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विकम कनयम
पाठ पढायो
प्रथम खण्ड
239 एसे साल थे, जब इस यज्ञ में आहुतियाँ तो थी परन्तु व्यवहार' उनकी बहुचर्चित कृति है। पं0 जी की अन्य जयकारे नहीं थे। समर्पित करने के लिए तो बहुत कुछ पुस्तकें हैं- 'जैन दर्शन में कार्यकारणभाव और कारक था, परन्तु उसके बदले में आत्म-संतोष ही एक मात्र व्यवस्था', 'पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं और अक्रमबद्ध उपलब्धि मानी जाती थी। सागर और नागपुर की जेलों भी,' 'भाग्य और पुरुषार्थ: एक नया अनुचिन्तन,' 'जैन में बिताया गया बंदी जीवन हो या अमरावती जेल में तत्त्वमीमांसा की मीमांसा' आदि। सही गई दुर्दम यातनाएँ, पंडित जी का अपराजेय 1990 में आपकी विशिष्ट सेवाओं का अभिनन्दन व्यक्तित्व कहीं तनिक भी झुका नहीं। जेल की इन करने हेतु सागर (म0प्र0) में एक वृहत् अभिनन्दन यात्राओं ने उन्हें
ग्रन्थ भेंट कर आपको सम्मानित किया गया था। जीवन छुआछूत और दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध का अधिकांश भाग जैन-शासन की सेवा में लगाने के जूझने का साहस और संकल्प प्रदान किया। यहीं से बात
। बाद 11 दिसम्बर 1996 को रात्रि 9-10 बजे बीना उनके व्यक्तित्व में एक नया निखार प्रारम्भ हुआ।
में शान्त परिणामों के साथ आपका निधन हो गया। श्रद्धेय पं0जी के जीवन का एक चमकदार पहलू आ()- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-44 यह भी है कि उन्होंने स्वाधीनता-संग्राम की अपनी (2) आ0 दी), पृ0-62 (3) पं0 जी के सुपुत्र श्री विभवकुमार सेवाआ ने का कभी विचार तक नहीं किया। द्वारा प्राषत परिचय (4) बुकलेट, आभनन्दन ग्रन्थ
सागर, 19-3-1990 (5) प) जै) ३०, पृ०-527 उस योगदान के उपलक्ष्य में किसी प्रतिफल के लिये वे अपने प्रमाण पत्र हाथ में लेकर कभी सत्ताधीशों
श्री बंशीलाल जैन के द्वारपर दण्डवत् करने नहीं गये। उन्होंने यह मान ग्राम-बिलहरी (कटनी), जिला- जबलपुर लिया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही वह लड़ाई समाप्त (म0प्र0) के श्री बंशीलाल जैन, पुत्र-श्री दसईलाल हो गई है, और यही सोचकर उन्होंने अपने आपको ने 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग लिया तथा 3 सेवा के दूसरे कार्यों में नियोजित कर लिया। माह का कारावास एवं 25 रु0 का अर्थदण्ड भोगा।
पूज्य पं0 जी की जैन साहित्य/ समाज सेवा आ)-(1) म) प्रा) स्व0 से), भाग-1, पृष्ठ-109 अनुकरणीय है, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्
श्री बंशीलाल लुहाडिया कं इतिहास में पंडित वंशीधर जी की अध्यक्षता का काल गरिमा के साथ अंकित है। गुरु गोपालदास बरैया
जयपुर से लोकसभा सदस्य, अ0 भा) स्वतंत्रता का शताब्दी समारोह उसी बीच आयोजित हआ और सेनानी संगठन, नई दिल्ली के सचिव, राजस्थान भूतपूर्व उसकी सफलता में पंडित जी का महत्त्वपूर्ण योगदान
सांसद संघ के संयोजक आदि रहा। श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला के मंत्री के
पदों पर रहे श्री बंशीलाल नाते उन्होंने उस संस्था को निरन्तर आगे बढ़ाने का
लहाड़िया का जन्म तत्कालीन प्रयास किया।
जयपुर राज्य के नारायण ग्राम पं0 जी की मौलिक कतियां उनके गहन चिन्तन
में 4 फरवरी 1910 को हुआ। को प्रकट करती हैं। बीसवीं सदी के विद्वानों में पं।
आपके पिता श्री केशरलाल जी का स्थान अग्रगण्य है। 'खानिया तत्त्वचर्चा और
राष्ट्रीय विचाराधारा के व्यक्ति उसकी समीक्षा' लिखकर उन्होंने आगम का विशुद्ध थे, वे उन दिनों बम्बई से अखबार मंगाकर पक्ष सामने रखा है। 'जैन. समाज में निश्चय और पढ़ते/पढ़वाते थे। उनके राष्ट्रीय विचारों का प्रभाव
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