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अध्यक्ष रहे। आप हिन्दी उच्चत्तर माध्यमिक कन्या विद्यालय के ऑनरेरी मैनेजर एवं डिस्ट्रिक्ट जेल रामपुर के विजीटर भी रहे।
समाज को पैनी दृष्टि से देखने वाले शशि जी को भारतीय समाज ने बहुत अधिक सम्मानित किया । शशि जी के 50 से भी अधिक अभिनंदन हुये। 1964 में जैन समाज, रामपुर द्वारा 'आशुकवि' की उपाधि तथा 1968 में राजकीय महाविद्यालय, रामपुर (उ0प्र0) द्वारा अभिनंदन पत्र आपको भेंट किया गया था। उ() प्र() के राज्यपाल श्री मा(0) चेन्नारेड्डी ने 1975 में आपको सम्मानित किया था। लखनऊ में 'काव्यश्री' (1985) की उपाधि से भी आप अलंकृत हुए थे। कविवर शशि जी रामपुर और बाहर की बीसियों संस्थाओं से सम्बद्ध रहे हैं। उनकी सेवाओं को समाज कभी भुला नहीं सकेगा।
शशि जी आशु कवि के रूप में भारत भर में विख्यात रहे हैं, साहित्यिक उपलब्धियों से संपन्न होते हुए भी वे विज्ञापन और प्रशंसा से सदैव दूर रहे फिर भी कस्तूरी की सुगंध की भांति उनकी ख्याति सर्वत्र फैल गयी।
डॉ0 नंद किशोर त्रिपाठी ने रुहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली से 'शशि व्यक्तित्व और कृतित्व' विषय पर 1988 में शोध कार्य किया। आनन्द साहित्य संस्थान रामपुर ने 'शशि और उनका काव्य' नाम से शशि जी के समग्र साहित्यिक जीवन पर एक पुस्तक प्रकाशित की है।
शशि जी कुशल मौन साधक थे उन्हीं के शब्दों में 'शायद उनकी मूक साधना का कोई कभी मूल्यांकन करे'
यह कोरा कागद है । मैं तो भूलों का चिरदास हूं अपने उत्तरदायित्वों से अब लेता अवकाश हूं
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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
शायद कोई आंके क्षमता मेरी मूक उड़ान की ।
अत्याचार कलम मत सहना
तुझे कसम ईमान की ।
परम यशस्वी शशि जी का एक स्कूटर दुर्घटना में 9 सितम्बर 1988 को आल इंडिया मेडिकल इन्स्टीट्यूट, दिल्ली में निधन हो गया। उनके निधन से जैन समाज और हिन्दी साहित्याकाश ने एक नक्षत्र खो दिया।
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(आ) (1) वि० अ०), पृष्ठ 211, (2) जैन सन्देश 6/10/1988, (3) आधुनिक जैन कवि, (4) जै) स) रा0 अ
श्री कल्याणदास जैन
सतना (म0प्र0) के श्री कल्याणदास जैन का जन्म 1904 में हुआ, आपके पिता श्री लखपतराय जैन थे। श्री जैन ने माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त की। स्वतंत्रता आंदोलन के आप वीर सिपाही रहे। 1930 के आंदोलन में आप सक्रिय रहे। देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत श्री जैन ने 2 वर्ष का कारावास व 100 रु0 के अर्थदण्ड की सजा भोगी ।
आ( ) ( 1 ) मु0) प्र) स्व() सै(0), भाग-5, पृष्ठ 257
श्री कल्याणमल जैन
दौसा ( राजस्थान) के श्री कल्याणमल जैन का जन्म दिनांक 20 जून 1915 को टोंक में हुआ था । आपके पिता श्री सुन्दरलाल जैन साधारण परिवार से संबंधित थे। जब आपने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जयपुर में ग्रहण की तब सारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और आपकी उम्र मात्र 16 वर्ष की थी उस समय श्री जैन देशभक्ति से ओतप्रोत होकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के पम्पलेट दुकानों पर वितरित करते थे ।
भारत माता के इस सपूत ने 18 मार्च 1939 में श्री लालचन्द जी के नेतृत्व में चांदपोल बाजार में