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स्वतंत्रता संग्राम में जैन का उपयोग उहोंने स्वतंत्रता संग्राम की सफलता के आपके नेतृत्व में सत्याग्रह और भी सबल हो लिए किया।
उठा। आपके उत्तेजक भाषणों से परेशान होकर 1930 नीमच क्षेत्र में सबसे पहले चोरड़िया जी ने ही में दफा 118 A के अन्तर्गत एक वर्ष की सजा सुनाई स्वराज्य प्राप्ति के लिए जयघोष किया। आपने 1920 गई। जेल में हथकड़ी पहनाकर कालकोठरी में रखा में नागपुर कांग्रेस में भाग लिया। यहीं आपका सम्पर्क गया। जब आप अजमेर की सेन्ट्रल जेल में कारावास राजस्थान में राष्ट्रीयता के जन्मदाता पं0 अर्जुन लाल भुगत रहे थे उसी दौरान 30 अक्टूबर 1930 को आपके सेठी से हुआ। जयपुर के श्री रामनारायण चौधरी, श्री युवा पुत्र माधवसिंह की मृत्यु हो गई। दुर्गाप्रसाद चौधरी, सीकर के श्री लादूराम जोशी आदि जेलर ने इन्हें यह दुखद सूचना देते हुए कहा से सम्पर्क भी नागपुर सम्मेलन में ही हुआ। इन सब कि 'यदि आप अपने कार्यों के लिए क्षमा याचना की सलाह पर चोरड़िया जी अपने अनेक साथियों को कर लें व भविष्य में राजनीति में भाग न लेने का लेकर 1922 में 'बिजोलिया किसान आंदोलन' में लिखित आश्वासन दे दें तो आपको रिहा कर दिया शामिल होने पहुंचे। वहाँ इनकी भेंट जब बिजोलिया जायेगा।' चोरडिया जी ने अपना हृदय मजबूत किया केसरी विजयसिंह पथिक से हई तब पथिक जी ने ..
ने व दृढ़ वाणी में उन्होंने जेलर को उत्तर देते हुए कहा इन्हें अपनी सारी योजना समझाकर वापिस नीमच यह 'माधवसिंह अब जीवित नहीं हो सकता। मेरी एक कहकर भेज दिया कि, 'यह आंदोलन लम्बा चलेगा। पत्री केसर पहले ही विधवा है। अब माधवसिंह की मुझे निश्चित ही गिरफ्तार कर लिया जायेगा। यदि ऐसा पली भी मेरी बेटी बनकर रहेगी। मैं परिवार के लिए हो जाये तब आप तत्काल बिजोलिया पहुंचकर नेतृत्व देश का हित नहीं त्याग सकता।' उन्होंने क्षमा नहीं सम्हाल लेना। यहाँ रहने से तो दोनों को ही गिरफ्तार
मांगी। बाद में वृद्धावस्था के कारण छ: माह पूर्व ही कर लिया जायेगा।'
उन्हें मुक्त कर दिया गया। 1929 में नीमच में विधिवत कांग्रेस की स्थापना
हरिजन उत्थान के लिए आपने पाठशालायें शुरू की गई और चोरड़िया जी को नीमच में कांग्रेस का
की थीं। सत्तर हजार रुपये का अवदान देकर प्रदेश प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। नीमच छावनी में कांग्रेस
में कन्या गुरुकुल की स्थापना की थी। आपके तपस्वी की इस प्रकार घोषणा व स्थापना, कमांडिंग आफिसर
जीवन ने आपको लोकप्रिय बना दिया था। अखिल के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी। चुनौती कांग्रेस
भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस ने आपको, के लिए भी बहुत बड़ी थी। संघर्ष शुरू हो गया। पहले
'समाज भूषण' की पदवी से सम्मानित किया था। 1936 दिन, पहली सभा से ही।।
में आपका निधन हो गया। इसी बीच नमक सत्याग्रह का आह्वान हो गया।
आ)-(1) म) प्र) स्व) सै0, भाग--4, पृष्ठ 215 निर्देश पाते ही चोरड़िया जी अजमेर चले गये। श्री (2) स्व) सा) म), पृष्ठ 75-77 (3) इ0 अ0 ओ0, भाग-2, छोटेलाल यादव, श्री दौलतराम, श्री प्रेमचंद व श्री बिहारी पृष्ठ-399 (4) राजस्थानी आजादी के दीवाने. पृष्ठ 125-127 लाल आदि सभी इनके साथ थे। चोरडिया जी ने जिस (5) दैनिक भास्कर, इन्दौर, 15 अगस्त 1997 निर्भीकता एवं कुशलता से सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व
श्री नथमल लोढ़ा किया उससे प्रभावित होकर पंडित हरिभाऊ उपाध्याय
जयपुर (राज.) के श्री नथमल लोढ़ा का जन्म के गिरफ्तार होते ही तत्काल चोरड़िया जी को डिक्टेटर भाद्रपद शुक्ल 14 संवत् 1975 (1918 ई0) को चुन लिया गया।
हुआ। जयपुर में प्रजामण्डल के पुनर्गठन के बाद वे
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