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प्रथम खण्ड
प्रमुख श्री जमनालाल बजाज, श्री हीरालाल शास्त्री, श्री कपूरचन्द पाटनी, बाबा हरिचन्द्र एवं श्री हरिभाऊ उपाध्याय के आप विश्वस्त सहयोगी रहे हैं। 1937, 38, 40 व 42 में जेल यात्रायें करके देश के स्वतंत्रता सेनानियों में आपने अपना प्रमुख स्थान बना लिया। आपने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के आन्दोलन में भी भाग लिया था। 1939 में आप मोहनपुरा कैम्प जेल में रखे गये थे। बख्शी जी बहुत शांत एवं सरल परिणामी व्यक्ति हैं। प्रतिदिन अभिषेक एवं पूजा करने का आपका नियम है।
आ)- (1) जै० स० बृ0 इ0, पृष्ठ 249 (2) रा0 स्व०) से), पृष्ठ 609
श्री दीपचंद मलैया
गढ़ाकोटा, जिला - सागर (म0प्र0) निवासी श्री दीपचंद मलैया (जैन), पुत्र श्री सज्जन कुमार का जन्म 1914 में हुआ । आपने 1932 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। फलत: 6 माह का कारावास भोगा। 1971 में आपका निधन हो गया। आ) - ( 1 ) म) प्र) स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-30 (2) आ() दी।), पृष्ठ-48
श्री दुलीचंद ओसवाल
रायपुर (म0प्र0) के श्री दुलीचंद ओसवाल, पुत्र श्री कन्हैयालाल का जन्म 1918 में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा तीन माह पच्चीस दिन का कारावास भोगा ।
आ) - ( 1 ) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-3, पृष्ठ-35
श्री दुलीचंद जैन
श्री दुलीचंद जैन, पुत्र- श्री मल्थूराम जैन तालबेहट, जिला - झाँसी (उ0 प्र0) के निवासी थे। आपने क्षेत्रीय नेताओं के साथ आन्दोलन में भाग लेकर भारत को आजाद कराने में अपना योगदान दिया था और 1941
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में 6 माह की सजा काटकर जैन समाज को इस पवित्र महायज्ञ में आहुति देने की प्रेरणा दी थी ।
आ) - (1) र0 नी) पृष्ठ 88 (2) जै) स) रा0 अ
श्री दुलीचंद जैन
ग्राम-कारी, जिला टीकमगढ़, (म0प्र0) के श्री दुलीचंद जैन, श्री पुत्रजैन का जन्म 1922 मूलचन्द में हुआ। ओरछा राज्य के उत्तरदायी शासन हेतु चलाये गये आन्दोलन के अन्तर्गत जंगल (महुआ ) आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा एक माह से अधिक का कारावास टीकमगढ़ जेल में भोगा । आ0 (1) म० प्र० स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-128 (2) वि0 स्व० स० ३०, पृष्ठ 214
श्री दुलीचंद जैन
'कौशल कविराय' उपनाम से विख्यात, बुन्देली भाषा के प्रसिद्ध कवि श्री दुलीचंद जैन, पुत्र- श्री रनजीत लाल जैन का जन्म 18-6-1925 को देवरी कलां, जिला - सागर (म0प्र0) में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा देवरी के हिन्दी मिडिल हाई स्कूल में हुई। बी० ए० पास कर आप अध्यापन कार्य में संलग्न हो गये। 1939 से ही आपने खादी पहिनना एवं सूत कातना प्रारम्भ कर दिया था।
1942 के आन्दोलन में आप गिरफ्तार कर लिये गये और 5-9-42 से 8-4-43 तक सागर जेल में रहे। आपको 15 दिन की गुनाहखाना की सजा दी गई थी, आपने लिखा है कि 'जेल में रहकर गेंहू नुकाना, (साफ करना) रस्सी कातना आदि कार्य करने पड़ते थे । हफ्ते में 2 दिन रद्दी किस्म की ज्वार खाने को मिलती थी। जेल में हम सब एक दूसरे से स्नेह रखते
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