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स्वतंत्रता संग्राम में जैन 6 दिन की सजा माहेश्वर जेल में भोगी। 1942 के जाने से आपका निधन हो गया। आप अपने पीछे आन्दोलन में भी आपने भाग लिया। आपके अन्य दो भरापूरा परिवार छोड़ गये। भाई भी जेल यात्री रहे हैं।
आ0 (1) पुत्र श्री विनोद जैन द्वारा प्रेषित परिचय एवं आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सै), भाग 4, पृ0 22. प्रमाण पत्र आदि श्री ज्ञानचंद जैन
श्री ज्ञानचंद जैन श्री ज्ञानचंद जैन का जन्म बिजनौर (उ0प्र0) जबलपुर जैन समाज के उत्साही कार्यकर्ता रहे में 1910 में हुआ। आपके माता-पिता आपको श्री ज्ञानचंद जैन, पुत्र-श्री भोलानाथ का जन्म 1913 अल्पवय में ही छोड़कर स्वर्ग सिधार गये, अतः में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। आप 1932 के
आपका पालन-पोषण प्रारम्भ में आन्दोलन में सक्रिय हुये, राष्ट्रीय झंडे को आपके चाचा प्रसिद्ध सत्याग्रह का माध्यम बनाये जाने पर गिरफ्तार किये स्वतंत्रता सेनानी एवं पूर्व गये और 6 माह की सजा पायी। 'नेशनल ब्वाय एम0एल0सी0 श्री रतनलाल स्काउट्स' के सदस्य के रूप में समाज के कार्यक्रमों
जैन, बिजनौर की देखरेख में में आपने प्रमुखता से भाग लिया था। 1942 के हुआ। वहीं पर आपने आन्दोलन में आप 1 वर्ष जबलपुर जेल में नजरबंद
इण्टरमीडिएट तक शिक्षा प्राप्त रहे। 1982 में आपका निधन हो गया। की। तत्पश्चात् अपने पूर्वजों की धरोहर की देखभाल आ().. (1) म) प्रा) स्व) सै), भाग-2, पृ0-127, (2) स्वा) के लिए अफजलगढ़ (बिजनौर) चले गये। वहां पर सा) ज(), पृ0-190 रहते हुए आपके हृदय में देश-प्रेम तथा अंग्रेजी
श्री ज्ञानचंद जैन दास्तां से छुटने की भावना प्रतिदिन बढती गयी।
श्री ज्ञानचंद जैन, पत्र-श्री मलायमचंद जैन आप नमक आंदोलन तथा सत्याग्रह में अपने चाचा का जन्म 1928 में जबलपूर (म0प्र0) में हुआ श्री रतनलाल जी के साथ अनेक बार जेल गये।
अपनी गिरफ्तारी के संदर्भ विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार व देशी वस्त्रों का प्रचार
में आपने लिखा हैआप जोर-शोर से करते थे।
'मैं सन् 1942 के ___कुछ समय बाद आप अफजलगढ़ से अपनी
आन्दोलन में भाग लेने के जमींदारी छोड़कर सहारनपुर आ गये और यहीं पर
कारण पकड़ा गया था। अपना व्यापार करने लगे। व्यापार के साथ ही
जबलपुर खादी आश्रम उन धार्मिक भावना भी आप में कम नहीं थी। प्रतिदिन
दिनों राष्ट्रीय गतिविधियों का जिनन्द्र भगवान् का पूजन और स्वाध्याय का आपका केन्द्र था. वहां से अंग्रेज सरकार के खिलाफ नित्य-प्रति नियम था। चारों प्रकार के दान देने की आपकी रुचि परचे, गुप्त रूप से छापे जाते थे और जनता में थी। 26-9-1976 को सहारनपुर में शहीद भगतसिंह गुप-चुप बांटे जाते थे। जी की विशाल प्रतिमा के अनावरण समारोह में परचा बांटने वालों में मैं भी था। मेरे हाथ से अचानक भगदड़ मच जाने से आपको साधारण सी पुलिस ने कुछ पर्चे जब्त किये तथा मुझे पकड़कर चोट लगी तथा रात्रि में ही एकाएक ब्रेन हेमरेज हो ले गये थे। मुझे एक माह 16 दिन जेल में रहना
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