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प्रथम खण्ड
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पड़ा, पर सरकार मुझे अपराधी सिद्ध नहीं कर पायी गतिविधियों के कारण 1941 में टीकमगढ़ रियासत अतः छूट आया।'
से निर्वासित होना पड़ा था। आ) (1) म) प्र) स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ--127, (2) आपका जन्म बड़ागांव, जिला-टीकमगढ़ स्व) स) ज(), पृ0-190 (3) स्व) पर)
(म0प्र0) में श्री हजारी लाल जैन के यहाँ फाल्गुन श्री ज्ञानचंद जैन
कृष्ण पंचमी वि0 स0 1978 (सन् 1921) में हुआ। चंदला, जिला-छतरपुर (म0प्र0) के श्री ज्ञानचंद 1942 में आप टीकमगढ़ में स्टेट कांग्रेस (ओरछा
। सेवा संघ) के संस्थापक सदस्य रहे। भारतीय विध जैन, पुत्र- श्री मोतीलाल जैन ने 1946-47 में चरखारी
न निर्मातृ परिषद्, नई दिल्ली के सदस्य एवं पूर्व एवं छतरपुर राज्य
सांसद, मंत्री श्री रामसहाय तिवारी के अनुसार आपने प्रजामण्डल के उत्तरदायी
1941 से 1944 तक भूमिगत रहकर कार्य किया। शासन की मांग को लेकर
आप बुन्देलखण्ड के अमर शहीद श्री नारायणदास छेड़े गये सत्याग्रह आन्दोलनों
ना खरे के निकट साथी रहे हैं। श्री खरे का एक पत्र में भाग लिया। पुलिस की यहां देना असमीचीन नहीं होगागिरफ्तारी से आप बचते रहे,
कैम्प निवाडी चाहकर भी पुलिस गिरफ्तार
10-10-42 न कर सकी। आपने भूमिगत रहकर आन्दोलन को
प्रिय ज्ञान सदा सुखी रहो, सक्रियता प्रदान की। शासन ने आपको स्वतंत्रता
दूसरी सभा श्री पाठक जी व मैं 2-10-42 सेनानी का दर्जा देकर सम्मानित किया है। को कर आया है. सारे समाचार ठीक हैं, राज्य आ)- (1)छतरपुर जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूची .
खतरा जल्दी और
सी और सहज नहीं हो क्रमाङ्क 135 (2) स्व) पर)
सकता। धीरे-धीरे सफलता के आसार नजर आने श्री ज्ञानचंद जैन 'ज्ञानेन्द्र' लगे हैं।.........परचे छपे हुए झांसी रखे हुये हैं, उन्हें
जैन पत्र-पत्रिकाओं का थोडा भी अध्येता ता0 15-16 तक अवश्य अपने पास टीकमगढ़ ही 'ज्ञानेन्द्र' जी के नाम के अपरिचित नहीं होगा। मगवा लूगा। आपके पास उनक भेजने का प्रबन्ध उनकी सहसाधिक कवितायें क्या हो सो समझ में नहीं आता। आप ता0 20 के
अरीब-करीब किसी विश्वसनीय व्यक्ति को भेजकर जैन पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं, उनकी लेखनी ।
1/- रु) फी सैकड़ा के हिसाब से जरूर मंगा ने अब भी विराम नहीं लिया
लीजिए। 200-250 परचे से ज्यादा न दे सकूँगा।
अगर आप न मंगा सकें तो उसका नमूना- नकल मैं है, वह आज भी उसी अजस्र
भेज दूंगा, अपने नाम से सागर भी छपवा सकते हो, तेज के साथ प्रवाहित है,
उत्तर देना जैसा ठीक हो वैसा किया जाय, डाकघर जैसी राष्ट्रीय आन्दोलन के
द्वारा भेजना ठीक नहीं जंचता.........। अभी जेल जाने समय थी। उनके गीतों को
का समय नहीं है, और न जेल जाना कोई कार्य ही लोग गाते हैं, गुनगुनाते हैं और अपने अन्दर एक है. आपको कार्य करना चाहिए। अलौकिक स्फूर्ति का संचार पाते हैं। पर कम ही
आपका लोग जानते होंगे कि ज्ञानेन्द्र जी को अपनी राजनैतिक
नारायण दास खरे
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