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स्वतंत्रता संग्राम में जैन दास की बारात बैरसिया जा रही थी, मेरे एक भाई दमनकारी नीति और हठवादिता की निन्दा की गई। राजमल जी जैन (बुआ जी के लड़के) विदिशा निवासी तत्पश्चात् मेरी बारी आयी और मैंने भी भोपाल में मेरे पास आये, उनसे इस विषय में चर्चा हुयी और हो रहे नवाब के दमनचक्र का वर्णन किया। बोरास हम लोग बारात में, जो ठेलों में गई थी, निकल गये। घाट के शहीदों का वर्णन किया जिससे लोगों में यह 15 जनवरी 1949 की बात है। जब हम लोग वहां जोश आ गया और वे नवाब के विरुद्ध नारे लगाने पहुंच गये और वहां के लोगों से बातचीत की, जिसमें लगे, जो पुलिस के लिये असहनीय हो गया। अब वहां के निवासी श्री शंकरदयाल सक्सेना एडवोकेट उन्होंने मजिस्ट्रेट के आदेश से हम छः लोगों को प्रमुख थे, उन्होंने वहां की स्थिति से अवगत कराया। तत्काल गिरफ्तार कर लिया और ले जाकर हवालात उन्होंने बताया
में बंद कर उसी दिन चालान पेश कर दिया। हम पर "यहां के स्थानीय नेता सब गिरफ्तार हो चुके सुरक्षा अधिनियम के तहत छः माह की सजा व हैं और यहां कोई नेतृत्व करने वाला नहीं है। यहां 100/- रुपये जुर्माना किया गया, जुर्माना अदा न करने बाजार भी खुलने लगा है। अच्छा हुआ आप लोग आ पर एक माह की और सजा। तत्पश्चात् 18 जनवरी गये हैं मैं गुप्त रूप से आपकी पूरी सहायता कर सकता को भोपाल लाकर यहां के सेन्ट्रल जेल में भेज दिया हँ। अब उन्होंने वहां के उत्साही युवकों से हमारा परिचय गया, हमारे 2 साथी माफी मांगकर छट गये। कराया, जुलूस निकालने व आंदोलन को गति देने का हमें यहां छ: नम्बर की बेरिक में रखा गया यहां आह्वान किया, साथ ही बताया कि ये लोग भोपाल पर पहले से ही 396 आंदोलनकारी बंद थे, जब हम से आपका नेतृत्व करने आये हैं। अब वहां के स्थानीय लोग यहां पर पहुंचे तो सभी बंदियों ने स्वागत किया। लोगों में से चार लोग तैयार हुये जिनमें श्री छोगमल डा0 शंकरदयाल शर्मा जी भी बेरिक में थे। उनसे जी जैन, मन्नूलाल जी सोनी प्रमुख थे। सारी व्यवस्था मेरा घनिष्ठ संबंध हो गया उन्हें जब मालूम पड़ा होने के पश्चात् तय हुआ कि सुबह 7 बजे प्रभात फेरी कि मैं सातवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ तो उन्होंने मेरे घर गंज मौहल्ले से निकाली जायेगी, जो जनता का नेतृत्व से किताबें मंगवाईं और नियमित रूप से मुझे संस्कृत करती हुई पुलिस थाने की ओर बढ़ेगी, वहीं पर तहसील एवं इंगलिश पढ़ाने लगे। हम लोग यहां छ: फरवरी और कोर्ट हैं।
तक रहे। छ: फरवरी 1949 को रात्रि 9 बजे जेल से दिनांक 17 जनवरी 1949 को सुबह 7 बजे रिहा किया गया। मालूम हुआ कि गृहमंत्री सरदार पटेल पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हम लोग गंज में एवं भोपाल नवाब के मध्य समझौता हो गया है, भोपाल एकत्रित हुये और वहीं से नारे लगाने शुरू किये, नवाब ने भारत में विलय होना स्वीकार कर लिया है, जब भीड़ इकठ्ठी हो गई तो जुलूस के रूप में हम इस प्रकार भोपाल का विलीनीकरण आंदोलन समाप्त लोग आगे बढ़ने लगे, भीड़ इकट्ठी होती गई और हुआ, हम लोग फिर से अपने अध्ययन में व्यस्त हो चौपड़ा बाजार तक पहुंचते-पहुचते लगभग चार सौ गये।' । लोग इकट्ठे हो गये। जिनमें बच्चे अधिक थे। चौपड़ा देश की आजादी के बाद से श्री जैन अपने बाजार में पुलिस ने घेरा डालकर जुलूस को रोक व्यवसाय में सलंग्न हैं। 1985 में भोपाल में अन्य लिया, हम लोगों ने जुलूस को सभा के रूप में सेनानियों के साथ तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा0 शंकर परिवर्तित कर दिया और सबसे पहले भाई राजमल दयाल शर्मा द्वारा आपका सम्मान किया गया था। जी जैन ने संक्षिप्त भाषण दिया, जिसमें नवाब की आ)-(1) म0प्र0स्व070, भाग-5, पृ0-14, (2) स्व)पा)
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