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प्रथम खण्ड
237 काम करने के पश्चात् आप बस्तर स्टेट पुलिस विभाग
आ)- (1) म) प्र) स्वा) सै), भाग-1 पृष्ठ-148 (2) में भरती हो गये। वहाँ आप अपनी योग्यता व कुशलता पर) जै) इ.), पृष्ठ-444 के कारण अल्प समय में ही सिपाही के पद से सब
पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य इन्सपेक्टर हो गये। कछ समय बाद आप तीर्थक्षेत्र कमेटी की तरफ से श्री मंदारगिरि जी के उद्धार के लिये वहां
जैन दर्शन के उद्भट विद्वान् पं0 बंशीधर जी चले गये और आपने बडी ही योग्यता के साथ उस का जन्म भाद्र शुक्ला 7, वि0सं0 1962 (सन् 1905) क्षेत्र को अधिकार में किया और सदैव के लिये जैन
में हुआ। पिता का नाम श्री पं)
मुकुन्दीलाल और माता का समाज को दिला दिया। इससे पहिले यह तीर्थ लुप्तप्राय:
नाम श्रीमती राधादेवी था। सा था और एक पाखंड़ी साधु उस पर अपना अधिकार
पिताजी उस क्षेत्र के माने हुए जमाये हुए था। जो यात्रियों को बहुत परेशान करता था।
विद्वान्, पंडित, शास्त्रप्रतिबाद में आप श्री सम्मेद शिखर जी की तेरहपंथी
लेखक और प्रतिष्ठाचार्य थे। कोठी का कार्यभार जो उस समय बडी दरवस्था में
समाज में जहाँ-कहीं था, संभालने चले गये। वहां का प्रबन्ध आपने बड़ी
जल यात्रा, सिद्धचक्र विधान, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा योग्यता व दक्षता के साथ किया। आपने वहां की
आदि धार्मिक कार्य होते थे उनमें उन्हें ससम्मान आमंत्रित धर्मशालाओं एवं मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया आपकी
किया जाता था। दशलक्षणा (पर्युषण) पर्व में भी तीर्थ सेवा आज भी स्मरणीय है।
शास्त्र-वचनिका के लिए वे समाज के आमंत्रण पर देश की पराधीनता को कोई कर्मठ पुरुष कसे जाते थे। उनके हाथ के लिखे हए शास्त्र आज भी कई सहन कर सकता था। फिर बैसाखिया जी तो महाकर्मठ मंदिरों में उपलब्ध हैं। थे, वे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। नागपुर सत्याग्रह बंशीधर जी जब तीन माह के थे, पिताजी को के अवसर पर आपको एक वर्ष की कठोर सजा हुई दैव ने उनसे छीन लिया। जैसे-तैसे माता जी शिश का किन्तु आपके क्रियाकलापों को देखते हुए सरकार ने पालन-पोषण कर रही थीं, किन्तु 12 वर्ष की अवस्था आपको कुछ माह ही जेल में रखकर छोड़ दिया। में उनका भी साया पं0 जी पर से उठ गया। वे अभावों म0 प्र0 स्व0 सै0 के अनुसार झण्डा सत्याग्रह में भाग में पले-पसे और आगे बढे। लेने के कारण आपने डेढ माह का कारावास नागपुर
पंडित बंशीधर जी का जन्मस्थान सोरई है, जो में भोगा था।
बहुत पहले गढ़ाकोटा (सागर) म0प्र) की जागीर थी जल से बाहर आने के बाद भी आप जेल जैसा और अब उत्तर प्रदेश के ललितपर जिले का एक भोजन करते रहे। आप कहा करते थे कि - 'यदि प्रख्यात ग्राम है। यह ग्राम 'जैन जगत के गांधी' नाम सरकार ने हम छोड़ दिया तो क्या ? जब हम इस से विख्यात प्रसिद्ध संत श्री गणेशप्रसाद वर्णी (मनि बात पर तुले हुए हैं तो फिर भी जेल जाना पड़ेगा।' श्री 108 गणेशकीर्ति) की जन्मभमि हसेरा ग्राम इसलिए रूखी ज्वार की रोटी का ही भोजन करते रहे! (ललितपुर) से दो किलोमीटर पूर्व में अवस्थित है। सरकार ने पुन: आपको छ: माह की सख्त सजा दी
यह ग्राम है तो छोटा, लेकिन इसकी एक जिसे आपने सहर्ष स्वीकार किया। धर्मनिष्ठ बैसाखिया विशेषता है कि यह प्राच्य-विद्या, प्राकृत और संस्कृत जी का स्वभाव बड़ा ही मृदु एवं हंसमुख था।
विद्वानों की खान है। व्याकरणाचार्य जी, पं0 शोभारामजी
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