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.. स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आन्दोलन में एक वर्ष की जेल यात्रा और 100/- रु) जो देश की सेवा में लीन रहे,
का जुर्माना भोगा था। गरीबी वह 'दीपक' ऐसा समाज हूं मैं। के कारण उन्हें अपना मकान स्वतंत्रता के जो हैं रोड़ा बने, भी बेचना पड़ा और 4 साल उन्हीं के लिए हुआ शूल हूँ मैं। सपरिवार बम्बई जीवनयापन हो जिसमें शहीदों का रक्त बहा, के लिए रहना पड़ा था।
उन वीरों की पावनी गल हूँ मैं। देशदीपक जी ने अपना गनों से जो 'दीपक' तोड़ा गया,
| परिचय देते हुए लिखा मुरझाया हुआ वह फूल हूं मैं, है 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में मैं कूद पड़ा जिस पथ पर पूज्य सुभाष चले,
और सक्रिय रूप से भाग लेने लगा। कुरावली का उस राज की पावन धूल हूं मैं।' दायित्व मेरे कंधों पर आ पड़ा। मेरी सक्रियता के कारण आपके संदर्भ में जैन संदेश लिखता है- 'सन् जिला स्तरीय नेतृत्व प्रसन्न हुआ। इस समय कुरावली 42 का तेजी का जमाना और घर में छः प्राणी, छोटे में भी हड़ताल एवं कुरावली बंद का आह्वान तथा भाई का इण्टर क्लास में पढ़ने का खर्च यह सब इनके गल्ला मण्डी में एक मीटिंग का आयोजन किया गया। ही ऊपर था। इनकी एक कपड़े की दुकान है जो कि स्कूल-कॉलेज बंद कराने के पश्चात् जैसे ही मण्डी इनके पश्चात् बंद रही।' में जनता ने एकत्र होना प्रारम्भ किया, मुझे बन्दी बना आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ) (2) उ0 प्र0 जै) ध0, लिया गया। मुकदमा चलाया गया, जिसमें मुझे 6+8= पृष्ठ-93 (3) स्व0 प0 14 माह का सश्रम कारावास तथा 150/- रु0 जुर्माना
श्री दौलतमल भंडारी की सजा दी गई। कारावास के दरम्यान तन्हाई, बेड़ी,
जयपुर (राज0) से लोकसभा सदस्य तथा अनशन इत्यादि के कार्यक्रम भी चलते रहते थे।
लता रहता था राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे श्री
, जेल से छूटने के बाद बन्दी जीवन की अनुभूतियों दौलतमल भंडारी का जन्म 16 दिसम्बर 1907 को को संजोये हुए मैं कुरावली आया ही था कि मैनपुरी जयपुर में हआ। आपने महाराजा कालेज, जयपुर से में एक कवि सम्मेलन में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त बी0ए0 तथा लखनऊ वि0वि0 से एम0ए0 (गणित) हआ। लब्धप्रतिष्ठित कवियों के कवित्व- पाउ के एवं एल0एल0बी0 की परीक्षायें पास की और वकालत पश्चात् मेरा नम्बर आया तो मंचासीन अध्यक्ष ने कुछ करने लगे। 1939 में जयपुर में पहली बार मौलिक उपेक्षित मुस्कान के साथ मेरा परिचय पूछा। मैंने कविता अधिकारों की प्राप्ति के लिए प्रजामण्डल का संघर्ष में ही अपना परिचय इस प्रकार दिया था- राज्य सरकार से हुआ। जब सभी नेता गिरफ्तार कर पापी नराधम अनाचारियों के,
लिये गये तब भंडारी जी ने आन्दोलन का संचालन सिर पे गिरे वह गाज हूं मैं,
किया। जो वीरों के मन में उत्साह भरे,
1942 में आपने आजाद मोर्चे की स्थापना की रण ही में बजे, वह साज हूं मैं। और सूझबूझ से उसका संचालन किया। सरकार जो पर्दे की ओट शिकार करे, विरोधी कार्यवाही के कारण 1942 में ही आप गिरफ्तार उन पापियों का बना राज हूं मैं। कर लिये गये और 1943 के आरम्भ में रिहा हुए।
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