैं अग्रणी रहे उसी तन्मयता से साहित्य तथा संस्कृति
2-9-42 को पनागर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया। की भी सेवा की। आपन अनेक पुस्तकें लिखीं तथा
| मझे सैण्टल जेल जबलपर में धारा 129 (11 (A) निमाडी भाषा की अभिवृद्धि के क्षेत्र में उल्लेखनीय
य DIR के अन्तर्गत रखा गया बाद में कलैक्टर के कार्य किया । निमाडी भाषा के मर्मज्ञ एवं अध्येता आर्डर से जेल में जो कम उम्र के लडके थे, सभी के रूप में आपकी सेवाएँ अभिनन्दनीय थीं। आपका दिनांक 28-11-42 के करीब छोड़ दिये गये।' निधन चार मई 198! को हो गया।
आपने लिखा है कि- 'आंदोलन करते समय मेरे आ) दिवङ्गत हिंदी सेवी, भाग-2, पृ0-296, (2) मर)
पिताजी एवं अन्य लोग यह कहा करते थे कि जेल प्रा। स्वा। सै0, 'भाग , प्रष्ठ 81 (3) नवभारत, इन्दौर, 1 10-1997, (4) नई दुनिया, इन्दौर, 2008-1997
जाओगे तो वहाँ पर खाने में कांच व मिट्टी मिलेगी।
जब जेल पहुँचा तो यह बात ध्यान में थी। वहाँ शाम श्री जयकुमार जैन
का खाना आया, उस दिन दाल जल गई थी, इसलिए कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री जय उसका स्वाद विचित्र लगा, मैंने बाज वालों से पूछा कुमार जैन, पुत्र- श्री हुकमचन्द का जन्म 1923 में तो पता लगा कि इसमें मिट्टी व कांच नहीं है, दाल
था।
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