________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रथम खण्ड
149 श्री गोपाललाल कोटिया का जन्म पौष शुक्ल सहभागिता के कारण बूंदी राज्य ने पं0 नयनूराम पूर्णिमा वि0 सं0 1940 (1883 ई0) को वैभवशाली शर्मा और कोटिया जी को बूंदी कैदखाने में कैद कर धन-सम्पन्न परिवार में, श्री केसरीसिंह कोटिया के दिया और कड़ी यातनायें दीं। पैरों में दस-दस सेर बर बूंदी (राजस्थान) में हुआ, व्यायाम के विशेष की बेडियाँ डाली गईं और खाने को सड़े जौ की शौकीन गोपाललाल जी 5 किलो दुध पीकर प्रतिदिन रोटियाँ दी गईं। इस तरह तीन वर्ष तक बिना मुकदमें जन-जागृति की योजनाएं बनाया करते थे। उनका के ही आपको कैद में रहना पड़ा, कोटिया जी की वैभव उन्हें अपने में अवलिप्त न कर सका. वैभव सारी सम्पत्ति जब्त कर ली गई और 3 जबरदस्ती यह सम्पन्न परिवार को लात मारकर आप 15 वर्ष की लिखवाने का प्रयास किया गया कि 'यह सम्पत्ति उम्र में समाज सेवा हेतु निकल पड़े। उसी उम्र में एक सरकारी कर्जे की अदायगी में दी जाती है।' पुस्तकालय खोला और लोगों को घर-घर जाकर जेल से रिहा होने पर कोटिया जी को बूंदी राज्य निःशुल्क पढने की प्रेरणा देने लगे, गरीबों की सहायता से निर्वासित कर दिया गया, फिर भी वह चोरी-छिपे उनका मिशन बन गया।
बूंदी जाते रहे। 1942 के आंदोलन में भी आपको बंग भंग के विरोध में आन्दोलन प्रारम्भ होने पर गिरफ्तार कर एक वर्ष की सजा दी गई और रिहा आपने अपने विदेशी वस्त्र आग में जला दिये और होने पर पुनः बूंदी राज्य से निर्वासित कर दिया गया। स्वदेशी का प्रण किया. जो जीवन के अन्त तक चलता 1940 में आपने कोटा रहा। जब इतने से संतोष न हुआ तो बम्बई गये और छात्रावास खोला था, जिसमें क्रान्ति की शिक्षा दी वहाँ से पूना चले गये। पूना में श्री माधव राज सप्रे जाती थी। 1944 में कोटा में 144 धारा तोड़ने पर से आपकी मुलाकात हुई और वहीं आजन्म नि:स्वार्थ भी आप सात दिन जेल में रहे थे। कोटा व बूंदी में देशसेवा का प्रण लिया, क्रान्तिकारी होने का प्रशिक्षण प्रजामण्डल की स्थापना आपने ही की थी। भी वहीं पाया। लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, ठाकुर महात्मा गांधी के बलिदान के बाद कांग्रेस में केसरी सिंह, श्री अर्जुन लाल सेठी, श्री विजय सिंह बढ़ रही अवसरवादिता से खिन्न होकर कोटिया जी पथिक आदि से आपका सम्पर्क सप्रे जी ने ही कराया ने कांगेस व राजनीति से सन्यास ले लिया। था। कोटिया जी ने क्रान्तिकारियों को आर्थिक सहायता कोटिया जी विपुल सम्पत्ति के मालिक थे। और हथियार के क्रय में अपना धन लगाना श्रेयस्कर उस जमाने में उनके पास सिनेमाहाल, कोटा व समझा, उनकी क्रान्तिकारी गतिविधियाँ चलती रहीं। केशवराम पाटन में भारी जमीन तथा बूंदी का वर्तमान पूज्य बापू के सम्पर्क में आने पर आपने क्रान्तिकारी तहसील भवन उन्हीं का था। देशहित के लिए यह रास्ता छोड़कर अहिंसक रास्ता अपनाया, पर अपने उग्र सब कुछ न्यौछावर करने में वे जरा भी नहीं स्वभाव को एकदम नहीं छोड़ सके।
हिचकिचाये। उनका एक पुत्र नवलखचंद व तीन 1920 में नरकेसरी श्री विजयसिंह पथिक बूंदी पुत्रियाँ थीं। जब तक पुत्र ने होश सम्हाला, गोपाल पधारे और आपके घर रहे। उन्हीं के हाथों कोटिया जी लाल जी सब कुछ होम कर चुके थे। उनके पुत्र को ने प्रजामण्डल का उद्घाटन कराया। कोटिया जी घर का खर्च चलाने के लिए एक टेलर मास्टर प्रजामण्डल के अध्यक्ष थे। पथिक जी ने बूंदी राज्य मौहम्मद के यहाँ नौकरी करनी पड़ी। कोटिया जी के बरड़ तथा मेवाड़ के बिजौलियाँ इलाके में किसानों की पुत्रवधु ने श्री महेशकुमार जैन, बूंदी को एक के आन्दोलनों का सूत्रपात किया था। आन्दोलनों में साक्षात्कार में बताया था 'मेरे श्वसुर जी को जब
For Private And Personal Use Only