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प्रथम खण्ड
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माह बाद खबर मिली कि वर्धा का कालेज खुल कार्य भी असफल रहे। वे 1972 में अपने पैतृक गया है अत: आप फरवरी 1943 में पुन: वर्धा लौट स्थान कोटा लौट आए। आए। 1945 के मध्य में उन्होंने वर्धा से बी0कॉम0 तब से आप लगातार कोटा में ही रह रहे हैं। किया। वर्धा में वे छात्र आन्दोलनों में भी अग्रणी रहे। बांठिया जी अविवाहित हैं। उन्हें 1982 से राज्य
एम0 कॉम0 करने के लिए उन्होंने 1945 के सत्र सरकार से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मान पेंशन के प्रारम्भ में लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। मिल रही है और ताम्रपत्र भी सरकार द्वारा भेंट किया वहां उस समय 'यूनिवर्सिटी स्टूडेन्ट्स यूनियन' की जा चुका है। पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष चल रहा था, इसमें उन्होंने
आ0- (1) स्व0 प0 (2) रा0 स्व) से0, पृष्ठ-535 सक्रिय भूमिका निभाई और कुछ ही समय बाद
श्री बापूलाल चौधरी 'लखनऊ स्टूडेन्ट्स कांग्रेस' के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। श्री बापूलाल चौधरी का जन्म गरोठ जिले आई0एन0ए0 पर चलने वाले मुकदमों के विरोध में (तत्कालीन) के रामपुरा नगर (म0प्र0) में आयोजित छात्र-प्रदर्शन का नेतृत्व करते समय पुलिस
30 जनवरी 1902 को हुआ। लाठी चार्ज में जख्मी हुए व कुछ समय उपचार के
आपके पिता का नाम श्री लिए मेडिकल कालेज हॉस्पिटल में भर्ती करवाए गए।
चम्पालाल चौधरी था। श्री स्वतंत्रता आंदोलन की समाप्ति और अपनी पढ़ाई
बापूलाल चौधरी ने इलाहाबाद पूरी कर लेने के पश्चात् उन्होंने पत्रकारिता क्षेत्र में
विश्वविद्यालय से प्रवेश किया और रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी के
मेट्रिकुलेशन किया। आपने सदस्य बने। 1948 में एक मजदूर आंदोलन में वे
एक निर्भीक, ईमानदार, लखनऊ में जेल भी गए। 1951 में उन्होंने 'नवजीवन' जुझारू एवं सफल वकील के रूप में न केवल हिन्दी दैनिक से त्यागपत्र देकर अपना स्वयं का एक गरोठ जिले में अपितु संपूर्ण होल्कर स्टेट में ख्याति साप्ताहिक पत्र 'मशाल' के नाम से निकाला और
__ अर्जित की थी। गरोठ उस समय इंदौर स्टेट का असेम्बली का चुनाव भी आर0सी0पी0आई0 के जिला मुख्यालय था, स्वराज्य आंदोलन का भी प्रत्याशी के रूप में लड़ा। इन दोनों में उन्हें असफलता
मुख्यालय था, अतः सारी कार्यवाही वहां से संचालित
होती थी। श्री चौधरी, श्री चन्दवासकर, श्री आर0डी0 मिली।
तेलग सारी कार्यवाही का संचालन करते थे। इन आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो जाने के कारण
तीनों ने मिलकर सारे जिले में स्वराज्य प्राप्ति आंदोलन वे लखनऊ छोड़कर 1953 में दिल्ली आ गए। वहां की अलख जगाई। गांव-गांव घमकर पूरे क्षेत्र का 1959 तक हिन्दी दैनिक 'हिन्दुस्तान' में काम किया। सर्वे किया तथा फिर वरिष्ठ नेताओं से चर्चा करके 1959 में 'हिन्दुस्तान' से त्यागपत्र देकर 'इंडियन जगह-जगह संगठन स्थापित किये। एक्सप्रेस' अंग्रेजी दैनिक में चले गए जहां 1969 श्री बापूलाल चौधरी 1920 में इंदौर गये। यह तक कार्यरत रहे। दिल्ली में इसके बाद उन्होंने एक संयोग ही था कि इंदौर में महात्मा गांधी आने अपना प्रेस (साझीदारी में) लगाया और 'चाइस' के वाले थे। उस समय श्री चौधरी की आयु 18 वर्ष थी। नाम से एक अंग्रेजी साप्ताहिक निकाला। ये दोनों मजिस्ट्रेट से सभा के लिए अनुमति मांगी गई थी क्योंकि
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