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प्रथम खण्ड
165 सत्याग्रह में भाग लिया। 1942 के भारत छोड़ो राज्यों की भांति भारत में विलीन किया जाये। इसके आन्दोलन में गिरफ्तार हुए और एक वर्ष के कारावास लिये भोपाल-नवाब श्री हमीदउल्ला खां किसी भी प्रकार की सजा पाई।
तैयार नहीं थे, अतएव यहां की जनता ने आंदोलन की लुणिया जी 'हिन्दी साहित्य कल', 'जैन नवयुवक राह पकड़ी। इस आंदोलन के चलते ही भोपाल-नवाब मण्डल', 'राष्ट्रीय प्रेम विद्यालय' आदि संस्थाओं के का दमन चक्र शुरू हो गया जो बढ़ते-बढ़ते पूरे भोपाल वर्षों तक सभापति रहे। 1938 व 1945 में जब राज्य में फैल गया जिसमें बरेली के पास बोरासघाट अजमेर में प0 जवाहर लाल नेहरू पधारे तब आप पर 14 जनवरी 1949 के दिन 7 लोग नवाब भोपाल स्वागताध्यक्ष थे। 1947 में कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की पुलिस द्वारा शहीद हुये। चुने गये और अजमेर में भारत के स्वाधीन होने की जब यह आंदोलन प्रारम्भ हुआ उस समय में घोषणा 15 अगस्त 1947 को कांग्रेस अध्यक्ष की सातवीं कक्षा का छात्र था और मांडल हाईस्कूल में हैसियत से नया बाजार में राष्ट्रीय ध्वज फहराते हुए अध्ययनरत था, यहां पर श्री परमानंद शास्त्री, श्री आपके द्वारा ही की गई थी।
सुरेशचन्द जी एवं अन्य शिक्षक जो आंदोलन को गुप्त देश की आजादी के बाद आप अजमेर नगर रूप से चला रहे थे, गिरफ्तार कर लिये गये। हम लोग परिषद के अध्यक्ष चुने गये। 1973 में 78 वर्ष की जो इन्हीं से शिक्षा ग्रहण करते थे, इनकी गिरफ्तारी उम्र होने पर भी 'अजमेर शराब बन्दी सत्याग्रह से बैचेन हो गये और कुछ करने की स्थिति में विचार आन्दोलन' में आप जेल गये थे।
करने लगे। भाई रतनकुमार जी सम्पादक-'नई राह', . आ(). (1) इ) 0 ओ0, भाग-2, 9-394-395, (2) गुलाबचंद जी तामीट, विष्णुदत्त मिश्रा, डा0 शंकरदयाल अजमेर वार्षिकी एवं व्यक्ति परिचय, पृ0-49, (3) जै)स0रा0अ0 शर्मा आदि बड़े-बड़े नेता गिरफ्तार किये जा चुके थे,
आंदोलन 14 जनवरी 1949 तक अपनी चरमसीमा पर श्री जीवनचंद जैन
पहुंच चुका था। जबकि आंदोलनकारी बोरासघाट पर साल स्वभावी श्री जीवनचंद जैन के पूर्वज हरदा शहीद हो चुके थे। (म0प्र()) तहसील के भादूगांव से आकर भोपाल में भोपाल में प्रतिदिन प्रभात फेरी निकलती और पदयात्रामा बस गये थे, यहीं श्री जैन का प्रतिदिन गिरफ्तारियां होतीं। उसमें मैं भी भाग लेता था
जन्म 3 जनवरी 1931 को किन्तु छोटी आयु का होने से हर समय गिरफ्तार कर हुआ। आपके पिता का नाम भोपाल नगर से 15-20 मील दूर ले जाकर छोड़ देते श्री हीरालाल जैन था। आपने थे। यह सब चलते हुए मुझे गुप्त रूप से समाचार मिला आई)काम) तथा हिन्दी कि 'बैरसिया जेल में आंदोलन शिथिल हो रहा है और विशारद तक शिक्षा ग्रहण की। वहां का कार्य तुम्हें देखना है' बैरसिया भोपाल से 40
1949 के भोपाल विलीनीकरण कि0मी0 दूर एक कस्बा है, उस समय वहां जाने का आन्दोलन में आपने भाग लिया और जेल यात्रा की। साधन केवल बैलगाड़ी थी। भोपाल से बाहर जाने वालों आपने अपने परिचय में लिखा है कि - 'भोपाल का की सघन चैकिंग होती थी। भोपाल नगर के लोगों को विलीनीकरण आंदोलन दिसम्बर 1948 से प्रारंभ हुआ बाहर ही रोक दिया जाता था, ऐसी स्थिति में वहां कैसे जो 6 फरवरी 1949 को समाप्त हुआ। यह आन्दोलन जाया जाये यह भी एक समस्या थी, किन्तु शीघ्र ही इस बात को लेकर था कि भोपाल स्टेट को भी अन्य इसका हल निकल आया। मेरे भानजे स्व0 श्री मोहन
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