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. स्वतंत्रता संग्राम में जैन जल गई है, इसमें पानी डालकर वह पानी फेंक दो, लूणिया गोत्र के सेठ नागराज रूपराज के वंशज थे। कुछ ठीक हो जायेगी, मैंने वैसा ही किया।' सेठ पूनमचंद जी का अल्पायु में ही प्लेग के कारण
_ 'इस बीच पर्युषण पर्व आ गया, जेल के हमारे देहान्त हो गया था। सर्किल में करीब 40-45 भाई जैन थे। सभी ने इस लणिया जी एकान्त प्रिय और आध्यात्मिक बात को लेकर 'सत्याग्रह' का वातावरण बना डाला वत्ति सम्पन्न साधक थे। आपने एम0 ए0 तक शिक्षा कि 'हम अपने पर्व के दिनों में शुद्ध तथा अपने हाथ ग्रहण की और 1914 में इंदौर चले गये, वहाँ श्री का बना खाना ही खायेंगे।' आखिर सफलता मिली हरिभाउ उपाध्याय के साथ मिलकर 'मालव मयर तथा 10 दिन सामूहिक रूप से सभी बंधुओं ने खाना नामक मासिक पत्र का प्रकाशन किया। आपने इन्दौर बनाया। पूजन भजन साथ हुए।'
के धनकुबेर सेठ हुकुमचंद जी के यहाँ उनके स्वतंत्रता सेनानी होते हुए भी आज तक आपने
प्राइवेट सेक्रेटरी का भी पदभार सम्भाला था। 1916कोई पेंशन या सम्मान निधि नहीं ली है।
17 में आप सार्वजनिक क्षेत्र में कूद पड़े और देश आ)- (1) म) प्र0 स्व0 सै०, भाग-1, पृ0-53, (2) पर)
सेवा को अपना ध्येय बनाया। 1916 में आपने जै) स) इ), पृ0-452, (3) स्व0 40
'हिन्दी साहित्य मन्दिर' की स्थापना की। 1922 में श्री जिनेद्रकुमार मलैया इसका कार्यालय बनारस स्थानान्तरित हो गया। 1924 सागर (म0प्र0) के प्रसिद्ध व्यवसायी में देशभक्त सेठ जमनालाल बजाज से सम्पर्क होने
श्री जिनेन्द्र कुमार मलैया, पर इसका कार्यालय गुजरात स्थानान्तरित करने की पुत्र-श्री मूलचंद ने 1942 के
100 योजना बनाई किन्तु श्री अर्जुनलाल सेठी के सुझाव भारत छोड़ो आंदोलन में भाग
पर 1925 में अजमेर आ गये, बिड़ला एवं बजाज
बन्धुओं के सहयोग से यहीं 'सस्ता साहित्य मण्डल' लिया तथा 4 माह का
की स्थापना की। थोड़े ही समय में यह संस्था अपने कारावास भोगा
राष्ट्रीय प्रकाशनों के कारण देशभर में प्रसिद्ध हो गई। आ0- (1) म0 प्रा) स्व) सै0, भाग-2, पृ0-27, (2) आ)
1930 में अजमेर में आप कांग्रेस कमेटी के दी), पृ0-87
अध्यक्ष चुने गये। भारत सरकार ने इस कमेटी को गैर
कानूनी घोषित कर दिया था। आपका स्वास्थ्य भी श्री जीतमल लूणिया
खराब था, फिर भी आप आन्दोलन में कूद पड़े, 'सस्ता साहित्य मण्डल' नाम क सुप्रसिद्ध प्रकाशन गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला और एक वर्ष के कठोर
संस्था के संस्थापक, देशभक्त कारावास की सजा दी गई । जेल से छूटकर श्री जीतमल लूणिया का जन्म सपरिवार सत्याग्रह में भाग लेने लगे। परिणामस्वरूप 15 नवम्बर 1895 ई0 को पत्नी श्रीमती सरदार कुवंर वाई व पुत्र प्रतापसिंह अजमेर (राजस्थान) में हुआ। लूणिया सहित जेल गये। आपके पिता का नाम श्री 1933 में आपने 'अजमेर सेवा भवन' नामक पूनमचंद लूणिया था, जो संस्था की स्थापना की और अछूतोद्धार एवं राष्ट्रोत्थान अजमेर के प्रसिद्ध ओसवाल सम्बन्धी रचनात्मक कार्यों में लगे रहे। 1940 में पुन:
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