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स्वतंत्रता संग्राम में जैन 15-3-1915 को जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। आप के कारण 4 माह 2 दिनों का कारावास आपको भोगना 1932 में कांग्रेस के डिक्टेटर बने थे अतः जुलूस पड़ा। निकालने में पकड़े गये और 9 माह की सजा तथा आ0- (1) म) प्र) स्वा सै), भाग 4. पृष्ठ-88 50 रु) जुर्माना हुआ था। 1942 में पुन: पकडे गये (2) जै0 सा) रा0 अ0, पृष्ठ-76 तथा डिटेन्शन में जबलपुर सेंट्रल जेल में छ: माह श्रीमती फूलकँअरबाई चोरडिया रहे। बाद में आप साम्यवादी विचारधारा के हो गये श्रीमती फूलकुअरबाई चोरड़िया का जन्म 1914 थे। आपकी वक्तृत्व कला अनुपम थी। जीवन के में हुआ। अपने पति श्री माधोसिंह की प्रेरणा से आप अन्तिम 8-10 वर्षों में आप जैनधर्म के अच्छे राष्ट्रीय कार्यों में हिस्सा लेने लगी थीं। आंदोलनकारी विद्वान् हो गये थे। आपके शास्त्र प्रवचन बड़े लोकप्रिय महिलाओं में वैचारिक चेतना पैदा करने के लिए श्रीमती होने लगे थे। 1988 के आसपास आपका निधन हो चोरडिया का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है। नीमच में अनेक गया।
प्रदर्शनों की योजना श्रीमती चोरडिया ही बनाती थीं। आ) (1) म) प्रा) स्वा) सै), भाग ।, पृष्ठ- 146 (2) श्रीमती चोरडिया ऐसी महिला रहीं जिन्हें वर्धा में स्था सा ज), पृष्ठ-136 (3) सिंघई रतनचंद जी द्वारा प्रेषित विवरण।
गाँधीजी के सान्निध्य में रहने का अवसर मिला। श्री प्रेमसुख झांझरिया
वे वर्धा से लौटने के बाद इन्दौर में स्वतंत्रता इन्दौर (म) प्र) ) के श्री प्रेमसुख झाझरिया, संग्राम से जुड़ीं, अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा लेकर लाठियाँ पत्र श्री पन्नालाल झांझरिया ने 1942 के स्वाधीनता खाई. एक माह उन्नीस दिन जेल में रहकर यंत्रणा सही संग्राम में सक्रियता से भाग लिया, फलत: 21 दिन किन्तु हार न मानी। संयम, त्याग व तपस्या की प्रतिमूर्ति इन्दौर जेल में रहे। आपके अन्य दो भाइयों ने भी जेल श्रीमती फलकँवर चोरडिया का विवाह नीमच के यात्रा की थी।
स्वतंत्रता संग्राम के पितृपुरुष श्री नथमल चोरड़िया के आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-4, पृष्ठ-29
पुत्र श्री माधोसिंह के साथ हुआ। मात्र 18 वर्ष की श्री प्यारचंद कासलीवाल उम्र में ही ये विधवा हो गई थीं। तदन्तर नथमलजी इन्दौर (म0 प्र0) के श्री प्यारचंद कासलीवाल, चोरडिया ने अपनी विधवा बहु को घुटन भरी पुत्र-श्री गुलाबचंद कासलीवाल ने भारत छोड़ो आन्दोलन जिन्दगी जीने के बजाय इनमें देशभक्ति की में भाग लिया था। आप सक्रिय कार्यकर्ता थे। म0प्र0 भावना जागृत की। जब वे 1930 के अजमेर शासन ने आपको सम्मानित किया है।
आंदोलन में जेल में रहे तो उन्होंने अपनी आ()-(1) म0 प्र) स्वर) सै), भाग-4, पृष्ठ-55 पुत्रवधू को वर्धा के आश्रम में भेज दिया जहाँ
एक वर्ष तक रहकर उन्होंने नई जिन्दगी की श्री फकीरचंद जैन उर्फ फणीन्द्रकुमार जैन
शुरुआत की। अंग्रेजों के लिये सचमुच ही फणीन्द्र (नाग) सिद्ध
वर्धा में आप जल्दी उठकर एक घंटा गाँधीजी हुये, सनावद (म0प्र0) के श्री फकीर चंद जैन उर्फ
के साथ प्रार्थना करती थीं। इसके बाद विभिन्न विषयों फणीन्द्रकुमार जैन, पुत्र-श्री दशरथ का जन्म 19 अप्रैल
की शिक्षा दी जाती थी। 12 बजे से एक बजे का समय 1923 को हआ। मैटिक में अध्ययन के समय 1938
चरखा चलाने व सूत कातने के लिए अनिवार्य था। से ही आप स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने व
वर्धा में आटा पीसना, कपड़ा बुनना, शौचालय की
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